स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क
लखनऊ। शहीदों के लिए हर जिले में अलग-अलग कार्यक्रम होते हैं, लेकिन मैनपुरी जिले में शहीदों की याद में हर वर्ष मेला आयोजित किया जाता है।
मैनपुरी जिले के बेवर में हर साल जनवरी महीने में लगने वाले शहीद मेले में यहां पर आजादी के लिए शहीद हुए छात्रों को याद किया जाता है। इसके पीछे एक कहानी भी है- देश को आजादी भले ही 15 अगस्त 1947 को मिली हो लेकिन बेवर के क्रांतिकारियों ने बेवर को 14 अगस्त 1942 को एक दिन के लिए स्वतंत्र करा लिया था। 15 अगस्त को अंग्रेजी पुलिस और सेना द्वारा क्रांतिकारियों पर की गई गोलीबारी में एक छात्र सहित तीन लोग शहीद हो गए थे।
बेवर के क्रांतिकारियों ने आजादी की लड़ाई में अपनी जान गंवाई थी, हमारी कोशिश है कि हम हमेशा उन्हें याद रखें, नहीं तो दूसरे क्रांतिकारियों की तरह लोग उन्हें भी भूल जाते। क्रांतिकारी जगदीश नारायण त्रिपाठी ने शहीदों की यादों को जिंदा रखने के लिए मेले की शुरुआत की थी।’राज त्रिपाठी, शहीद मेला के प्रबंधक
पंद्रह अगस्त 1948 को हुई थी शुरुआत
बेवर में शहीदों के बलिदान स्थल पर वर्ष 1948 से 15 अगस्त को बलिदान दिवस मनाने का सिलसिला शुरू हो गया। 1972 से 15 अगस्त से तीन दिवसीय शहीद मेले का आयोजन शुरू हुआ। तीन वर्ष तक 15 अगस्त से ही मेला शुरू किया गया लेकिन बारिश के व्यवधान के चलते 1975 में 26 से 30 जनवरी तक मेले की अवधि निर्धारित की गई। इसके बाद वर्ष 1986 में 23 जनवरी नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जन्म दिन से 30 जनवरी बापू के निर्वाण दिवस तक मेले की अवधि निर्धारित की गई। शहीद मेले को ग्राम्य विकास किसान प्रदर्शनी के रूप में विकसित करने का संकल्प लिया गया। वर्ष 1992 से मेले की अवधि बढ़ाकर छह फरवरी तक कर दी गई।
छात्रों ने लड़ी थी यहां पर आजादी की लड़ाई
15 अगस्त 1942 को जूनियर हाई स्कूल बेवर के उत्साही छात्रों का हाथों में तिरंगा थामे जूलुस आगे बढ़ा। नारे लगाते और झंडा गीत गाते हुए यह कारवां बेवर थाने आ डटा। छात्र झंडा फहराने की जिद पर अड़े थे कि पुलिस ने गोली चला दी। सातवीं में पढ़ने वाले कृष्ण कुमार, क्रांतिधर्मी सीताराम गुप्ता और यमुना प्रसाद त्रिपाठी की शहादत से पूरा शहर उबल पड़ा। इन शहीदों के शवों को परिवार को न सौंपकर जिला प्रशासन ने दूसरे दिन चुपके से सिंहपुर नहर के निकट बीहड़ जंगलों में ले जाकर मिट्टी का तेल डाल कर जला दिया गया। आज भी बेवर थाने के सामने शहीदों की समाधि और शहीद मंदिर बलिदान गाथा का बखान कर रहा है।
हर साल लगता है शहीद मेला
1972 से इस आयोजन का यह 45वां साल होगा। 19 दिन तक चलने वाले इस मेले में हर दिन विभिन्न लोक सांस्कृतिक- सामाजिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं। क्रांतिकारी जगदीश नारायण त्रिपाठी ने मेले की मार्फत शहीदों की यादों को जिन्दा रखने की शुरुआत की थी। तब से मेला हर साल जंग ए आजादी के दीवानों की याद दिलाकर कर नौजवान पीढ़ी को रोमांचित करता रहा है।
शहीदों के परिजन करेंगे शिरकत
उद्घाटन समारोह को सरदार भगत सिंह के भतीजे किरनजीत सिंह, शहीद सुखदेव के पौत्र अशोक थापर, शहीद ए वतन अशफाक उल्लाह खां के पौत्र अशफाक उल्ला खां, स्वतन्त्रता संघर्ष शोध केन्द्र के निदेशक सरल कुमार शर्मा आदि क्रांतिकारियों के परिजन संबोधित करेंगे।
लोकनृत्य प्रतियोगिता से लेकर स्वास्थ्य शिविर आयोजित होंगे
शहीदों की याद में आज से लगने वाले मेले के प्रबंधक राज त्रिपाठी ने बताया कि 23 जनवरी से 10 फरवरी तक लगने वाले मेले का हर दिन खास तौर पर डिजाइन किया गया है। इस मेले में प्रमुख रूप से शहीद प्रदर्शनी, नाटक, विराट दंगल, पेंशनर्स सम्मेलन, स्वास्थ्य शिविर, कलम आज उनकी जय बोल, शहीद रज कलश यात्रा, शहीद परिजन सम्मान समारोह, रक्तदान शिविर, विधिक साक्षरता सम्मेलन, किसान पंचायत, स्वतंत्रता सेनानी सम्मेलन, शरीर सौष्ठव प्रतियोगिता, लोकनृत्य प्रतियोगिता, पत्रकार सम्मेलन, कवि सम्मेलन, राष्ट्रीय एकता सम्मेलन आदि प्रमुख कार्यक्रम आकर्षण का केन्द्र होंगे।
शहीद मंदिर में लगी हैं शहीदों की मूर्तियां
शहीदों की याद में यहां पर मंदिर का भी निर्माण किया गया है। अयोध्या के रहने वाले और स्वतंत्र पत्रकार, दस्तावेजी फिल्मों के निर्माता शाह आलम बताते हैं, ‘ये एक अच्छी मुहिम है कि यहां पर हर वर्ष शहीदों को याद किया जाता है। देश में हर जिले में ऐसा कुछ करना चाहिए, जिससे आने वाली पीढ़ी देश की आजादी में शहीद हुए क्रांतिकारियों को न भूल जाए।’
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