अप्रैल महीने में बाजरे की खेती की शुरुआत कर दी जाती है, ऐसे में किसान अभी से बाजरे की खेती की तैयारी शुरु कर सकते हैं। कम सिंचाई वाले क्षेत्रो में इसकी खेती भी की जा सकती है।
राजा दिनेश सिंह कृषि विज्ञान केंद्र, कालाकांकर, प्रतापगढ़ के प्रमुख वैज्ञानिक एके श्रीवास्तव बताते हैं, “प्रतापगढ़, इलाहाबाद, सुल्तानपुर जैसे कई जिलों में ज्वार बाजरा की खेती की जाती है, इसकी खेती कम पानी में की जा सकती है, पशुओं के चारे के साथ ही आजकल बाजार में बाजरे का अच्छा दाम भी मिलने लगा है।
बाजरा के लिए हल्की या दोमट बलुई मिट्टी सही होती है, भूमि का जल निकास उत्तम होना आवश्यक है।बाजरा की संस्तुत संकुल किस्मों आईसीएमवी-221, आईसीटीपी-8203, राज-171, पूसा कम्पोजिट-383 तथा संकर किस्मों यथा 86 एम-52, जीएचबी-526, जीएचबी-558 और पीबी180 की बुवाई करें।
उर्वरकों का प्रयोग
भूमि परिक्षण के आधार पर उर्वरको का प्रयोग करें। यदि भूमि परिक्षण के परिणाम उपलब्ध न हो तो संकर प्रजाति के लिए 80-100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश और देशी प्रजाति के लिए 40-50 किलो नाइट्रोजन, 25 किलोग्राम फास्फोरस और 25 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर प्रयोग करें।
बीज का उपचार
यदि बीज उपचारित नहीं है तो बोने से वहले एक किलो बीज को एक प्रतिशत पारायुक्त रसायन या थिरम के 2.50 ग्राम से शोधित कर लेना चाहिए।
निराई-गुड़ाई
बुवाई के 15 दिन बाद कमजोर पौधों को खेत से उखाड़कर पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेमी कर ली जाए। साथ ही साथ घने स्थान से पौधे उखाड़कर खाली स्थानों पर रोपित कर लें, खेत में उगे खरपतवारों को भी निराई-गुड़ाई कर के निकाल देना चाहिए।
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