जानिए अनुच्छेद 370 हटाए जाने के फैसले पर कश्मीरी पंडितों ने क्या कहा

Update: 2019-08-05 09:10 GMT

लखनऊ। राज्यसभा में गृहमंत्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का फैसला लिया है, सरकार के इस फैसले से पिछले कई वर्षों से कश्मीर से बाहर रह रहे कश्मीरी पंडितों ने स्वागत किया है।

पिछले कई वर्ष से दिल्ली में रह रहे पेशे से चिकित्सक डॉ. संजय कौल कहते हैं, "ये अच्छा फैसला है, अभी तक किसी भी राजनीतिक पार्टी ने ऐसा कोई फैसला नहीं लिया था, ये जो आर्टिकल 35 और आर्टिकल 35A है, अगर कोई बाहर शादी कर लेता है तो उसके सारे अधिकार खत्म हो जाते हैं, लेकिन वहीं पर जो पीओके से आजादी के समय जम्मू-कश्मीर आए थे। यहां पर 1947 में आए जो पांच-सात लाख लोग रह रहे हैं, उन्हें अभी तक स्थायी नागरिकता नहीं मिली हुई है। अभी तक उन्हें सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती, उनको वोट देने का अधिकार नहीं है। ये एक तरह का अन्याय है।"

वो आगे बताते हैं, "अभी तक ऐसा किसी भी सरकार ने फैसला नहीं लिया था, हम सरकार के इस फैसले से खुश हैं। कश्मीरी पंडितों के बारे में भी किसी सरकार ने सोचा तो।"

साल 1989-91 के शुरूआती दौर में, कश्मीरी पंडितों की एक बड़ी संख्या को घाटी से पलायन कर गई। तभी से कश्मीरी पंडित अलग-अलग सरकारी-वित्त पोषित रिफ्युजी कैंपों में रह रहे हैं, जिनमें पुर्खू, मुथी व मिश्रीवाला कैंप शामिल है। साल 2011-2012 में प्रवासी मुस्लिम व सिख परिवारों के साथ पंडित परिवारों को बड़ी मात्रा में जगती कैंप में भेज दिया गया, जहां अभी भी 4200 परिवार रह रहे हैं। ये कैंप जम्मू शहर से लगभग 20 किमी. दूर बसाया गया है। डॉ. संजय कौल के परिवार के कई सदस्य अभी भी जम्मू के कैंप में रह रहे हैं।

जम्मू में कश्मीरी पंडितों के लिए बनाया जगती कैंप

वहीं राज विनेश भट्ट कहते हैं, "एक अच्छा प्रयास है सरकार की तरफ से, हम सभी भारत के ही हैं, लेकिन जम्मू-कश्मीर को अलग कर दिया गया था, लेकिन ये पहली सरकार है जिसने इस बारे में सोचा। मुझे लगता है कि जिस तरह से देश चल रहा है वो दस साल तक भी नहीं चलता, लेकिन अब कुछ उम्मीद है। आप देखेंगे की जो कश्मीर का गरीब तबका है उसके हाथ में कुछ भी नहीं है, लेकिन जो अमीर लोग हैं, वो और अमीर हो गए हैं। लेकिन अब आर्टिकल 370 हटने से कुछ अच्छा तो जरूर होगा।"

लेकिन इन सबके बीच ऐसे भी कुछ लोग हैं जो सरकार के इस फैसले को गलत बता रहे हैं। दिल्ली में एक मीडिया संस्थान में जम्मू की करेस्पांडेंट सागरिका किस्सू इस समय जम्मू में ही हैं, वो कहती हैं, "मैं इस बारे में यही कहना चाहूंगी कि और लोगों से भी बात करनी चाहिए, लद्दाख के लोगों से क्या पूछा गया कि उन्हें क्या चाहिए, कारगिल के लोगों के बारे में बात नहीं किया गया क्यो वो यूनियन टेरिटरी चाहते थे हैं या नहीं। आपने तो मजाक बना दिया पूरे संविधान का। ये भी देखिए कल सुप्रीम कोर्ट में 35A की हियरिंग भी है, एक दिन पहले ये फैसला लिया। हमारे जम्मू-कश्मीर के कितने लोग इन सभी आर्टिकल के बारे में जानते हैं।"

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