लखनऊ के चारों ओर खेतों में अवैध प्लाटों की फसल

Update: 2016-07-19 05:30 GMT
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लखनऊ। राजधानी के बाहर राजमार्गों पर जाते समय खेतों की ओर नजर डालेंगे तो आपको अब प्लाटों की भी फसल जगह-जगह दिखेगी। शहरीकरण की दौड़ में खेतिहर भूमि अवैध कॉलोनियों में तब्दील हो रही है। केवल राजधानी में ही लगभग 200 गाँवों में 800 अवैध सोसाइटी बन चुकी हैं। 

इन कालोनियों को बनाने में किसानों से औने-पौने दामों पर भूमि खरीद कर प्लाटिंग की जा रही है। इन प्लाटिंग और सोसाइटियों के चलते धीरे-धीरे गाँवों में खेतिहर भूमि खत्म हो रही है। ये सारा खेल सिर्फ एक नियम के बल पर किया जा रहा है, वो नियम है ज़मींदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम की धारा-143।

प्रापर्टी डीलर किसान को बरगलाकर बाजार के मुकाबले औने-पौने दामों पर प्लाट खरीदता है और फिर धारा-143 के ज़रिये कृषि भूमि की ज़मीन का लैंडयूज बदलवा देता है। इससे न सिर्फ किसानों का हित मारा जाता है बल्कि इन अवैध कॉलोनियों में जो लोग आते भी हैं उन्हें तमाम जनसुविधाओं से महरूम रहना पड़ता है। सस्ते प्लाट के लालच में खरीददार भी मूलभूत सुविधाओं और कागज़ों की पूरी तरह तफ्तीश नहीं करते।

कानपुर-लखनऊ, सीतापुर रोड, रायबरेली रोड, सुल्तानपुर रोड, हरदोई रोड, फैजाबाद रोड, आईआईएम रोड के साथ-साथ शहर का शायद ही कोई हाईवे हो जहां इस तरह की अवैध सोसाइटी बसती न नज़र आ रही हों। 

300 से 800 रुपये वर्गफीट कीमत

इन अवैध प्लाटिंग में भूखंडों की कीमत 300 से 800 रुपये वर्ग फीट के बीच है। हालांकि किसान यहां अपनी जमीन 50 से 300 रुपये वर्ग फीट की औसत दर से ही बेच देते हैं। उनकी भूमि प्रापर्टी डीलर बीघा की दर पर खरीदते हैं। इस जमीन पर बिजली के दिखावटी पोल और कामचलाऊ सड़क बना कर प्लाटिंग कर दी जाती है। जिसके बाद शुरू होता है, लोगों को सस्ते भूखंडों के जाल में फंसाने का खेल। लगभग चौगुने दामों पर ये प्लाट बेचे जाते हैं।

प्लाटिंग करने के वास्तविक नियम ताक पर

  • प्लाटिंग करने के लिए उस क्षेत्र में संबंधित विकास प्राधिकरण, आवास विकास परिषद से लाइसेंस लेना जरूरी होता है।
  • सोसाइटी में प्लाटों के अलावा पर्याप्त सड़क, ग्रीन बेल्ट, कम्यूनिटी सेंटर, व्यवसायिक, क्लब, के लिए भी जगह छोड़नी होती है।
  • कुल बनने वाले प्लाटों या फ्लैटों में से 20 फीसदी गरीब आवासों के लिए भी बनाना जरूरी होता है।

गाँवों का बदलता जा रहा स्वरूप

आईआईएम रोड पर जहां लखनऊ विकास प्राधिकरण ने पहले से ही भूमि अर्जित कर ली है, वहां खेतों के स्थान पर अवैध कॉलोनियां बस चुकी हैं। सालों पहले कुछ इसी तरह से लखनऊ में त्रिवेणी नगर, खुर्रम नगर, कल्याणपुर, तकरोही, खरगापुर और ऐसी ही कई अनाधिकृत कॉलोनियों विकसित होती गईं। जिनको अवैध बताते हुए नगर निगम अब तक इनके विकास में कंजूसी करता है। इसके साथ ही गांव के मूल स्वरूप को बिगाड़ने और खेती का रकबा कम होने के खतरे भी इसी प्लाटिंग की वजह से पैदा हा रहे हैं।

रिपोर्टर - ऋषि मिश्र

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