बेकार समझे जाने वाले औषधीय व सगंध फसलों के अवशेष से भी बना सकते हैं बढ़िया खाद

औषधीय व सगंध फसलों के अवशेष से बनी खाद में दूसरी गोबर की खाद की तुलना में ज्यादा पोषक तत्व पाए जाते हैं। जैसे कि मेंथा के फसल अवशेष से बनी खाद में 1.5% तक नाइट्रोजन की मात्रा रहती है, जबकि आम गोबर की खाद में .5% नाइट्रोजन ही रहता है। ये खाद दो-तीन गुना ज्यादा पोषक तत्व युक्त खाद होती है।

Update: 2023-03-29 11:14 GMT

औषधीय व सगंध फसलों की खेती करने वाले किसानों के सामने ये समस्या आती है कि वो फसल अवशेष का क्या करें? कई किसान अवशेष को जला देते हैं, या फिर ऐसे ही सड़ने के लिए छोड़ देते हैं, कम ही किसानों को पता होगा कि इस अवशेष से बढ़िया खाद भी बना सकते हैं।

सीएसआईआर-केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान, लखनऊ के प्रधान वैज्ञानिक डॉ आलोक कालरा फसल अवशेष प्रबंधन की पूरी जानकारी दे रहे हैं।

सबसे पहले करें ये जरूरी काम

अगर हम मेंथा की बात करें तो एक हेक्टेयर की फसल में डिस्टीलेशन के बाद 20-25 टन वेस्ट निकलता है। तेल निकालने के बाद जो भी कूड़ा निकलता है, उसको किसान या तो जला देता है या फिर ऐसे ही सड़ने के लिए छोड़ देता है, बरसात के मौसम में सड़ते कूड़े की वजह से बहुत सारी समस्याएं पैदा हो सकती हैं।

हम लोगों ने इस समस्या से निपटने के लिए संस्थान ने एक आसान सी तकनीक विकसित की है, जिससे कि हम इस बचे हुए वेस्ट, जिसे जानवर भी नहीं खाते और किसी दूसरे काम भी नहीं आता है, और ये बहुत ज्यादा मात्रा में निकलता है। लेकिन ये बहुत ही काम का साबित हो सकता है।

सीएसआईआर-केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान, लखनऊ के प्रधान वैज्ञानिक डॉ आलोक कालरा 

हम साधारण विधि से वर्मी कम्पोस्ट में बदलते हैं, इसके लिए हम तेल निकालने के बाद इस वेस्ट को अच्छी तरह से धूप में दो-तीन दिनों के लिए सुखा लेते हैं। इसको सुखाने के पीछे ये कारण होता है कि अगर कोई तेल की मात्रा इस में रह गई है तो वो उड़ जाती है, अच्छी तरह से सूखने के बाद इसे चारा काटने वाली मशीन से छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लेते हैं।

ऐसे बनाते हैं वर्मी कम्पोस्ट के लिए बेड

उसके बाद हम उसे वर्मी कम्पोस्ट के बेड में भरना शुरू करते हैं। बेड की लंबाई करीब तीन-चार मीटर रखते हैं और चौड़ाई एक मीटर के लगभग रखते हैं। लंबाई आप बढ़ा भी सकते हैं, लेकिन चौड़ाई इतनी ही रखनी चाहिए, जिसके दोनों तरफ बैठकर कोई आदमी काम कर सके। इस बेड में चारों तारों तरफ एक ईंट की लाइन रखते हैं, जिससे इसमें बाहर से कोई चीज अंदर न आ पाए।

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बेड बनाते समय रखें इन बातों का ध्यान

जबकि नीचे मिट्टी ही रखते हैं, ताकी कभी बारिश का पानी भर जाए तो वो नीचे जमीन में सोख लिया जाए। क्योंकि अगर पानी भरा तो सारे केंचुए मर जाएंगे।

बेड तैयार होने के बाद सबसे पहले मोटी रेत की एक परत डाल देते हैं, ये रेत इसलिए डालते हैं क्योंकि कई बार केचुएं मिट्टी के अंदर चले जाते हैं, लेकिन अगर रेत रहेगी तो केंचुए जमीन के अंदर नहीं जा पाएंगे। उस रेत के ऊपर ईंट की गिट्टी की परत डालकर उसके ऊपर मिट्टी की एक परत डाल देते हैं।


अब इसके बाद हम इस बेड में सबसे पहले कच्चे गोबर की दो-तीन इंच की लेयर डाल देते हैं, उसके बाद हम इसमें केंचुए डाल देते हैं। अगर केंचुए की बात करें तो एक बेड में करीब तीन-चार किलो केंचुए डाल देते हैं।

अब केंचुए डालने के बाद इस बेड में धीरे-धीरे हर हफ्ते सूखा हुआ फसल अवशेष डालना शुरू करते हैं। हर हफ्ते इसमें पांच-छह इंच लेयर फसल अवशेष डालते हैं। ये प्रकिया छह-सात हफ्तों तक हर हफ्ते तक दोहरानी होती है, जब तक कि आपका फसल अवशेष एक ऊपर तक न चला जाए।

बनाए रखिए नमी

जब ये ऊपर भर जाए तो इसमें पानी का छिड़काव करना चाहिए, जिससे नमी बनी रहनी चाहिए। इसके साथ ही इसे दो-तीन दिनों में पलटते रहना चाहिए। पलटते रहने से इनमें हवा आने जाने की जगह यानी कि एयर स्पेश बन जाते हैं, जो केंचुओं के लिए फायदेमंद होते हैं। इससे केंचुए तेजी से बढ़ते हैं।

जितनी तेजी से केंचुए बढ़ेंगे उतनी तेजी से ही खाद बनेगी, माना जाता है कि एक ग्राम केंचुआ हर दिन एक ग्राम के बराबर खाता है। इसके हिसाब से जितने केंचुए बनेंगे, उतनी जल्दी खाद बनेगी।


90-100 दिनों के बाद आपकी खाद तैयार हो जाएगी। अब किसानों के मन में सवाल आता है कि कैसे जानेंगे की कि खाद तैयार हो गई है। इसको जानने के लिए जब खाद को हाथ में उठाएंगे तो ये चायपत्ती की तरह छूने पर लगती है। अब पानी देना बंद कर देना चाहिए, इसे धीरे-धीरे ऊपर की परत सूख जाएगी, जिसे दो-तीन दिन में निकालना किसी छायादार जगह में इकट्ठा करते रहना चाहिए। इसे तब तक निकालना है, जब तक बेड में नीचे की मिट्टी न दिखने लगे।

सारी खाद निकालने के बाद इसे किसी छलनी से छान लेनी चाहिए, इससे केंचुए और जो वेस्ट अभी खाद नहीं बन पाई है वो ऊपर रह जाएगी। उसे दोबारा बेड में डाल देना चाहिए।


हर फसल की खाद बनने में लगता है अलग-अलग समय

आमतौर में ये खाद 90-100 दिनों में तैयार हो जाती है, लेकिन यूकेलिप्टस व लेमन ग्रास जैसी कुछ फसलों से खाद बनने में 100-120 दिन लग जाते हैं। जबकि मेंथा और जिरेनियम जिनके फसल अवशेष दूसरों के मुकाबले ज्यादा मुलायम होते हैं, वो 80-90 दिन में ही तैयार हो जाती है। 

औषधीय व सगंध फसलों के अवशेष से बनी खाद में दूसरी गोबर की खाद की तुलना में ज्यादा पोषक तत्व पाए जाते हैं। जैसे कि मेंथा के फसल अवशेष से बनी खाद में 1.5% तक नाइट्रोजन की मात्रा रहती है, जबकि आम गोबर की खाद में .5% नाइट्रोजन ही रहता है। ये खाद दो-तीन गुना ज्यादा पोषत तत्व युक्त खाद होती है।

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