एक बच्चे की मौत कह रही है ग्रामीण यूपी में झोलाछाप डॉक्टरों की कहानी

Update: 2017-01-06 16:38 GMT
एनआरएचएम की वेबसाइट के अनुसार यूपी में पांच हजार डॉक्टरों की कमी है। प्रदेश की जनसंख्या 22 करोड़ है और डॉक्टरों की संख्या 11 हजार है।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। औरैया जनपद में स्वास्थ्य विभाग को 98 डॉक्टर चाहिए जबकि वर्तमान समय में सिर्फ 32 डॉक्टर ही कार्यरत हैं। डॉक्टरों की कमी की वजह से ग्रामीण झोलाछाप डॉक्टरों को दिखाने को मजबूर हैं जिसकी वजह से सोमवार को 15 वर्षीय हिमांशु की जान चली गई।

औरैया जिला मुख्यालय से 60 किलोमीटर दूर बिधूना ब्लॉक से पश्चिम दिशा में नगला निरंजन गाँव है। इस गाँव में रहने वाले गिरजेश पाल (43 वर्ष) का बड़ा बेटा हिमांशु सोमवार को बिधूना पढ़ने गया। हिमांशु पाल के अंगुली में चोट लग गयी थी, स्कूल से लौटते वक्त बिधूना स्थित बंगाली क्लीनिक पर हिमांशु दवा लेने गया। वहां के डॉक्टर ने एक इंजेक्शन लगा दिया। परिवार का आरोप है कि इंजेक्शन लगते ही हिमांशु बेहोश होने लगा और कुछ ही देर में उसकी मौत हो गयी।

वर्ष 2016 में स्वास्थ्य राज्यमंत्री शिव प्रताप यादव ने भी इस बात की स्वीकार किया था कि प्रदेश के 38 फीसदी स्वास्थ्य केंद्रों में ताला पड़ चुका है। यही नहीं प्रदेश में 1500 से ज्यादा स्वास्थ्य केंद्रों की कमी है। एनआरएचएम के अनुसार उत्तर प्रदेश में 5,172 पीएचसी की ज़रूरत है, जबकि सिर्फ 3692 ही मौजूद हैं। हिमांशु के चाचा दिनेश पाल (41 वर्ष) का कहना है, “डॉक्टर के इंजेक्शन लगने के 10-15 मिनट बाद ही हमारा भतीजा चला गया।” वो आगे कहते हैं, “जब तक मैं मौके पर पहुंचा तब तक वो मर चुका था। डॉक्टर ने भागने की कोशिश की लेकिन आस-पास के दुकानदारों ने उसे पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया।”

एनआरएचएम की वेबसाइट के अनुसार यूपी में पांच हजार डॉक्टरों की कमी है। प्रदेश की जनसंख्या 22 करोड़ है और डॉक्टरों की संख्या 11 हजार है।

ऐसे में हर बीस हजार लोगों पर एक डॉक्टर है जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार एक हजार लोगों पर एक डॉक्टर होना चाहिए। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की हालिया रिपोर्ट के अनुसार शहरों में सर्जरी, स्त्री रोग और शिशु रोग जैसे चिकित्सा के बुनियादी क्षेत्रों में 50 फीसदी डॉक्टरों की कमी है। ग्रामीण इलाकों में तो यह आंकड़ा 82 फीसदी तक पहुंच जाता है।

यहाँ के सामुदायिक केंद्र पर प्रतिदिन लगभग 100 गाँव से मरीज आते हैं,वर्तमान समय में 100 मरीज प्रतिदिन आ जाते हैं। हमारे यहाँ पांच स्पेशलिस्ट डॉ चाहिये लेकिन एक भी नहीं है। चार डॉक्टर तो हैं लेकिन पांच स्पेशलिस्ट नहीं हैं। सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर पर्याप्त डाक्टर नहीं हैं, लेकिन जब भी जिस स्वास्थ्य केंद्र को जरूरत पड़ती है हम वहां सामुदायिक केंद्र से डॉ भेज देते हैं।
डॉ. मनोज कुमार, अधीक्षक,सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बिधूना

औरैया के बिधूना ब्लॉक के 73 ग्राम पंचायत में 432 गाँव हैं। पूरे ब्लॉक में पांच प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और एक बिधूना ब्लॉक में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र है। यहाँ डॉक्टर तो हैं लेकिन स्पेशलिस्ट एक भी नहीं हैं। इस कारण ग्रामीणों को मजबूरी में प्राइवेट क्लीनिक जाना पड़ता है। इन प्राइवेट सेंटरों पर डाक्टरों के पास न तो डिग्री होती है और न ही पर्याप्त अनुभव जिसकी वजह से हिमांशु की तरह कई बच्चों को अपनी जान गंवानी पड़ती है।

मुख्य चिकित्साधिकारी डॉक्टर विनाेद सागर ने बताया कि जिले में 98 डाक्टर चाहिए जबकि वर्तमान समय में 32 डॉक्टर ही कार्यरत हैं। 15 डॉक्टरों ने ज्वाइन तो किया लेकिन अभी तक आये नहीं। अगर इस जिले में पर्याप्त डॉक्टर मिल जाएं तो सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से लेकर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तक की स्थिति बेहतर हो सकती है।

झोलाछाप डॉक्टरों पर नहीं कस रही नकेल

केवल हिमांशु ही नहीं आए दिन झोलाछाप डॉक्टरों के इलाज कराने के चक्कर मरीजों की मौतें होती रहती है। गाँव कनेक्शन ने कई जिलों में जब इस बाबत जानकारी लेनी चाही कि ऐसे डॉक्टरों पर कार्रवाई क्यों नहीं होती तो अधिकारियों ने ये ही जवाब दिया कि समय-समय पर अभियान चलाकर इन पर कार्रवाई की जाती है। एटा, कन्नौज, मैनपुरी, इटावा समेत कई जिलों के स्वास्थ्य विभाग प्रशासन को तो इतना भी नहीं पता कि जिले में झोलाछाप डॉक्टर और फर्जी क्लीनिक चल रहे हैं। एटा के सीएमओ डा.आरसी पांडेय कहते हैं कि समय समय पर अभियान चलाया जाता है, शिकायत मिलने पर कार्रवाई की जाएगी।

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