शहरों में बढ़ते अपराधों के पीछे कहीं वायु प्रदूषण तो जिम्मेदार नहीं है

आंखों में मिर्च सी चुभने वाली शहरों की दमघोंटू हवा हमारे शरीर के साथ-साथ हमारे मन को भी बीमार कर रही है। वैज्ञानिकों के रिसर्च बताते हैं कि अपराधों और वायुप्रदूषण में गहरा संबंध है।

Update: 2018-06-15 10:01 GMT

वायु प्रदूषण सेहत के लिए हानिकारक है यह सभी को पता है। हम जानते हैं कि अगर वायु प्रदूषण का स्तर बहुत अधिक हो तो सांस की बीमारियों, दिल के रोगों, स्ट्रोक, फेफड़ों के कैंसर के अलावा याददाश्त की कमी और अल्जाइमर्स जैसी बीमारियों का जोखिम बढ़ जाता है। लेकिन हाल ही में इस बात के भी सबूत मिले हैं कि वायु प्रदूषण न केवल हमारी सेहत को नुकसान पहुंचाता है बल्कि हमारे व्यवहार को भी प्रभावित करता है।

1970 में अमेरिका में लेड रहित पेट्रोल की बिक्री शुरू की गई। इसके पीछे यह विचार था कि मुमकिन है गाड़ियों से निकलने वाले धुंए में मौजूद तत्व बच्चों में व्यवहार संबंधी समस्याओं, नई चीज सीखने में दिक्कत और लो आईक्यू के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं। खासकर बच्चों में देखा गया कि लेड या सीसे के वातावरण में रहने से उनमें उतावलापन, गुस्सा और कम आईक्यू के लक्षण दिखाई देते हैं, जो उनमें आपराधिक रवैये को बढ़ावा दे सकते हैं। पेट्रोल में से लेड निकालने के बाद 1990 में देखा गया कि अपराधों के स्तर में 56 प्रतिशत की गिरावट आई है।

चीन के तटीय शहर शंघाई में देखा गया कि वायु प्रदूषण खासकर सल्फर डाई ऑक्साइड की मौजूदगी में कुछ समय रहने पर भी लोगों को मानसिक समस्याओं के लिए अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। इसी तरह लॉस एंजिल्स में हुई एक स्टडी में देखा गया कि प्रदूषित वातावरण में रहने वाले किशोरों में आपराधिक प्रवृत्ति बढ़ी। हालांकि, इसमें बच्चों और मातापिता के बीच खराब संबंधों की भी चर्चा हुई थी।

यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि वायु प्रदूषण के कारण दिमाग में सूजन आ सकती है। इससे भी अधिक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि बहुत बारीक कणों वाले प्रदूषक भी मस्तिष्क के विकास में हानिकारक हैं क्योंकि ये न केवल मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुंचाते हैं बल्कि व्यवहार को भी प्रभावित करते हैं।

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अपराध से सीधा नाता



इस तरह सारे सबूत इस बात की ओर इशारा करते हैं कि वायु प्रदूषण और युवाओं के खराब बर्ताव में सीधा संबंध है। इतना ही नहीं बाद में होने वाले शोधों से पता चला कि इसके कई और गंभीर परिणाम भी हो सकते हैं। मसलन, अमेरिका के 9360 शहरों में 9 बरसों तक हुए शोध में पता चला कि वायु प्रदूषण की वजह से यहां अपराधों में बढ़ोतरी हुई। इसके पीछे वजह यह बताई गई कि प्रदूषित हवा में सांस लेने से बेचैनी बढ़ती है जो आपराधिक या अनैतिक बर्ताव को उकसाती है। इस रिसर्च से नतीजा निकाला गया कि जिन शहरों में वायु प्रदूषण का स्तर ऊंचा था वहां अपराधों का स्तर भी ज्यादा रहा।



ब्रिटेन में हुए रिसर्च से इस मुद्दे पर और ज्यादा जानकारी मिली। यहां दो वर्ष के समय में लंदन के अलग-अलग इलाकों में हुए अपराधों की तुलना की गई। विश्लेषण में तापमान, आर्द्रता और बारिश भी दर्ज की गई। इसके अलावा एयर क्वॉलिटी इंडेक्स (एक्यूआई) को भी ध्यान में रखा गया। एक्यूआई या हवा की गुणवत्ता की सूची के आधार पर देखा गया कि जब-जब प्रदूषण बढ़ा तब-तब लंदन में क्राइम रेट भी 0.9 प्रतिशत तक बढ़ा। इस तरह सबसे प्रदूषित दिनों में सबसे ज्यादा अपराध देखे गए। इस स्टडी से यह भी पता चला कि अपराध और प्रदूषण का संबंध लंदन के समृद्ध और गरीब दोनों तरह के इलाकों में एक जैसा था।

लेकिन यह बात भी गौर करने वाली है कि प्रदूषण के प्रभाव से जिन अपराधों में वृद्धि हुई वे छिटपुट किस्म के थे, जैसे, उठाईगीरी और जेब काटना वगैरह। शोधकर्ताओं के हिसाब से मर्डर और रेप जैसे गंभीर अपराधों पर वायु प्रदूषण के स्तर का कोई खास असर नहीं देखा गया।

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तनाव का एंगल

शोधकर्ताओं ने इसकी व्याख्या करते हुए बताया कि प्रदूषित हवा में रहने से हमारे शरीर में स्ट्रेस हार्मोन कॉर्टिसोल बढ़ जाता है। इससे व्यक्ति की विवेक क्षमता पर गलत असर पड़ता है और वह जोखिम का सही आंकलन नहीं कर पाता। इसीलिए जिन दिनों अधिक प्रदूषण रहा, उन दिनों लोगों में जोखिम लेने की प्रवृत्ति अधिक रही और अपराध भी बढ़े। इससे शोधकर्ताओं ने नतीजा निकाला कि वायु प्रदूषण कम करने से अपराध की दरों में गिरावट लाई जा सकती है।



हालांकि रिपोर्ट में माना गया कि दूसरे सामाजिक और वातावरणीय कारक भी लोगों के व्यवहार को प्रभावित करते हैं। मसलन दीवारों पर लिखी उलटी-सीधी बातें, टूटी खिड़कियों जैसे कारक अराजक माहौल का प्रतीक हैं और ऐसी जगह रहने वाले भी अराजक व्यवहार करने के लिए प्रेरित होते हैं।

अब धीरे-धीरे स्पष्ट होता जा रहा है कि वायु प्रदूषण का असर सेहत और वातावरण के अलावा भी दूसरी चीजों पर होता है। इसके बावजूद बहुत से देशों में वायु प्रदूषण का स्तर बहुत ऊंचा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, दुनिया के दस में से नौ लोग जहरीली हवा में सांस ले रहे हैं।

वायु प्रदूषण का लोगों के स्वास्थ्य और उनके बर्ताव पर क्या असर पड़ता है इसके बारे में बहुत कुछ जानना अभी बाकी है। अभी यह भी तय नहीं है कि उम्र, लिंग, आय, वर्ग और भौगोलिक इलाके इस संबंध को कैसे प्रभावित करते हैं। पर इसमें कोई शक नहीं है कि वायु प्रदूषण हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। इसकी रोकथाम के लिए देशों की सरकारों को ठोस कदम उठाने चाहिए। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दूसरी विश्व स्तरीय संस्थाओं के साथ "यूएन ब्रीथ लाइफ कैंपेन" चलाई है। इसके जरिए लोगों को प्रेरित किया जाता है कि वे एक महीने के लिए अपनी कार घर पर छोड़कर किसी दूसरे साधन से रोजकम से कम 42 किलोमीटर तय करें।

(इस लेख के लेखक गैरी हक हैं। गैरी स्टॉकहोम एनवायरनमेंट इंस्टिट्यूट यॉर्क सेंटर से जुड़े हुए हैं। यह लेख मूल रूप से theconversation.com में प्रकाशित हो चुका है।)

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