उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने लगाई 6 तरह के भत्तों पर रोक, लगभग 28 लाख सरकारी कर्मचारी होंगे प्रभावित

सरकार के इस फैसले का उत्तर प्रदेश के राज्य कर्मचारी संघ परिषद ने विरोध तो नहीं किया पर आपत्ति जताई है। वहीं प्रमुख विपक्षी पार्टियों कांग्रेस और सपा ने राज्य सरकार के इस फैसले को कर्मचारियों का मनोबल गिराने वाला बताया है।

Update: 2020-04-25 12:32 GMT

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने कोरोना महामारी को देखते हुए सरकारी कर्मचारियों को मिलने वाले भत्तों में कटौती है। योगी सरकार ने कुल 6 तरह के भत्तों पर रोक लगाई है, जिसमें विभागीय भत्ता, नगर प्रतिकर भत्ता, सचिवालय भत्ता, पुलिस भत्ता, महंगाई भत्ता (डी.ए.) और पेंशनरों को मिलने वाला महंगाई राहत शामिल है। इसे 31 मार्च 2021 तक स्थगित रखा जाएगा।

योगी सरकार के इस फैसले से 16 लाख से भी ज्यादा राज्य कर्मचारी और 11.82 लाख राज्य पेंशनर प्रभावित होंगे। सरकार का अनुमान है कि इससे राजकोषीय खाते में 10 हजार करोड़ रूपये तक की बचत होगी, जिसे कोरोना से संबंधित राहत कार्यों में लगाया जाएगा। इससे पहले केंद्र सरकार ने भी केंद्रीय कर्मचारियों को मिलने वाले विभिन्न भत्तों पर रोक लगाई थी।


सरकार के इस फैसले पर उत्तर प्रदेश के राज्य कर्मचारी संघ परिषद ने विरोध तो नहीं पर आपत्ति दर्ज कराई है। संघ के अध्यक्ष सुरेश कुमार रावत ने गांव कनेक्शन से फोन पर बात करते हुए कहा, "सरकार का यह फैसला उन कर्मचारियों के लिए मनोबल गिराने वाला है, जो अपना दिन-रात एक कर, अपने और परिजनों की जान को दांव पर लगाकर कोरोना महामारी से 24 घंटे लगातार लड़ रहे हैं।"

सुरेश रावत ने कहा कि कर्मचारी खुद अपनी इच्छा के अनुसार अपना वेतन कटाकर सरकारी फंड में दान कर रहे थे, ऐसे में सरकार द्वारा इस कदम को उठाने की जरूरत नहीं थी। "हालांकि यह कठिन समय है और इस कठिन समय में हम सरकार का विरोध नहीं करना चाहते, बस सरकार को भी ऐसे कोई भी फैसला लेने से कर्मचारियों को विश्वास में लेना चाहिए था," रावत कहते हैं।

इससे पहले केंद्र सरकार ने गुरुवार को 50 लाख केंद्रीय कर्मचारियों और 61 लाख पेंशनरों को दिए जाने वाले महंगाई भत्ते पर रोक लगाने का फैसला किया था। केंद्र सरकार के मुताबिक, केंद्रीय कर्मचारियों और पेंशनभोगियों पर ये रोक जून 2021 तक लागू रहेगी, जिससे सरकार को लगभग सवा लाख करोड़ रुपये की बचत होने की संभावना है।

कोरोना वायरस संक्रमण की वजह से सरकार पर पड़े आर्थिक बोझ के कारण यह फैसला लिया गया है। केंद्रीय कर्मचारियों को इस वित्तीय वर्ष में 17 फीसदी की बजाए 21 फीसदी महंगाई भत्ता मिलने की उम्मीद थी, लेकिन अब सरकार ने इस बढ़ोतरी पर रोक लगा दी है। इस वजह से केंद्रीय कर्मचारियों और पेंशनधारकों को करीब 18 महीने तक सिर्फ 17 फीसदी के हिसाब से महंगाई भत्ता मिलेगा।

हालांकि केंद्र और राज्य सरकार के इन फैसलों का प्रमुख विपक्षी दलों ने विरोध किया है। कांग्रेस सांसद और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि सरकार को कोरोना से जूझ कर जनता की सेवा कर रहे केंद्रीय कर्मचारियों, पेंशन भोगियों और देश के जवानों का महंगाई भत्ता काटने की बजाय लाखों करोड़ की बुलेट ट्रेन परियोजनाओं और सेंट्रल विस्टा परियोजनाओं को निलंबित करना चाहिए था। उन्होंने सरकार की इस फैसले को असंवेदनशील और अमानवीय निर्णय करार दिया।

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी सरकार के इस फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि मौजूदा वक्त में सरकारी कर्मचारियों को आर्थिक रूप से मुश्किल में डालना गैरजरूरी है। वहीं सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ट्वीट करते हुए कहा, "एक तरफ बिना अवकाश लिए अधिकारी कर्मचारी लोग अपनी जान पर खेलकर सामान्य दिनों से कई गुना काम कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ सरकार उन्हें ऐसा निर्णय लेकर हतोत्साहित कर रही है।"

अखिलेश यादव ने कहा कि पेंशन पर निर्भर रहने वाले बुजुर्गों के लिए तो यह निर्णय और भी घातक है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय प्रसाद लल्लू ने भी योगी सरकार के इस निर्णय की आलोचना की और इस फैसले को तुरंत वापस लेने की अपील सरकार से की। अभी देखना बाकी है कि सरकारी कर्मचारी इस पर अपनी क्या प्रतिक्रिया देते हैं। 

Similar News