पिछले साल जो पांच करोड़ पेड़ लगेगे थे वो अब कहां हैं ?

Update: 2017-03-23 18:09 GMT
पांच करोड़ पौधों के संरक्षण का दावा झूठा साबित हुआ।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। पर्यावरण का संतुलन बनाए रखने के लिए पिछले साल उत्तर प्रदेश में पांच करोड़ पौधे लगाकर रिकॉर्ड बनाया गया था। इन पौधों की निगरानी करने के लिए सेटेलाइट सिस्टम का भी प्रयोग किया जाना था लेकिन सेटेलाइट सिस्टम से पौधों की निगरानी के दावे हवा-हवाई साबित हुए।

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उत्तर प्रदेश में वर्ष 2015-16 में 76923.23 हेक्टेयर भूमि पर पांच करोड़ पौधे लगाने का लक्ष्य रखा गया था, जिसे 24 घंटे में पूरा भी किया गया था। अधिकारियों का दावा था कि इन पौधों का संरक्षण भलीभांति होगा। पूर्व मुख्य वन संरक्षक अधिकारी उमेंद्र शर्मा बताते हैं, “लगाए गए पांच करोड़ पौधों में से एक-दो लाख पौधे खराब हुए थे, जिन्हें दोबारा से उन्हीं जगहों पर लगा दिया गया था। वर्तमान समय में उन पौधों की क्या स्थिति है इस बात की जानकारी मुझे नहीं है।”

अपर प्रमुख वन संरक्षण कृषि एवं वानिकी विभाग एके द्विवेदी बताते हैं, “इस बार पर्यावरण दिवस पर जो पौधे खराब हो चुके हैं उनकी जगह पर नए पौधे लगाए जाऐंगे।” इस बात की जानकारी विभाग ने नहीं दी कि ये वही पौधे हैं भी या नहीं जिनसे पिछले वर्ष रिकॉर्ड बनाया गया था।” सीतापुर जिले मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर शिक्षिका निशी मिश्रा बताती हैं, “स्कूलों में जो पौधे लगाए गए थे, वो भी नहीं बचे।”

ये किए गए थे वादे

पांच करोड़ पौधों पर कंट्रोल और कमांड की बात एक कमरे में बैठकर करने की बात अधिकारियों ने कही थी। प्रदेशभर में होने वाले पौधरोपण की निगरानी के लिए लखनऊ स्थित वन मुख्यालय में कमांड और कंट्रोल रूम स्थापित किया जाना था। पौधरोपण की ऑनलाइन निगरानी के लिए एक सॉफ्टवेयर और मोबाइल ऐप भी विकसित किया गया था। फिलहाल किए गए इन वादों का अता-पता नहीं है।

सेटेलाइट सिस्टम से पौधों की निगरानी संभव नहीं हो सकी है। जो पौधे खराब हो गए हैं, उनकी जगह पर नये पौधे लगाए जाएंगे, साथ ही उनकी देखरेख के लिए व्यवस्था की जाएगी। 
एके द्विवेदी, अपर प्रमुख वन संरक्षक, कृषि एवं वानिकी विभाग  

तत्कालीन प्रमुख वन संरक्षक उमेंद्र शर्मा ने कहा था कि टाटा एनर्जी रिसर्च इंस्टीट्यूट के माध्यम से रोपण के लिए खोदे गए गड्ढों का सत्यापन और थर्ड पार्टी मॉनीटरिंग कराई जा रही है। जहां भी पौधारोपण किया गया है उन क्षेत्रों की जीपीएस लोकेशन आधारित पॉलीगॉन के माध्यम से विस्तृत विवरण वेबसाइट पर उपलब्ध कराया जाएगा।

पौधरोपण की वास्तविकता और स्थिति का आंकलन करने के लिए रोपण स्थलों की पौधरोपण से पहले और बाद की फोटो भी वेबसाइट पर अपलोड की जाऐंगी।

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