आपकी फसल को चूहों से बचाएँगे उल्लू, बस ये उपाय करना होगा

किसान कीटों और बीमारियों के साथ चूहों से भी परेशान रहते हैं; इनसे बचने के लिए किसान कई उपाय करते हैं, लेकिन फिर भी उत्पाद का एक बड़ा हिस्सा चूहे बर्बाद कर देते हैं। आज किसानों को ऐसे ही एक दोस्त से मिलाने जा रहे हैं, जिनकी मदद से चूहों से छुटकारा पाया जा सकता है।

Update: 2024-04-18 10:41 GMT

गेहूँ में चूहों के कारण होने वाला नुकसान कृषि व्यवस्था, भंडारण सुविधाओं और यहाँ तक कि परिवहन के दौरान भी एक बड़ी समस्या हो सकती है। आज हम गेहूँ में चूहों से संबंधित नुकसान के विभिन्न पहलुओं, नुकसान के प्रकार, चूहों के संक्रमण को प्रबंधित करने के तरीकों पर बात करते हैं।

गेहूँ में चूहों के कारण होने वाले नुकसान

प्रत्यक्ष उपभोग: चूहे बड़ी मात्रा में गेहूँ खाते हैं, जिससे वस्तु का प्रत्यक्ष नुकसान होता है। वे गेहूँ के दानों को सीधे खेतों से, कटाई के दौरान, परिवहन में या भंडारण के दौरान खा सकते हैं।

संदूषण: चूहे अपने मल, मूत्र और फर से गेहूँ को दूषित करते हैं। यह संदूषण गेहूँ को अस्वास्थ्यकर और मानव या पशु उपभोग के लिए अनुपयुक्त बना सकता है।

शारीरिक क्षति: चूहे खेतों में गेहूँ के पौधों को शारीरिक क्षति पहुँचाते हैं, तने और पुष्पक्रम को कुतरते हैं। भंडारण सुविधाओं में, चूहे पैकेजिंग और भंडारण संरचनाओं को नुकसान पहुँचाते हैं।


रोग संचरण: चूहे मनुष्यों और पशुओं दोनों को रोग ले जा सकते हैं और संचारित कर सकते हैं। गेहूँ के खेतों या भंडारण क्षेत्रों में उनकी उपस्थिति संभावित बीमारियों के प्रसार के कारण स्वास्थ्य जोखिम पैदा करती है।

आर्थिक प्रभाव: चूहों के कारण गेहूँ के नुकसान से किसानों और भंडारण सुविधा संचालकों को महत्वपूर्ण आर्थिक नुकसान होता है। इसमें क्षतिग्रस्त या दूषित गेहूँ को बदलने, संक्रमण का प्रबंधन करने और कथित गुणवत्ता संबंधी मुद्दों के कारण संभावित बाजार मूल्य में कमी से जुड़ी लागतें शामिल हैं।

चूहों के संक्रमण को कैसे करें प्रबंधित ?

जैविक नियंत्रण: उल्लू या अन्य शिकारी पक्षियों जैसे प्राकृतिक शिकारियों को पेश करना, कृषि क्षेत्रों में चूहों की आबादी को नियंत्रित करने में मदद करता है। इस क्रम में गेहूँ में जब फरवरी माह में बालियां आ रही होती है उस अवस्था में जब आप खेत की मेंढ़ पर खड़े हो कर देखेंगे तो कही कही पर गेंहू की बालियाँ उठी हुई दिखाई देंगी यह इस बात का द्योतक है की इस खेत में चूहों का आक्रमण हो चुका है।

इन जगहों पर बांस की फट्टी के ऊपर पॉलीथिन पहना कर गाड़ देना चाहिए। स्थानीय भाषा में इसे धुआँ कहते है। ऐसा करने से रात में इस पर ऊल्लू बैठेंगे और चूहों का शिकार करेंगे साथ ही साथ रात को जब हवा चलेगी तो इन पॉलीथिन की पन्नियों से फर फर की तेज आवाज निकलेगी जिससे चूहे खेत से बाहर चले जाएंगे।


इस तरह से बिना किसी अतरिक्त प्रयास के चूहों का प्राकृतिक नियंत्रण होगा। यह विधि चूहों के संक्रमण को प्रबंधित करने के लिए पर्यावरण के अनुकूल दृष्टिकोण प्रदान करती है। धरती पर पारिस्थितिकी संतुलन बनाने में उल्लू अहम भूमिका निभाता है। चूहे, छछूंदर और हानिकारक कीड़े मकोड़ों का शिकार करने के कारण इन्हें प्रकृति का सफाईकर्मी भी कहते हैं।

एक रिपोर्ट के अनुसार मलेशिया में किसान फसल बचाने के लिए उल्लू पाल रहे हैं। हमारे देश में दीपावली पर तंत्रमंत्र और अंधविश्वास के चक्कर में कुछ लोग उल्लू को मार देते हैं। इसके संरक्षण के लिए ऐसे लोगों की सूचना वन विभाग और पुलिस को दें। उल्लू एक ऐसा पक्षी है जिसे दिन के मुकाबले रात में साफ दिखाई देता है। इसीलिए ये रात को ही शिकार करता है।

ये अपनी तेज सुनने की शक्ति के दम पर ही शिकार करता है। चूहे, छछूंदर, सांप और रात को उड़ने वाले कीट पतंगे खाता है। एक उल्लू एक साल में एक हजार के आसपास चूहे खा जाता है। दुनियाभर में उल्लू की करीब 200 प्रजातियां हैं। भारत में मुख्य दो प्रजाति मुआ और घुग्घू पाई जाती है। मुआ पानी के करीब और घुग्घू खंडहरों और पेड़ों पर रहते हैं। फसल की रक्षा के लिए पाले उल्लू कीटनाशकों के दुष्प्रभाव से जैव विविधता को बचाने के लिए नए-नए तरीके अपनाए जा रहे हैं।


मलयेशिया के पाम उत्पादकों ने फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले जंतुओं और कीटों से बचाने के लिए उल्लू को पालना शुरू किया है। उन्हें पाम पेड़ों का रक्षक मानकर उनके करीब निवास बनाकर दिया जाता है। भारतीय वन्य जीव अधिनियम, 1972 की अनुसूची एक के तहत उल्लू संरक्षित है। ये विलुप्त प्राय जीवों की श्रेणी में दर्ज है। इनके शिकार या तस्करी पर कम से कम तीन वर्ष सजा का प्रावधान है। अगर कोई उल्लू का शिकार कर रहा है तो उसके बारे में वन विभाग को सूचना दें।

उल्लू बुद्धिमान पक्षी होता है, ये इंसान के मुकाबले 10 गुना धीमी आवाज सुन सकता है। उल्लू अपने सिर को दोनों तरफ 135 डिग्री तक घुमा सकता है। बेहद शांत उल्लू के कान आकार में एक जैसे नहीं होते हैं। दुनिया का सबसे छोटा उल्लू 5-6 इंच और सबसे बड़ा 32 इंच का है। उल्लू अंटार्टिका के अलावा सब जगह पाए जाते हैं। पलकें नहीं होने के कारण इनकी आंखे हरदम खुली रहती हैं। उल्लू के पंख चौड़े और शरीर हल्का होता है, इस कारण उड़ते वक्त ये ज्यादा आवाज नहीं करते। उल्लू झुंड में नहीं रहते, ये अकेले रहना पसंद करते हैं।

इसके साथ ही इन तरीकों से भी कर सकते हैं नियंत्रण

बहिष्कार: चूहों को खेतों और भंडारण क्षेत्रों में प्रवेश करने से रोकना संक्रमण के प्रबंधन में एक महत्वपूर्ण कदम है। इसमें बाड़ जैसे अवरोधों का उपयोग करना और भंडारण सुविधाओं में किसी भी अंतराल या प्रवेश बिंदु को सील करना शामिल होता है।

स्वच्छता: भंडारण क्षेत्रों को साफ और मलबे से मुक्त रखना चूहों के लिए इन क्षेत्रों का आकर्षण कम कर सकता है। नियमित सफाई और बिखरे हुए अनाज को हटाना आवश्यक है।

जाल लगाना: स्नैप ट्रैप जैसे यांत्रिक जाल, खेतों और भंडारण सुविधाओं से चूहों को पकड़ने और हटाने में प्रभावी हो सकते हैं।

कृंतकनाशक: चूहों की आबादी को नियंत्रित करने के लिए कृंतकनाशक युक्त रासायनिक चारा का उपयोग किया जा सकता है। इन पदार्थों का सावधानीपूर्वक और दिशा-निर्देशों के अनुसार उपयोग करना महत्वपूर्ण है ताकि गैर-लक्ष्य प्रजातियों के आकस्मिक विषाक्तता और गेहूं के संदूषण से बचा जा सके।

विकर्षक: प्राकृतिक और सिंथेटिक विकर्षक का उपयोग चूहों को भंडारण क्षेत्रों या खेतों में प्रवेश करने से रोकने के लिए किया जा सकता है। पुदीना तेल जैसे आवश्यक तेल चूहों को दूर भगाने के लिए जाने जाते हैं।

निगरानी: खेतों और भंडारण क्षेत्रों में चूहों की आबादी की नियमित निगरानी संक्रमण को जल्दी पहचानने और त्वरित कार्रवाई करने में मदद कर सकती है। इसमें दृश्य निरीक्षण, ट्रैकिंग पाउडर का उपयोग या इलेक्ट्रॉनिक निगरानी प्रणाली शामिल हो सकती है।

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