बड़े नोट बंद होने से इलाज को तरस रहे ग्रामीण मरीज

Update: 2016-11-15 16:54 GMT
पति का इलाज कराने आयीं जनकदुलारी ने अस्पताल में पैसा जमा कर दिया, लेकिन दवा कहीं नहीं मिल रही।

बाराबंकी। नोट बंदी की मार से यूं तो हर आम और खास परेशान है, लेकिन अगर इसकी मार किसी को ज्यादा दर्द दे रही है तो वह है निजी अस्पतालों में बाहर से आए हुए मरीजों को। इन मरीजों को न इलाज मिल रहा है न खाना। सरकारी अस्पतालों में तो सरकार का डर है इसलिए यहां सौ पचास कम करके पांच सौ की नोट चल जाती है, लेकिन निजी अस्पतालों ने तो पूरी तरह से 500 और हज़ार का नोट लेना बन्द कर दिया है। मरीज मर रहे हैं, लेकिन उनको इलाज नहीं मिल पा रहा है। हजारों की बात करने वाले यह अस्पताल अब चिल्लर की बात कर रहे हैं।

अस्पताल कर्मी ने खिलाया दो दिन से भूखे तीमारदार को खाना

पन्नामऊ बाराबंकी के रहने वाले अनुज कुमार की मां का एक निजी अस्पताल में कैंसर का इलाज चल रहा है। अनुज ने बताया, “सुबह से शाम और शाम से सुबह पानी तो मिल जाता है, लेकिन खाना नहीं मिलता। किस ढाबे पर जाएं। पांच सौ का नोट कोई ले नहीं रहा है दो दिन से भूखे हैं। अगर पांच सौ का नोट चल जाए तो कुछ खाना खा लें।” अनुज की हालत जब अस्पताल के कर्मी बाबूलाल से देखी नहीं गयी तो उन्होंने उसे खाना खिलाने आया। हाथ में छह रुपए लिए होटल पर खाना खाने आए जब अनुज से गाँव कनेक्शन संवाददाता ने बात की तो उनका दर्द छलक आया और वह जेब से छह रुपए निकाल कर दिखाने लगा।

दवा की तलाश में कोसों दूर चलकर आयी महिला

सम्पूर्णा अस्पताल में अपने पति का इलाज कराने आयी जनकदुलारी के पास पैसे नहीं हैं पति बेहाल है। अस्पताल में पैसा जमा कर दिया, लेकिन दवा कहीं नहीं मिल रही है। दवा की तलाश में कोसों दूर पैदल चलकर आयी जनकदुलारी से जब गाँव कनेक्शन संवाददाता ने पूछा तो वह रो पड़ीं और बोलीं, “पति सीढ़ी से नीचे गिर गया है। लड़कियों को लाइन में खड़ा करके दो दिन में पन्द्रह हजार रुपए जो जमा किए थे उसे तो अस्पताल में जमा करा दिया अब दवा के लिए सुबह से भटक रही हूं, लेकिन नए नोटों का कोई छुट्टा नहीं दे रहा है और पुराना नोट चल नहीं रहा है आप इन लोगों से कह दें तो दवा मिल जाएगी।

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