इनसे मिलिए, 80 की उम्र में दूसरों की मदद करना ही है इनका मकसद

Update: 2017-04-21 12:30 GMT
दुइजी अम्मा।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

शंकरगढ़ (इलाहाबाद)। साल 2005 में नोबेल पुरस्कार से नामित दुइजी अम्मा किसी समय अपने परिचय की मोहताज नहीं थी, लेकिन आज उनकी कोई सुध नहीं ले रहा जब वो बीमार हैं। 80 साल की उम्र में भी अम्मा में लोगों की मदद करने का ऐसा जज़्बा है कि भले वो न चल पाती हों लेकिन बैठे-बैठे ही जब तक लोगों की समस्याओं को सुलझा न लें, उन्हें चैन नहीं पड़ता।

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“पूरे दिन पहाड़ में पत्थर तोड़ते थे, ठेकेदार को जितना मन होता था उतनी मजदूरी दे देते थे, ठेकेदार की मनमानी से हम ऊब चुके थे, इनके खिलाफ किसी को तो आवाज़ उठानी ही थी, तो शुरुआत मैंने ही कर दी।” ये कहना है दुइजी अम्मा का। अम्मा ने ठेकेदार की मनमानी से ऊबकर महिला मजदूरों के खिलाफ न सिर्फ आवाज़ उठाई बल्कि शंकरगढ़ ब्लॉक की पहली मजदूर महिला ठेकेदार बनीं। महिलाओं को उनके काम का पैसा उनके हाथ में मिलने लगा और इन्हें बंधुवा मंजदूरी से मुक्ति मिली।

  घर बैठे मन नहीं लगता, क्या करें मजबूरी है, पहले जब तक एक दो केस सुलझा न लेती थी चैन नहीं मिलता था। चल नहीं सकती हूं अभी, पर जानकारी तो पूरी है। घर पर ही कोई केस लेकर आ जाता है तो उसे सही रास्ता बता देते हैं।
दुइजी अम्मा

इलाहाबाद जिला मुख्यालय से 65 किलोमीटर दूर शंकरगढ़ ब्लॉक से दक्षिण दिशा में जूही कोठी गांव है। इस गांव की एक मजदूर निरक्षर महिला दुइजी अम्मा बताती हैं, “बहुत हिम्मत करके मैंने ठेकेदार बनने की सोची, महिलाओं का मजबूत संगठन था मेरे पास, समूह में मिलकर जमा पैसे से मैंने पांच हजार रुपए निकालकर लीज (पहाड़ खनन का पट्टा) छह एकड़ का अपने नाम कराया।” वो आगे बताती हैं, “महिलाओं का संगठन अब हमारे यहां काम पर आने लगा था, कुछ समय बाद पुरुष भी काम मांगने लगे थे, एक साल में मैंने छह और महिलाओं को ठेकेदार बनाया जिनके देखरेख में हजारों महिलाएं मजदूरी का काम करती थीं।”

चलने में होती है परेशानी, लेती हैं बैसाखी का सहारा।

अम्मा बताती हैं, “एक समय था जब आए दिन पत्रकारों और अधिकारियों के फ़ोन आया करते थे लेकिन छह महीने मैंने कई पत्रकारों को फ़ोन किया कि हम पैरों से चल नहीं पा रहें हैं, किसी ने आज तक सुध नहीं ली।” दुइजी अम्मा ने पैसे के बचत की शुरुआत महिला समाख्या के समूहों से जुड़कर की थी, जिसमें 20 महिलाएं अपनी मजदूरी के 20 रुपए हर महीने जमा करती थी, अब ये 100 रुपए जमा करने लगी हैं। शुरुआती दिनों में कई तरह की मुश्किलें आईं लेकिन दुइजी अम्मा ने हार नहीं मानी।

उम्र 80 साल लेकिन जुझारूपन पुराना

इस उम्र में पहुंचने के बाद भी अम्मा के जुझारूपन में कोई कमी नहीं आई है। अम्मा को पैरों से चलने में परेशानी है। वो कहती हैं कि अगर वो पैरों से चलने लगें तो अभी और काम कर सकती हैं। साथ ही बाल-विवाह, हिंसा, छेड़छाड़, सरकारी योजनाओं की जानकारी, पट्टे सम्बन्धी मसलों को निपटानो का दावा करती हैं।

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