खंडहर में बदल रहा मड़ावरा का किला

Update: 2016-01-10 05:30 GMT
गाँव कनेक्शन

मड़ावरा (ललितपुर)। बेशक भारत देश की संस्कृति और पुरातन विरासतें दुनिया भर में प्रसिद्ध हो और दुनिया के तमाम देश भारत के गौरवशाली इतिहास के आगे नतमस्तक हों फिर भी देश की कई पुरातन विरासतें उपेक्षा के चलते अपनी पहचान खोती जा रही हैं।

बुन्देलखण्ड का ललितपुर जनपद भी ऐतिहासिक साम्राज्य की धनी धरती है जो पूर्व में झांसी ज़िले की एक तहसील थी। ललितपुर के देवगढ़ में जैन धर्म के विविध कलात्मक मंदिर और बेतवा नदी घाटी में प्राचीन बुद्ध गुफा, विश्व प्रसिद्ध दशावतार मंदिर, तालबेहट का किला, पाली का नीलकंठेश्वर मंदिर समेत ऐतिहासिक पाण्डव वन और सौंरई, बानपुर, मड़ावरा के दुर्ग भी अपने अन्दर एक ऐतिहासिक पहचान रखते हैं। लेकिन पुरातत्व विभाग एवं स्थानीय प्रशासन की उपेक्षा के चलते इनमें से कई पुरातन विरासतें अपनी पहचान खोती जा रही हैं।

तहसील मुख्यालय स्थित मड़ावरा का किला रखरखाव एवं जीर्णोद्धार के अभाव में खंडहर में तब्दील होता जा रहा है। मड़ावरा के किले और नगर के इतिहास के बारे में कस्बा निवासी और राज्यपाल पुरस्कृत वरिष्ठ शिक्षाविद् वेदप्रकाश श्रीवास्तव बताते हैं, ''किले का निर्माण मराठा शासक मोराजी द्वारा करवाया गया था और उन्हीं के नाम पर नगर का नाम मड़ावरा रखा गया। समय गुजरते हुए यहां पर शाहगढ़ इस्टेट के राजा बखतवली सिंह जो कि तालबेहट के राजा मर्दनसिंह के साढ़ू भाई थे, उन्होंने मराठों से एक युद्ध में हुई संधि के बाद मड़ावरा पर कब्ज़ा कर लिया। उस समय अपने गौरवशाली दिनों में मड़ावरा एक काफी सम्पन्न रियासत रही।’’

वे आगे बताते हैं, ''मड़ावरा में लगभग 60000 वर्गमीटर क्षेत्रफल में बने किले में एक अन्तकुआं, मंदिर स्थित है तथा दुर्ग के पीछे पूरब दिशा में सुन्दर तालाब और किले की ऊंची-ऊंची बुर्जें दुर्ग की खूबसूरती में चार चांद लगाती हैं। दुर्ग में सबसे ऊंची बुर्ज़ कमल बुजऱ् के नाम से जानी जाती है, दुर्ग में महल के खूबसूरत बरामदे और अट्टालिकायें भी दर्शनीय थे। नगर के रिहायशी इलाके में सात कुएं थे जिनसे लोगों को पानी मिलता था। नगर के आसपास के स्थानों में ग्राम सौल्दा में लोहे की खदानें थी जहां पर लोहारों की 700 भट्ठियां थी जहां से निकले लोहे से अस्त्र-शस्त्र निर्माण समेत अन्य कार्यों के लिए उपयोग किया जाता रहा, ग्राम सीरोंन जी पाषाण मूर्तिकला का प्रसिद्ध केन्द्र रहा जहां आज भी एक सूर्य मंदिर है जो उपेक्षित पड़ा है।’’

वेदप्रकाश बताते हैं, ''जब देश में अंग्रेज़ी सत्ता का उदय हुआ तो नि:संतान राजा बखतवली सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया और नगर तथा किले पर अंग्रेज़ी हुकूमत कायम हो गई। गोड़वाना क्षेत्र में स्थित होने के चलते किले में धन-सम्पदा और खज़ाने पर अंग्रेज़ों ने कब्ज़ा कर लिया और अपने नुमाइन्दों को किला सौंप दिया। बीतते समय के साथ किला रखरखाव के अभाव में जीर्ण-शीर्ण और वीरान होता गया और कुछ समय के लिये कुछ नामचीन डाकुओं ने भी अपना डेरा जमा लिया। आजादी के बाद पूरी तरह से लावारिस किले को छिपे हुए खज़ाने की तलाश में लोगों ने किले की दीवारों, बुर्जों को खोद-खोदकर क्षतिग्रस्त कर दिया। महल के बरामदों और अट्टालिकाओं की छतों तक को ध्वस्त कर दिया गया।’’

वर्तमान में किले की हालात यह है कि किले के मुख्यद्वार के आसपास अवैध खनन के चलते दीवारें खोखली हो चली हैं, किले की बुर्जे जीर्ण-शीर्ण हो गई हैं और कंटीली झाडिय़ों से पूरा किला घिर चुका है। जीणोद्धार और मरम्मत के नाम पर कुछ वर्षों पहले किले के पीछे तालाब के पास एक सार्वजनिक पार्क का निर्माण ग्राम पंचायत द्वारा करवाया गया लेकिन पूरा किला आज भी पुरातत्व और प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार है और खंडहर में बदलता जा रहा है।

रिपोर्टर - इमरान खान

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