सैकड़ों किसानों ने छोड़ी आलू की खेती 

Update: 2017-02-25 15:46 GMT
जिले के मकसुदंपुर गाँव में वसिष्ट नारायण मिश्रा (55 वर्ष) ने इस बार अपने तीन बीघे के आलू के खेत में अरहर बोई है।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

सुल्तानपुर। जिले के मकसुदंपुर गाँव में वसिष्ट नारायण मिश्रा (55 वर्ष) ने इस बार अपने तीन बीघे के आलू के खेत में अरहर बोई है। एकाएक बढ़ रही जंगली सूकरों की संख्या देखते हुए उन्होंने अरहर की खेती शुरू की है।

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सुल्तानपुर जिला मुख्यालय से 25 किमी दूर लंभुआ ब्लॉक के मकसुदंपुर गाँव के किसान वसिष्ट नारायण ने बताया कि आलू के बजाए अरहर की पत्ती ज्यादा कसैली होती है इसलिए सूकर इसे नहीं खाते हैं। इसी कारण गाँव के सभी किसानों ने आलू की खेती छोड़कर अरहर की खेती शुरू कर दी है।

पूरे जिले में सूकरों और नीलगायों का खतरा है। किसान चाहे तो ब्लॉक आकर उन्हें मारने का लाइसेंस बनवा सकता है। पूरे जिले में नीलगायों को मारने के लिए पिछले वर्ष डीएम स्तर पर लोगों को लाइसेंस दिए जाने की योजना शुरू की गई, पर आज तक किसी भी ब्लॉक में इसके लिए एक भी पंजीकरण हो पाया है।
अरुण कुमार त्रिपाठी, जिला कृषि रक्षा अधिकारी

एक समय जिले में लंभुआ, नारेन्दापुर, मकसुदंपुर,राजापुर व भदैयां जैसे क्षेत्रों में आलू की खेती होती थी, लेकिन आवारा जानवरों के डर से किसानों ने आलू की खेती छोड़ दी। कृषि मंत्रालय के अनुसार उत्तर भारत में पिछले तीन वर्षों से नीलगाय, जंगली सूकर, बंदर व अन्ना पशुओं के बढ़ते आतंक से 15,000 से अधिक किसानों को नुकसान हुआ है। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश को मिलाकर करीब 4.5 करोड़ हेक्टेयर कृषि योग्य ज़मीन है, जिसमें 2 करोड़ हेक्टेयर से अधिक ज़मीन पर छुट्टा पशुओं का प्रकोप है। सरकार ने नीलगाय और जंगली सूकरों को मारने की इजाज़त दे दी है, लेकिन बावजूद इसके जीव हत्या के डर से किसान इन जीवों को मारने में कतरा रहे हैं।

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