संस्मरण: खीरे का रायता और रावण की पूजा

विजयादशमी Special (रावण की पूजा): यहाँ मैं आपको बताना चाहूँगा कि आखिर रावण की इस पूजा में होता क्या है। बचपन में जब पहली बार, साथ के बच्चों को बताया था कि हमारे यहाँ दशहरे पर रावण की पूजा होती है, तो उन्होंने खूब मज़ाक उड़ाया था। बोले थे कि वो तो राक्षस था, पापी था, फिर तुम उसे क्यों पूजते हो

Update: 2019-10-09 05:50 GMT
पूजा के लिए जमीन पर बनाया गया रावण का चित्र और उसके बीच रखी गई किताब।

ऋषभ गोयल

मैं ऑफ़िस की एक सहकर्मी से बात कर रहा था कि मेरा दशहरे पर घर जाने का कितना मन था, लेकिन अभी छुट्टी नहीं ले सका। बातों-बातों में हम दोनों अपने-अपने घरों में दशहरे पर होने वाली पूजा के बारे में बात करने लगे। मैंने बताया कि हमारे यहाँ रावण की पूजा होती है, ये सुनकर उसे काफ़ी हैरानी हुई।

बचपन में जब पहली बार, साथ के बच्चों को बताया था कि हमारे यहाँ दशहरे पर रावण की पूजा होती है, तो उन्होंने खूब मज़ाक उड़ाया था। बोले थे कि वो तो राक्षस था, पापी था, फिर तुम उसे क्यों पूजते हो? मेरे पास उनके सवालों का जवाब नहीं था। ऐसा लगा कि हमारे परिवार वाले कुछ गलत करते हैं। घर आकर पापा के सामने ये सारे सवाल दाग दिए। उन्होंने गोद में बिठाकर, प्यार से समझाया कि रावण बहुत ज्ञानी था। वो तो उसका अहंकार था जो उसे ले डूबा। हम ज़मीन पर हल्दी-चावल से रावण बनाते हैं और कामना करते हैं कि हम उसकी तरह ज्ञानी और तेजस्वी बनें, लेकिन अहंकार से दूर रहें। पूजा में तो हम भगवान राम का ही नाम लेते हैं और उन्हीं की स्तुति करते हैं।

उस दिन मुझे समझ आया था कि एक बात के कितने अलग-अलग पहलू हो सकते हैं। यहाँ मैं आपको बताना चाहूँगा कि आखिर रावण की इस पूजा में होता क्या है।

नवमी की रात को ही मम्मी खीरे का रायता जमाने रख देती हैं। ये समान्य रायते से अलग होता है क्योंकि इसमें दही जमाते समय ही खीरा डाल दिया जाता है। दशहरे की सुबह की शुरुआत इसी रायते के दर्शन से होती है।माँ रायते के ऊपर चाँदी का सिक्का रखकर दर्शन कराती हैं। हम कहते हैं, "पूजे रायता, तो होए पायता।"

नवरात्रि के पहले दिन बोई जाने वाली जौ

डैडी बताते हैं कि ये वाक्य हमारी दादी कहा करती थीं और तभी से ये दशहरे की रीतियों में शामिल हो गया है। यहाँ पायते का मतलब है 'दशहरा'।

इसके बाद शुरू होती हैं रावण महाराज का चित्र ज़मीन पर बनाने की तैयारियाँ। डैडी पास की डेरी से गोबर लेकर आते हैं जिनसे दस छोटे-छोटे उपले बनाए जाते हैं। इन उपलों पर लगाने के लिए मुझे कद्दू के फूल लेने के लिए भेजा जाता है, ये भी पूरे दस फूल। फिर माँ चावल और हल्दी को पीसकर एक पेस्ट जैसा बना लेती हैं। जहाँ पूजा होनी होती है, उस जगह को अच्छी तरह साफ़ करके, वहाँ इस पेस्ट से रंगोली जैसी बनाई जाती है। रावण बनाने का एक तय तरीका है और बरसों से ये इसी तरह से बनाया जा रहा है। इस पोस्ट के साथ मैं, कज घर पर बने रावण की फ़ोटो लगा रहा हूँ। फिर इस पर दस सिर रूपी उपले रखे जाते हैं और उन पर कद्दू के फूल और अगरबत्तियाँ लगाई जाती हैं।

सभी बच्चे रावण के बीच वाले हिस्से में अपनी किताबें रखते हैं। बचपन में जिस सब्जेक्ट से सबसे ज़्यादा डर लगता था, वही पूजा में रख देते थे। कहते थे कि रावण महराज, इस सब्जेक्ट की नैया तो आप ही पार लगाओ। हमारा परिवार मूलतः व्यापारियों का परिवार है, तो डैडी, ताऊजी वगैरह रावण के बीच वाले हिस्से में अपनी-अपनी दुकानों की चाबियाँ और बही-खाते भी रखते हैं। साथ ही, इस पर छेनी-हथौड़े जैसे टूल भी रखे जाते हैं।

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इस तरह की पूजा अक्सर बनिया (अग्रवाल समाज) में देखने को मिलती है। लेकिन मारवाड़ से ताल्लुक रखने वाले बनियो में ये देखने को नहीं मिलती। अग्रवाल समाज के राजवंशी बनियो में ये ज़्यादातर की जाती है।

इस पूरी तैयारी के बाद, रावण के इर्द-गिर्द चादरें बिछाई जाती हैं और शुरू होती है पूजा। ये पूजा किसी भी सामान्य पूजा जैसी ही होती है। सबको टीका लगाया जाता है, कलाई में कलावा बांधा जाता है। रावण के दसों सिरों पर भी रोली और हल्दी के टीके लगाए जाते हैं। एक चीज़ जो इस पूजा को खास बनाती है, वो है इसमें इस्तेमाल होने वाली कॉपी। ये कोई सामान्य कॉपी नहीं होती। ये दशहरे की खास कॉपी होती है, जो हर दशहरे पर निकाली जाती है।

इसमें सबसे पहले स्वस्तिक बनाया जाता है। फिर पूजा में उपस्थित सभी लोगों के नाम लिखे जाते हैं। इसके बाद, रोज़मर्रा की सभी ज़रूरी चीज़ों का भाव लिखे जाते हैं। जैसे दालें, पेट्रोल, डीज़ल, सोना, लोहा, सीमेंट, चावल, आटा, आदि। क्योंकि हर दशहरे की सारी जानकारी एक ही कॉपी में होती है, तो इसके ज़रिए पिछले साल के मुकाबले इस साल के भावों में आई कमी या बढ़ोतरी का भी पता चल जाता है।

इसके बाद, पूजा की शुरुआत में गणेश जी की ही आरती होती है। इसके बाद, राम स्तुति, दुर्गा माता की आरती, सरस्वती माता की वंदना जैसी कई आरतियाँ और भजन गाए जाते हैं। अंत में सभी लोग गायत्री मंत्र का उच्चारण करते हुए रावण की 5 या 7 परिक्रमा करते हैं और अपनी-अपनी जगह बैठ जाते हैं। इसके बाद, घर के सभी बच्चे अपनी-अपनी किताबें लेकर घर के बाहर जाते हैं और माना जाता है कि वे काशी पढ़ने गए हैं। वापस आकर वे सभी बड़ों का आशीर्वाद लेते हैं। इसके बाद, घर की बेटीयाँ सभी के कानों में नौरते (नवरात्रि के पहले दिन बोई जाने वाली जौ) रखती हैं और इसके लिए उन्हें पैसे मिलते हैं। यानी रक्षा बंधन और भाई दूज के अलावा पैसे कमाने का एक और त्योहार।

अब पूजा तो हो गई, लेकिन प्रसाद का क्या?

पूजा के बाद सभी लोग खीरे के रायते के साथ पूड़े (जिसे पुए, गुलगुले, आदि नामों से भी जाना जाता है)

खाते हैं। पूड़ों के साथ रायता खाने की रिवायत और किसी त्योहार पर नहीं होती।

इसी के साथ खत्म होता है दशहरे का रावण पूजन।

भारत कितना कमाल का देश है न? यहाँ एक ही त्योहार को मनाने के 100 अलग-अलग तरीके होते हैं। आपके यहाँ दशहरा कैसे मनाया जाता है?

(ये लेखक के अपने  निजी विचार)

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