दिव्यांग भाई-बहन के मजबूत इरादों के आगे हारी मुश्किलें, पैरा जूडो में जीत चुके हैं कई राष्ट्रीय पदक

स्कूल से शुरू हुआ जूडो खेलने का सफर राष्ट्रीय स्तर तक पहुंच चुका है, दिव्यांगता को दे रहे मात

Update: 2019-09-13 14:14 GMT

गोंडा। "हम लोगों को लोग अपने दरवाजे पर खड़े नहीं होने देते थे। ताने मारते थे। लेकिन मुझे खुद अपने और भगवान पर यकीन था। आज जब हम लोग किसी प्रतियोगिता से मेडल जीतकर आते हैं तो वही लोग हमारी जय-जय करते हैं।" ये कहना है दृष्टिबाधित जूडो के राष्ट्रीय खिलाड़ी विवेकानंद का।

विवेकानंद (19 वर्ष) उत्तर प्रदेश जनपद गोंडा के हलधरमऊ ब्लॉक के हरसिंहपुर गांव के रहने वाले हैं और जन्म से दृष्टिबाधित हैं। उनके पिता अर्जुन शुक्ला, दो भाई परमानंद (27वर्ष), शिवानंद (25वर्ष) और एक बहन पूनम शुक्ला (16 वर्ष) भी जन्म से दृष्टिबाधित हैं। विवेकानंद और पूनम दृष्टिबाधित जूडो के बेहतरीन खिलाड़ी भी हैं। दोनों राष्ट्रीय स्तर की कई प्रतियोगिताओं में गोल्ड मेडल जीत चुके हैं।

विवेकानंद ने कहते हैं, "हम लोगों की शुरुआती पढ़ाई गोंडा में ही हुई। इसके बाद हम राजकीय दृष्टिबाधित इंटर कॉलेज लखनऊ गये। वहीं कुछ बच्चे जूडो खेलते थे जो मुझे अच्छा लगता था। पूरे हॉस्टल में उन खिलाड़ियों की चर्चा होती थी। मैंने यहीं से जूडो खेल शुरू किया। फिर हमने जनपद और राज्य स्तरीय की प्रतियोगिताओं में मेडल जीते। दिल्ली में आयोजित इप्सा नेशल ब्लाइंड पैरा जूडो प्रतियोगिता में मैंने गोल्ड मेडल जीता।"

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"सबसे बड़ा हमारा आत्म विश्वास होता है। अगर मैं कुछ ठान लेता हूं तो उसे पूरा करके ही मानता हूं। अभी तक मैंने राष्ट्रीय स्तर के मैच खेले हैं। मेरा सपना है कि मैं पैरा ओलंपिक खेलूं। इसके लिए मेहनत भी कर रहा हूं। इसमें मेरे कोच का काफी सहयोग है। एक बार एक मैच के दौरान मेरा दाया हाथ टूट गया था। तब कई लोगों ने कहा कि तुम यह खेल छोड़ दो, लेकिन मैंने उनकी एक न सुनी। कोच और मेरे माता-पिता हमेशा हम लोगों का हौसला बढ़ाते रहते हैं। " विवेकानंद ने आगे बताया।

पूनम ने जूडो में हरियाणा, दिल्ली, लखनऊ, गोरखपुर सहित कई जगहों पर नेशनल गेम खेला है और अब तक 12 गोल्ड व चार सिल्वर मेडल जीत चुकी हैं। " वर्ष 2012 से जूडो खेल रही हूं। गोरखपुर में आयोजित नेशनल पैरा जूडो प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीता था। मेरे भाई विवेकानंद ने मुझे जूडो खेलने के लिए प्रेरित किया। विवेकांनद मेरा भाई ही नहीं बल्कि एक पिता की तरह मेरी देखभाल करता है। कई बार जब सफर करती हूं तो लोग मुझसे कहते हैं, मैंने आपको कहीं देखा है। मैं उनसे कहती हूं, पेपर या टीवी में देखा होगा। मैं एक नेशनल खिलाड़ी हूं। मेरे घर वाले हमेशा मेरा मनोबल बढ़ाते रहते हैं। वे हमेशा पढ़ाई और खेल पर ध्यान देने की बात कहते हैं। इतना कहते-कहते पूनम के चेहरे पर एक अलग सी हंसी आ गई।

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विवेकानंद के जूडो कोच घनश्याम मौर्या ने बताया, "आम जूडो से दृष्टिबाधित बच्चों का जूडो थोड़ा भिन्न होता है। लेकिन जोश और हिम्मत एक जैसा ही है। विवेकानंद और उसकी बहन बहुत जुनूनी हैं। दोनों में कमाल की सीखने की क्षमता है। विवेकानंद को जो दांव पेंच बताया जाता है वह उसे बहुत तेजी से सीखता है। अगर हाथ से किसी खिलाड़ी को पकड़ लेता है तो उसे छोड़ता नहीं है। ये छोटी-छोटी चीजें हैं जो उसे दूसरे बच्चों से अलग करती हैं।"

"जिसके पांच में से चार बच्चे दिव्यांग (दृष्टिबाधित ) हों उस बाप पर क्या गुजरती होगी, इस बात को मेरे अलावा शायद ही कोई महसूस कर पाए। चार बच्चे दिव्यांग पैदा हुए तो लोग हम लोगों से नफरत करने लगे। लोग हमारे बारे में पता नहीं क्या-क्या कहते थे। लेकिन मेरे बच्चों ने अपनी काबिलियत और हुनर से लोगों लोगों का मुंह बंद कर दिया। जो कल तक बुराइयां करते थे वे आज इनकी तारीफ करते थकते नहीं हैं।" अर्जुन शुक्ला अपने बच्चों के बारे में गर्व से कहते हैं।

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