असम के खेतों में सीखा दौड़ लगाना, फिनलैंड में गोल्ड मेडल जीत लाई यह किसान की बेटी

हिमा दास ने फिनलैंड के टेम्पेरे में जारी आईएएफ वर्ल्ड अंडर-20 चैंपियनशिप की महिलाओं की 400 मीटर रेस में गोल्ड मेडल जीत कर इतिहास रचा दिया। हिमा ट्रैक इवेंट में गोल्ड मेडल जीतने वालीं पहली भारतीय एथलीट हैं।

Update: 2018-07-13 09:04 GMT

भारत में खेती और खेल दोनों की दशा लगभग एक जैसी है। एक जीवंत राष्ट्र के लिए दोनों का होना बेहद जरूरी है पर दोनों हमेशा लगभग हाशिए पर ही रहते हैं। लेकिन गुरुवार को एक छोटे से किसान की 18 बरस की लड़की हिमा दास ने दुनिया के सामने देश का सिर और ऊंचा कर दिया। हिमा दास ने फिनलैंड के टेम्पेरे में जारी आईएएफ वर्ल्ड अंडर-20 चैंपियनशिप की महिलाओं की 400 मीटर रेस में गोल्ड मेडल जीत कर इतिहास रचा दिया। हिमा ट्रैक इवेंट में गोल्ड मेडल जीतने वालीं पहली भारतीय एथलीट हैं। अब पूरे देश में हिमा और उसके शानदार प्रदर्शन की चर्चा है।

हिमा ने यह दूरी महज 51.46 सेकंड में पूरी की। दूसरे नंबर पर रोमानिया की एंड्रिया मिकलोस और तीसरे पर अमेरिका की टेलर मैंसन रहीं। बुधवार को हुए सेमीफाइनल में भी हिमा ने 52.10 सेकंड में दौड़ पूरी की और टॉप पर रहीं।

अपने कोच निपॉन दास के साथ हिमा दास, निपॉन को हमेशा से हिमा के दमखम पर भरोसा था।

गुरुवार को दौड़ के 35वें सेकेंड तक हिमा शीर्ष तीन खिलाड़ियों में भी नहीं थीं, लेकिन फिनलैंड से लगभग 6 हजार किलोमीटर दूर गुवाहाटी में हिमा के कोच निपॉन दास टीवी पर यह देखकर बिल्कुल भी परेशान नहीं थे। उन्हें भरोसा था हिमा के दमखम पर, निपॉन कहते हैं, "उसकी रेस आखिरी 80 मीटर में ही शुरू होती है।" हो भी क्यों न महज दो साल पहले दौड़ना शुरू करने वाली हिमा का 51.13 सेकंड का व्यक्तिगत प्रदर्शन फिनलैंड की इस खिताबी दौड़ से भी बेहतर है। अप्रैल 2018 में गोल्ड कोस्ट में खेले गए कॉमनवेल्थ गेम्स की 400 मीटर की दौड़ में हिमा दास छठे स्थान पर रही थीं। उन्होंने यह दूरी 51.32 सेकेंड में पूरी की थी।

पूर्वोत्तर राज्य असम के शहर गुवाहाटी से 140 किलोमीटर दूर एक गांव धींग गांव में रहने वाली हिमा के पिता रॉन्जित दास एक साधारण किसान हैं। हिमा दास रॉन्जित और जौमाली की छह संतानों में सबसे लाड़ली और सबसे छोटी है। हिमा को बचपन से ही फुटबॉल खेलना पसंद था। वह धान के खेतों के पास खाली पड़े मैदान में गांव के लड़कों के साथ फुटबॉल खेला करती थी। उसका खेल देखकर किसी ने उससे कहा कि वह एथलेटिक्स में हिस्सा क्यो नहीं लेती, और इस तरह हिमा स्थानीय स्तर की प्रतियोगिताओं में दौड़ने लगी।




अपने घर में मां के हाथ का खाना खाती हिमा दास

एक जिला स्तरीय प्रतियोगिता में उस पर नजर पड़ी निपॉन दास की, वह उस समय प्रदेश के खेल व युवा मामलों के मुख्यालय में एथलेटिक्स कोच थे। अखबार इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में उस दौड़ को याद करके निपॉन कहते हैं,"हिमा सस्ते से जूते पहने हुए थी लेकिन उसने 100 और 200 मीटर की दौड़ में गोल्ड जीता। वह हवा की तरह उड़ती थी, मैंने अरसे से ऐसी प्रतिभा नहीं देखी थी।"

निपॉन ने हिमा और उसके परिवार को बड़ी मुश्किल से इस बात के लिए मनाया कि हिमा अपना गांव छोड़कर गुवाहाटी में रहे और खेल की तैयारी करे। इसके बाद निपॉन ने गुवाहाटी में राज्य खेल अकादमी में भर्ती कराया। यहां बॉक्सिंग और फुटबॉल पर विशेष ध्यान दिया जाता था पर एथलेटिक्स के लिए कोई अलग से विंग नहीं था।

निपॉन तब से हिमा को गाइड करते आ रहे हैं। वह हिमा को अगस्त में होने वाले एशियन गेम्स की रिले टीम के लिए तैयार कर रहे थे लेकिन उन्हें भी भरोसा नहीं था कि हिमा उससे पहले ही एक वर्ल्ड चैंपियनशिप के व्यक्तिगत इवेंट में गोल्ड मेडल हासिल कर लेगी। 

आगे है लंबी राह: हिमा में गजब की प्रतिभा है लेकिन डर है कि उसका भी वही हाल न हो जो और खिलाड़ियों का हुआ है। हिमा ने यह जीत जूनियर इंटरनेशनल एथलेटिक्स मीट में हासिल की है अभी सीनियर लेवल पर उनकी परख बाकी है। उनका अपना 51.13 सेकंड का व्यक्तिगत प्रदर्शन भी इससे बेहतर है। 400 मीटर महिला दौड़ में मौजूदा विश्व रिकॉर्ड 47.60 सेकंड का है जो जर्मनी की मारिटा कोच के नाम है। उन्होंने यह कीर्तिमान 6 अक्टूबर 1985 को बनाया था जो अबतक बरकरार है। इसलिए इस जीत की खुशी मनाने से ज्यादा जरूरी है कि हम लोग हिमा को सभी तरह की मदद और समर्थन जारी रखें वरना कहीं ऐसा न हो कि एक दिन वह भी महज कुछ एशियन और कॉमनवेल्थ खेलों की टॉप टेन लिस्ट में रहकर ही गायब हो जाएं।

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