कृषि बजट की पहली ही किश्त नहीं खर्च कर पाया यूपी: केंद्रीय राज्य कृषि मंत्री

Update: 2015-12-15 05:30 GMT
गाँव कनेक्शन

लखनऊ। उत्तर प्रदेश सरकार को पिछली रबी फसल के मुआवज़े के 2801 करोड़ रुपए चार महीेन पहले ही भेज दिए गए, लेकिन पिछले चार महीनों में मुआवज़ा नहीं बंटा। उत्तर प्रदेश सरकार अपने खेती के बजट की पहली किश्त ही नहीं खपा पाई है अब तक। देश के राज्य कृषि मंत्री डॉ संजीव बालयान ने गांव कनेक्शन से बातचीत में ऐसे कई मुद्दों पर जानकारी दी। वे भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान में प्राकृतिक कृषि के विषय पर आयोजित एक कार्यक्रम में भाग लेने पहुंचे थे। पेश हैं उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश-

प्रश्न- उत्तर प्रदेश और केंद्र सरकार के बीच फसल के मुआवज़े को लेकर तकरार चल रही है इस पर क्या कहेंगे?

उत्तर- रबी में ओलावृष्टि और अतिवृष्टि से जो नुकसान हुआ उसका चार महीने पहले 2801 करोड़ रुपए प्रदेश सरकार दिए गए थे, इतना तो किसी भी अन्य प्रदेश को नहीं मिला। मैं कितने गाँवों में गया उसके बाद से मुझे कहीं नहीं मिला कि चार महीने से कहीं भी मुआवज़ा बांटा गया हो। संसद में भी इस पर प्रश्न उठाया गया था, प्रदेश सरकार तो कह रही थी कि जैसे ही मिलेगा पैसा बांट दिया जाएगा, लेकिन मुझे नहीं पता अभी तक प्रदेश न इन पैसों का क्या किया।

अभी सूखे का मोमरेंडम आने के बाद केंद्रीय टीम आकर जांच करके जा चुकी ही जल्द ही सूखे का मुआवज़ा भी उत्तर प्रदेश को दे दिया जाएगा। लेकिन उत्तर प्रदेश में समस्या मुआवज़ा मिलने की नहीं है, मुआवज़ा बटने की है। केंद्र से तो पैसा आता है लेकिन सही किसान तक वो पैसा नहीं पहुंचता, दिक्कत इस बात की है। ये मुआवज़ा मात्र दो हैक्टेयर तक के किसानों को ही दिया जाएगा। 

प्रश्न- कृषि योजनाओं के केंद्र व यूपी के बीच बजट के 50-50 प्रतिशत बंटवारे की तनातनी मेें काम रुके पड़े हैं?

उत्तर- इस बार केंद्र सरकार ने यह निर्णय लिया है कि जो राज्य कृषि का अपना बजट नहीं खर्च कर रहे हैं, उनका बजट लैप्स न करके उस राज्य को ट्रांसफर कर दिया जाएगा, जहां अच्छा काम हो रहा है। आपको सुनकर अजीब लगेगा दिसंबर खत्म होने वाला है, मार्च में फाइनेंशियल क्लोसिंग है, उत्तर प्रदेश सरकार अभी तक कृषि बजट की पहली किश्त के अलावा केंद्र से बजट की दूसरी किश्त नहीं ले पाई है। किसी भी योजना का बजट खर्च होने का प्रमाणपत्र इन्होंने अभी केंद्र को नहीं भेजा है। कृषि की योजना केंद्र और राज्य सरकार के बीच ही झूलती रह जाती है।

प्रश्न- मृदा स्वास्थ्य कार्ड वितरण में यूपी टारगेट के हिसाब से सबसे पिछड़े राज्यों में रहा?

उत्तर- टारगेट तो जाने दीजिए उत्तर प्रदेश ने जो मृदा कार्ड बनाए भी हैं मुझे उनकी भी गुणवत्ता पर भी शक है। इनकी लेबोरेटरी में जब केमिकल नहीं तकनीकी स्टाफ नहीं है तो कार्ड कैसे बन रहे हैं।

प्रश्न- दाल के बफर स्टॉक बनाने का केंद्र ने फैसला किया है, खरीद क्या इसी रबी सीजन से शुरू हो जाएगी?

उत्तर- बिलकुल, दाल का बफर स्टॉक बनाने के लिए नेफेड और एसएफएसी द्वारा खरीद अभी से शुरू की जा चुकी है। इसके लिए किसान से सीधे एमएसपी पर खरीद की जा रही है। इसके लिए बजट से 500 करोड़ रुपए का जो मूल्य स्थिरीकरण कोष बनाया गया था उसी का हम इस्तेमाल कर रहे हैं। आगे चलकर भारतीय खाद्य निगम ही गेहूं और चावल की तरह दाल का भी बफर स्टॉक तैयार करेगी। दालों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में भी हमने 250 रुपए तक की बढ़ोतरी की, सबसे बड़ी बात तो यह है कि खरीद शुरू की है जो आज तक निश्चित नहीं थी। मुझे लगता है इन कदमों से निश्चित रूप से देश में दालों की खेती को बढ़ावा मिलेगा।

देखिए दालों के बढऩे का एक अहम कारण जमाखोरी जो रहा उससे निपटने में सभी राज्य सरकारों को सजग होना पड़ेगा। इसी बार आप देख लीजिए महाराष्ट्र में इतनी दालें ज़ब्त हुईं, और उत्तर प्रदेश में तो मुझे लगता है एक छापा भी नहीं पड़ा। देखिए केंद्र तो पैसे भेज देता है लेकिन समस्या राज्य सरकारों की भागीदारी के साथ भी आती है।

प्रश्न- केंद्र नई कृषि बीमा योजना लाने जा रहा है, उसका प्रारूप कब तक तैयार होगा, विशेषता क्या होगी?

उत्तर- नई बीमा योजना का प्रारूप हमने तैयार कर लिया है, आशा है कि अगले दो-तीन महीने में लागू भी हो जाएगी। इस बीमा योजना में अच्छी बात यह होगी कि प्रीमियम पहले की किसी भी योजना से कम होगा। दूसरा बड़ा बदलाव जिस पर हम निरंतर पायलेट कार्यक्रम के तहत काम कर रहे हैं कि आपदा की स्थिति में जो काम पटवारी या सरकारी अधिकारी करता है, फसल नुकसान का पता लगाने का, उसमें कई महीने लग जाते हैं। इस प्रकिया को हम ड्रोन, जीआईएस मैपिंग जैसी स्पेस तकनीक से बहुत तेजी से करने की कोशिश में हैं।

प्रश्न- जैविक या प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए केंद्र की क्या योजना है?

उत्तर- प्राकृतिक खेती के लिए योजना हमने इसी वर्ष शुरू की है जिसके तहत किसानों का क्लस्टर बनने के बाद तीन वर्ष के अंदर प्रति हैक्टेयर किसान को 20 हज़ार रुपए की सहायता दी जाएगी।

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