पश्चिमी हिमालय में किसानों की आमदनी बढ़ाएगा दमस्क गुलाब

"पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र की सगंधित खेती और सगंध तेल उद्योग का विकास" विषय के तहत हिमालयी दमस्क गुलाब प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। इस आयोजन ने सगंधित तेलों के क्षेत्र में वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं, उद्यमियों, और किसानों सहित पूरे भारत से प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं।

Update: 2023-04-24 14:50 GMT

हिमाचल प्रदेश में सगंध फसलों की खेती करने वाले किसानों के लिए बढ़िया मौका है, यहां पर किसानों को दमस्क गुलाब की खेती का प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

एसेंशियल ऑयल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (ईओएआई) ने सीएसआईआर- आईएचबीटी (हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान), पालमपुर, हिमाचल प्रदेश, व हिमालयन फाइटोकेमिकल्स एंड ग्रोवर्स एसोसिएशन (एचआईएमपीए), मंडी (हिमाचल प्रदेश) और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), मंडी (हिमाचल प्रदेश) के सहयोग से सीएसआईआर-आईएचबीटी, पालमपुर, हिमाचल प्रदेश में प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया।

"पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र की सगंधित खेती और सगंध तेल उद्योग का विकास" विषय के तहत हिमालयी दमस्क गुलाब पर 21 अप्रैल 2023 को एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस आयोजन ने सगंधित तेलों के क्षेत्र में वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं, उद्यमियों, और किसानों सहित पूरे भारत से लगभग 200 प्रतिनिधियों को एक साथ लाया।


पीयूष गुप्ता, उपाध्यक्ष, उत्तरी क्षेत्र, ईओएआई ने प्रतिभागियों का स्वागत किया। संजय वार्ष्णेय, अध्यक्ष, ईओएआई ने सगंधित फसलों और सगंध तेल उद्योग को बढ़ावा देने के लिए ईओएआई के दृष्टिकोण को साझा किया। उन्होंने बताया कि भारत प्रति वर्ष 200 करोड़ रुपये के करीब 2 टन गुलाब के तेल का आयात करता है, जो एक बहुत बड़ा खर्च है, इसलिए हमें भारत में गुलाब के तेल के उत्पादन पर बल देना चाहिए। हिमालयी क्षेत्र में गुणवत्तापूर्ण गुलाब उत्पादन की क्षमता है इसलिए हमें इस विशेष क्षेत्र में इसकी खेती पर ध्यान देना चाहिए।

उन्होंने आगे कहा कि कार्यशाला में भाग लेने वाले राष्ट्रीय विशेषज्ञों के ज्ञान, अनुसंधान अनुभव और विशेषज्ञता सगंधित तेलों के क्षेत्र में भारतीय वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं, उद्यमियों, निर्माताओं और किसानों की क्षमता निर्माण व सगंध तेल के प्रचार की दिशा में सहायता करेगी।

निदेशक, सीएसआईआर-आईएचबीटी, पालमपुर डॉ प्रबोध कुमार त्रिवेदी ने आभासी रूप से कार्यशाला में भाग लिया और उल्लेख किया कि संस्थान का मुख्य केंद्र सगंधित फसलों की खेती को बढ़ावा देना और उन्नत किस्मों की गुणवत्ता रोपण सामग्री, कौशल विकास, मूल्यवर्धन द्वारा किसानों की आय में वृद्धि करना व आसवन इकाइयों में सुधार और उद्योग के साथ उनके संबंध स्थापित करना है।

उन्होंने बताया कि कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए सौर आसवन इकाइयों की डिजाइनिंग समय की मांग है।


कार्यशाला में, प्रतिनिधियों ने हिमालय के सगंधित पौधों और उनकी खेती, स्वाद में हिमालयी क्षेत्र के सगंध तेलों के उपयोग व फाइटोकेमिकल प्रोफाइलिंग के लिए बहु-विश्लेषणात्मक प्लेटफार्मों पर विचार, सीएसआईआर-आईएचबीटी द्वारा विकसित सगंधित फसलों से संबंधित तकनीकों, व भारतीय और वैश्विक खुशबू, स्वाद और अरोमाथेरेपी उद्योग में हिमालयन सगंध तेलों के उपयोग के बारे में चर्चा की। प्रतिनिधियों ने संस्थान के दमस्क गुलाब के खेतों का दौरा किया और दमस्क गुलाब के सगंध तेल निष्कर्षण को देखा।

ईओएआई, सीएसआईआर-आईएचबीटी, एचआईएमपीए, आईआईटी, प्रगतिशील किसानों और प्रतिनिधियों के विभिन्न सदस्यों ने विचार और अनुभव साझा किए गए। उद्योगपतियों, वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं और गणमान्य व्यक्तियों ने सगंधित फसलों को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर चर्चा की और यह कैसे सगंध तेलों और संबंधित उत्पादों के विज्ञान और प्रौद्योगिकी के ज्ञान को बढ़ाने के साथ-साथ मानक गुणवत्ता वाले पदार्थों के उत्पादन और विपणन में सहायता कर सकते हैं।

सीएसआईआर-आईएचबीटी में अरोमा मिशन के सह नोडल और कार्यशाला के समन्वयक डॉ. राकेश कुमार ने बताया कि सगंधित फसलों में पहाड़ी क्षेत्र के किसानों के लिए बहुत संभावनाएं हैं जहां जानवर फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। उन्होंने कहा कि संस्थान ने पहले से ही 3000 हेक्टेयर क्षेत्र को सगंधित फसलों के अंतर्गत लाया है और सीएसआईआर-अरोमा मिशन के तहत पिछले छह वर्षों के दौरान पूरे भारत में 61 प्रसंस्करण इकाइयां स्थापित की गई हैं।


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