ट्रेन में तेजाब हमले के बाद सहम गईं एसिड पीड़िताएं

Update: 2017-03-26 12:21 GMT
शीरोज कैफे में काम करने वाली एसिड पीड़ित महिलाएं डरी हुई हैं।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। रायबरेली से लखनऊ आ रही महिला रजोली (बदला नाम) को तेज़ाब पीने की घटना के बाद से उनके साथ शीरोज कैफे में काम करने वाली एसिड पीड़ित महिलाएं डरी हुई हैं। वो अब अकेले बाहर नहीं निकल रही हैं।

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2008 में छठी क्लास में किसी अनजान द्वारा एसिड अटैक की शिकार हुई गरिमा उदास आवाज़ में बोलती हैं, “जो रजोली जी के साथ हुआ वो हमारे साथ भी हो सकता है। मेरे घर वाले बहुत डरे हुए हैं। मम्मी-पापा बार-बार फोन करके हालचाल पूछ रहे हैं। अकेले बाहर जाने से मना कर रहे हैं। हम यहां शीरोज कैफे में बेख़ौफ़ घूमते थे, लेकिन अब मन में एक डर पैदा हो गया है। हम एक बार दर्द भुगत चुके हैं दोबारा दर्द नहीं भुगतना चाहते हैं।”

लखनऊ स्थित शीरोज कैफे में सात एसिड पीड़ित महिलाएं काम करती हैं। मेरठ की रहने वाली आसमां बताती हैं, “शीरोज में आने के बाद हम निडर और खुशहाल हो गए थे, लेकिन इस घटना के बाद डर बढ़ गया है। मुझ पर तेजाब फेंकने वाले ने तो मजिस्ट्रेट के सामने ही मुझे बोला था कि बाहर आते ही तुम्हें मार देंगे। मेरी सास अब भी कहती है कि जहां नज़र आओगी वहीं जला देंगे।”

आसमां पर एसिड उसके ससुराल के लोगों ने ही डाला था। आसमां पर एसिड तब डाला गया जब वो गर्भवती थीं। उसके ससुराल वाले उसे अपने घर पर नहीं रखना चाहता थे। आसमां ने बताया, “जब मैं गर्भवती थीं तो उन्हें डर था कि अगर बच्चा हो गया तो उसे अपनाना पड़ेगा, इससे बचने के लिए उन्होंने मेरे पेट पर एसिड फेंक दिया। मेरा बच्चा मर गया। मेरे पति और मेरे जेठ अभी जेल में हैं, लेकिन देवर ससुर और सास बाहर है। वो मुझ पर कभी भी हमला कर सकते है। इस बात से अब बहुत डर लगने लगा है।”

शीरोज कैफे में काम करने वाली रेशमा बताती हैं, “रजोली के साथ जब यह घटना हुई उसके बाद से तो फिर डर लगने लगा है। मैं तो कुछ महीनों से बिना चेहरे पर दुपट्टा बांधे ही बाहर आने-जाने लगी थी, लेकिन घटना के बाद के दिन से मैं बिना दुपट्टा बांधे बाहर नहीं निकल रही हूँ। मुझ पर तो मेरे पति ने ही तेज़ाब डाला था। वो अब जेल से बाहर है और लखनऊ में ही रहता है।

आराम से मिल जाता है एसिड

2013 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा एसिड बेचने पर पाबन्दी लगाने के बावजूद आज भी एसिड आसानी से हर जगह उपलब्ध है। एसिड की आसानी से उपलब्धता के कारण ही आसानी से एसिड की घटनाएं हो रही है।

एसिड अटैक पीड़िता प्रीती बताती हैं, “नवीन गल्ला मंडी के पास ज़्यादातर दुकानों में एसिड उपलब्ध है। हमने एक बार एक सात साल की लड़की को चॉकलेट की लालच देकर एसिड लाने भेजा थे। थोड़ी देर में वो लड़की कोल्ड ड्रिंक की बोतल में तेजाब लेकर आ गयी। दुकानदार ने एक सात साल की लड़की को एसिड दे दिया। गोमती नगर में भी एकबार ऐसा ही हुआ। मैं एसिड कैम्पैन का ड्रेस पहनी थी और एक दुकानदार से एसिड मांगी तो उसने बिना कुछ पूछे मुझे एसिड लाकर दे दिया। राजधानी लखनऊ में जब यह स्थिति है तो गाँवों में क्या स्थिति होगी। सरकार को एसिड की बिक्री पर सख्ती से प्रतिबन्ध लगाना होगा।प्रतिबन्ध लगाए बगैर स्थिति में बदलाव नहीं आने वाला है।

आने जाने के लिए गाड़ी नहीं

शीरोज कैफे में काम करने वाली एसिड पीड़ित महिलाएं नवीन गल्ला मंडी के पास एक हॉस्टल में रहती हैं। कैफे से काम करके ये महिलाएं रात दस बजे के करीब हॉस्टल जाती है। प्रीति बताती हैं कि हमारे पास कोई गाड़ी नहीं है। हम उबेर और ओला से रोजाना शाम को जाते हैं। रोजाना अलग-अलग ड्राइवर के साथ हमें जाना पड़ता हैं। हमें डर लगता है। हमें एक गाड़ी उपलब्ध कराई जाए। गाड़ी के सम्बन्ध में छाँव फाउंडेशन के आशीष बताते हैं कि हमारे पास पहले एक गाड़ी हुआ करती थी, लेकिन ज़्यादा खर्च आने के कारण हम ज़्यादा दिनों तक हम खर्च का वहन नहीं कर सके।

पुलिस सुरक्षा को लेकर आश्वस्त करे

छांव फाउंडेशन के आशीष कहते हैं कि इस घटना के बाद यहां काम करने वाली महिलाएं डरी हुई है। पुलिस को सुरक्षा को लेकर अब आश्वस्त करना होगा। पुलिस कैफे पर सुरक्षाकर्मी लगाए या जिस भी तरह से मुमकिन हो सुरक्षा दें। एसिड अटैक का इनके मन से डर निकालना बहुत ही मुश्किल होता है। हम इस सम्बन्ध में यूपी पुलिस से लगातार सम्पर्क में है।

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