2015 में 9 हजार छात्रों ने की थी आत्महत्या, आप सिर पर न सवार होने दें परीक्षा का भूत

Update: 2017-03-17 17:10 GMT
कुछ छात्र परीक्षा खराब होने के बाद असफलता की डर से अपनी ज़िन्दगी खत्म कर लेते हैं।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। प्रदेश में बोर्ड परीक्षाएं शुरू हो गयी हैं, कुछ छात्र बोर्ड परीक्षा को ज़िन्दगी मान लेते हैं और परीक्षा खराब होने के बाद असफलता की डर से अपनी ज़िन्दगी खत्म कर लेते हैं। मगर ऐसे परीक्षार्थी निराश न हों।

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लखनऊ से अंजली (17 वर्ष) पढ़ने में शुरू से काफी अच्छी थी। बचपन से ही हर परीक्षा में अंजली बेहतर नम्बर लाती थी। इस बार अंजली बारहवीं का परीक्षा देने वाली हैं, लेकिन परीक्षा से दो महीना पहले से ही अंजली ने खाना पीना और पढ़ना दोनों बंद कर दिया। स्वयं और परिवार की उम्मीदों के कारण अंजली के मन में डर भर गया था। अंजली बेहतर करना चाहती थीं, लेकिन बेहतर करने की चाह को सकारात्मक बनाने की जगह नकारात्मक हो गयी और बीमार रहने लगी। अंत में परिवार वालों ने उसे डाक्टर को दिखलाया। साइकोलोजिस्ट के इलाज से अंजली अब ठीक है।

राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के 2014 के रिपोर्ट के अनुसार, भारत में परीक्षा में असफल होने के डर और असफल होने से 18 वर्ष से कम आयु तक के 1284 छात्रों ने आत्महत्या कर अपनी ज़िन्दगी खत्म कर ली। आत्महत्या करने वाले छात्रों में 14 वर्ष से कम आयु वर्ग के छात्रों की संख्या 163 थी तो 14 से 18 आयु वर्ग के छात्रों की संख्या 1121 थी। 2015 के आंकड़ों के अनुसार, लगभग 9 हज़ार छात्रों ने आत्महत्या की थी।

यूपी में चल रही हैं यूपी बोर्ड की परीक्षाएं। फोटो- महेंद्र पाडेंय

लोग क्या कहेंगे?

लखनऊ की साइकोलोजिस्ट डॉ. कविता बताती हैं, ‘’पेपर खराब होने या पेपर में नतीजे खराब आने की डर से आत्महत्या करने वाले छात्रों की पीछे प्रमुख कारण उनकी खुद की, परिवार की और आसपास की लोगों की उम्मीदें होती हैं। बच्चे पेपर खराब होने के बाद इस डर में जीने लगते हैं कि अगर नतीजा ठीक नहीं आया तो आसपास के लोग क्या कहेंगे? मैंने माता-पिता का भरोसा तोड़ा है। छात्र नकारात्मक होते जाते हैं और अगर कोई सहारा नहीं मिले तो नकारात्मकता आत्महत्या की तरफ बढ़ जाती है।’’

अफसोस के सिवा कुछ नहीं बचता

डाँ कविता बताती हैं कि परीक्षा परिणाम आने के दौरान ऐसी कहानी हर साल अख़बारों में छपती है। छात्र परीक्षा से पहले, परीक्षा के समय से ज्यादा परेशान परीक्षा के बाद होते हैं। नतीजे को लेकर उनमें डर समाया रहता है। कई बार छात्र खुद का मूल्यांकन ठीक से नहीं कर पाते हैं और आत्महत्या कर लेते हैं और बाद में नतीजा बेहतर आने पर परिजनों के पास अफ़सोस के सिवाय कुछ नहीं बचता है।

क्या कहते हैं शिक्षक

कालीचरण इंटर कॉलेज के प्रमुख महेंद्र नाथ राय बताते हैं, ’छात्रों पर दबाव परिजनों की आवश्यकता से ज्यादा अपेक्षा और आसपास के लोगों का व्यवहार के कारण होता है। हम शिक्षक तो अपने बच्चों की क्षमता पहचानते हैं, लेकिन परिजन आवश्यकता से ज्यादा बच्चों से उम्मीद लगा लेते हैं। छात्र परेशान हो जाते हैं और आत्महत्या कर लेते हैं। लोगों को बच्चों से सहानुभूति रखनी चाहिए।’

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