हार से दुखी अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी के प्रवक्ताओं को उनके पदों से हटाया

लोकसभा चुनाव 2019 के परिणाम अखिलेश यादव के लिए निराश करने वाले रहें। ऐसे में समाजवादी पार्टी से एक खबर निकल के सामने आ रही है कि अखिलेश यादव ने सभी प्रवक्ताओं को हटा दिया है। पार्टी के मुख्य प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने लेटर हेड जारी कर जानकारी दी कि राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के निर्देश पर टीवी चैनलों पर पार्टी की बात रखने वाले सभी प्रवक्ताओं को तत्काल प्रभाव से हटा दिया गया है।

Update: 2019-05-24 12:44 GMT

लखनऊ। लोकसभा चुनाव 2019 के परिणाम अखिलेश यादव के लिए निराश करने वाले रहें। ऐसे में समाजवादी पार्टी से एक खबर निकल के सामने आ रही है कि अखिलेश यादव ने सभी प्रवक्ताओं को हटा दिया है। पार्टी के मुख्य प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने लेटर हेड जारी कर जानकारी दी कि राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के निर्देश पर टीवी चैनलों पर पार्टी की बात रखने वाले सभी प्रवक्ताओं को तत्काल प्रभाव से हटा दिया गया है। उन्होंने टीवी चैनलों से कहा सपा से किसी को भी चैनलों पर बहस करने के लिए न बुलाया जाए। 

5 सीटों पर सिमटी समाजवादी पार्टी

बसपा के साथ गठबंधन के बावजूद समाजवादी पार्टी को उत्तर प्रदेश से केवल 5 सीटें हासिल हुई। साल 2014 के लोकसभा चुनावों में भी पार्टी को 5 सीटें हासिल हुई थी जो बाद में हुए उपचुनावों में 3 सीटें और जीतकर 8 पहुंच गई थी। लेकिन इस पार्टी को बेहद नुकसान हुआ। अखिलेश यादव अपने परिवार की सीटें नही बचा पाए। यादव परिवार से कुल पांच लोग इस बार चुनाव लड़े, जिसमें से केवल मुलायम औऱ अखिलेश ही चुनाव जीत पाए। डिंपल यादव, अक्षय यादव और धर्मेंद यादव को इस बार हार का सामना करना पड़ा।समाजवादी पार्टी से मैनपुरी से मुलायम सिंह, आजमगढ़ से अखिलेश यादव को जीत हासिल हुई। आजम खान रामपुर से, शफीकुर्रहमान बर्क संभल से और एस.टी.हसन मुरादाबाद से जीते

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बीएसपी के साथ गठबंधन के फैसले पर आलोचना शुरू

पार्टी के कई वरिष्ठ नेता चुनाव हार गए हैं। पार्टी के अंदर और बाहर आलोचना भी शुरू हो गई है। गठबंधन से किसको फायदा हुआ या किसने फायदा उठाया इसपर भी बात होनी शुरू हो गई है। बीएसपी इस गठबंधन के साथ खुद को जीवित करने में सफल रही। साल 2014 में एक भी सीट जीतने वाली बसपा इस बार गठबंधन का फायदा उठाते हुए 10 सीट जीतकर उत्तर प्रदेश में बीजेपी के बाद दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आई है। अब अखिलेश यादव गंठबंधन को लेकर क्या फैसला लेते हैं  और बदतर हो चुकी स्थितियों से कैसे निपटते हैं इसपर सबकी नजरें टिकी हुई हैं।

(भाषा से इनपुट)

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