फिल्म रिव्यू: ‘No means no’ को स्वरा ने अपने ही अंदाज में बता दिया 

Update: 2017-03-26 18:50 GMT
24 मार्च को निर्देशक अविनाश दास की फिल्म अनारकली आरावाली रिलीज हुई थी

फिल्म: अनारकली आरावाली

फिल्म निर्देशक: अविनाश दास

कलाकार: स्वरा भास्कर, संजय मिश्रा, पंकज त्रिपाठी


‘नो मींस नो’ पिछले साल अनिरुद्ध रॉय चौधरी ने अपनी फिल्म पिंक के जरिए हमें यह वाक्य समझाया था, साल 2017 में पत्रकार से निर्देशक बने अविनाश दास ने फिल्म अनारकली आरावाली में इसे दोहराया। फर्क इतना था कि पिंक में इस वाक्य को समझाने के लिए लड़कियों के वकील के रूप में अमिताभ बच्चन थे तो अनारकली में विक्टिम खुद ही अपने आरोपी को यही बात बिना किसी कोर्ट रूम के, बिना किसी वकील के, बिना बार-बार खुद को सही बताकर चिल्लाने के बजाय अनोखे अंदाज में समझाती है।

दरअसल हम ओपन फोरम में महिलावादी होने की खूब सारी बात करते हैं लेकिन असल जिंदगी में किसी के चरित्र का आंकलन करने में बिल्कुल भी वक्त नहीं लगाते। इस हफ्ते रिलीज हुई फिल्म अनारकली आरावाली में बिहार के आरा जिले की एक लोकगायिका की कहानी है हालांकि मूलरूप यह कहानी फैजाबाद की डांसर, सिंगर ताराबानो फैजाबादी से प्रेरित है। वह लहंगा पहनकर स्टेज पर कमर मटकाते हुए सबके सामने गाना गाती है, उसके गाने द्विअर्थी भी होते हैं। लोग उसके गाने पर सीटियां बजाते हैं तो हमारा समाज अपने हिसाब से उसके चरित्र का बायोडाटा तैयार कर देता है और प्रमाणिकता के लिए अपनी एक मुहर भी लगा देता है।

फिल्म में एक जगह स्वरा कहती हैं, ‘सबको लगता है कि हम गाने-बजाने वाले लोग हैं तो कोई भी आसानी से बजा भी देगा लेकिन अब ऐसा नहीं होगा।’ फिल्म इसी के इर्द-गिर्द घूमती है।

कहानी: अनारकली (स्वरा) बिहार के आरा जिले से ताल्लुक रखने वाली लोकगायिका है। उसने बचपन से ही स्टेज पर अपनी मां को गाते और डांस करते देखा है। एक स्टेज शो के दौरान उसकी मां की मौत हो जाती है। इसके बाद अनारकली भी इसी को अपना प्रोफेशन बना लेती है और रंगीला (पंकज त्रिपाठी) के ऑर्केस्ट्रा ग्रुप में शामिल हो जाती है। अनारकली इस ग्रुप में नंबर वन गायिका है।

नंबर वन है तो जाहिर है उसके कई फैन भी होंगे। आरा के विश्वविद्यालय के वीसी धर्मेंद्र चौहान (संजय मिश्रा) भी उसके जबर्दस्त ‘फैन’ हैं, यहां इंवर्टेट कॉमा इसलिए क्योंकि ये एक कलाकार और फैन के बीच की दीवार लांघ जाते हैं और पद बड़ा होने के कारण उसे अपनी जागीर समझकर सबके सामने स्टेज पर अश्लील हरकतें करने लगते हैं। अनारकली के काफी मना करने पर भी जब वे नहीं मानते तो वह गुस्से में आकर तमाचा जड़ देती है। पहले तो उसने मना किया और फिर उसकी मर्दानगी पर तमाचा भी जड़ दिया। अनारकली मानती है कि वह सती सावित्री नहीं है लेकिन वह अपनी मर्जी के खिलाफ कुछ भी नहीं करना चाहती।

अपने पद और पुलिस से लेकर राजनीति में पकड़ रखने वाला वीसी अब अनारकली के लिए मुश्किलें पैदा करता है। अनारकली को डराया जाता है और आम लड़कियों की वह भी एक वक्त पर हारकर शहर छोड़कर दिल्ली चली जाती है।

उसे यहां उसका एक फैन भी मिलता है जो उसे संगीत की साक्षात देवी मानता है, अनारकली उसका हाथ पकड़कर कहती है, ‘भइया हम गाना चाहते हैं’, यह सुनकर वह भावुक हो जाता है, तब हम सोचते हैं कि समाज में कहीं न कहीं बदलाव हो रहा है, बुरे लोग हर वक्त दबोचने के लिए हैं तो अच्छे लोग भी सपोर्ट करने से पीछे नहीं हटते।

अभिनय: फिल्म की लीड कलाकार हैं स्वरा भास्कर। जब वह वीसी और दरोगा के सामने दमदार अंदाज में पेश आती हैं तो वह फिल्म के हीरो की तरह लगती हैं और जब लोकगायिका के रूप में गाना गाती हैं तो हिरोइन। बिहारी भाषा बोलते हुए वह कतई बनावटी नहीं लगती। इससे पता चलता है कि उन्होंने किरदार के लिए काफी मेहनत की है। निल बटे सन्नाटा के बाद यह उनकी दूसरी सोलो फिल्म है और अभिनय बेजोड़ है। फिल्म में विलेन बने संजय मिश्रा को आप ज्यादातर कॉमिक रोल में देख चुके हैं लेकिन एक कलाकार की खासियत यही है कि वह विलेन के रोल में भी इतना खतरनाक लगता है कि हॉल में बैठे दर्शक उसे नापसंद करने लगते हैं। सहायक किरदार में पंकज त्रिपाठी ने भी बेहतरीन एक्टिंग की है।

फिल्म का दृश्य समझाते डायरेक्टर अविनाश दास

निर्देशन: पत्रकार से निर्देशक बने अविनाश दास बिहार के दरभंगा से ताल्लुक रखते है। पहली फिल्म के हिसाब से उनका प्रयास सराहनीय है और उम्मीद से काफी बढ़कर है। महिला सशक्तीकरण के मुद्दे के साथ देश की महिला लोककलाकारों की स्थिति को बेहतरीन ढंग से उठाया। दर्शक फिल्म के क्लाइमेक्स का पहले से अंदाजा लगाने लगते हैं लेकिन जब यह सामने आता है तो गजब लगता है, खासकर उस वक्त स्वरा के चेहरे के एक्सप्रेशन।

मजबूत पक्ष: फिल्म की कहानी, सभी कलाकारों का अभिनय।

कमज़ोर पक्ष: फिल्म कहीं न कहीं ‘पिंक’ का अडॉप्शन लगी।

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