औषधीय फसलें ज़मीन को बना रहीं उपजाऊ

Update: 2017-01-23 14:56 GMT
दर्जनों किसानों ने ऊसर खेत में लगाई खस की फसल

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

प्रतापगढ़। किसानों को औषधीय फसलों की खेती कर के लाभ तो हो ही रहा है, साथ ही उनकी अनुपजाऊ बंजर जमीन भी उपजाऊ हो रही है।

प्रतापगढ़ जिला मुख्यालय से लगभग 25 किमी. दूर पट्टी ब्लॉक के धौरहरा गाँव में पिछले कई वर्षों से बंजर पड़े खेतों में अब औषधीय फसल खस की खेती हो रही है। धौरहरा गाँव के किसान रमेश यादव (45 वर्ष) कहते हैं, “हमारे गाँव में ऐसी बहुत सी जमीन हैं, जिसका कोई उपयोग नहीं है, इतनी ज्यादा ऊसर है कि यहां पर कुछ भी नहीं हो पाता था, लेकिन अब खस अच्छी तैयार हो गई है।”

कृषि क्षेत्र में काम करने वाली गैर सरकारी संस्था तरुण चेतना ने पट्टी ब्लॉक के कई गाँवों के दर्जनों किसानों को खस के पौधे दिए थे, जिनसे वो अपनी ऊसर खेत को उपजाऊ बना पाएं।

धौरहरा गाँव के किसान रामअधार शुक्ला (55 वर्ष) ने भी एक बीघा में खस की फसल लगाई है। राम आधार बताते हैं, “ऊसर जमीन में खेती करने में बहुत मेहनत की जरूरत होती है, पौधे तो मिल गए थे, लेकिन ऊसर में उन्हें लगाना इतना आसान नहीं था। गर्मी में रात-दिन खेत में सिंचाई करनी पड़ती थी। इस बार बारिश अच्छी हुई तो उतनी मेहनत नहीं करनी पड़ी।”

उत्तर प्रदेश भूमि सुधार निगम ने ऊसर सुधार के लिए विश्व बैंक की सहायता से प्रदेश में उत्तर प्रदेश सोडिक लैंड रिक्लेमेशन तृतीय परियोजना चलाई है। परियोजना के माध्यम से प्रदेश के 29 ज़िलों में एक लाख तीस हज़ार हेक्टेयर ऊसर भूमि सुधार का लक्ष्य रखा गया है। केन्द्रीय औषधीय एवं सगंध संस्थान की सहायता से इन 29 ज़िलों के किसानों को नींबू घास, पामारोजा जैसे पौधों की पचास हज़ार पौधे बांटे गए थे। ये पौधे ऊसर भूमि से क्षारीयता कम करके उसे उपजाऊ बनाने में मदद करते हैं। वर्ष 1993 में उत्तर प्रदेश में कुल 12 लाख हेक्टेअर जमीन ऊसर थी।

उत्तर प्रदेश भूमि सुधार निगम द्वारा चलायी जा रही है। कई योजनाओं के बाद अभी प्रदेश में कुल चार लाख हेक्टेयर जमीन ऊसर और अनुपजाऊ है। उत्तर प्रदेश भूमि सुधार निगम के प्रबंधक डॉ. केबी त्रिवेदी कहते हैं, “ऊसरीली ज़मीन में हमेशा फसल लगी होनी चाहिए अगर जमीन खाली होती है तो मिट्टी की क्षारीयता बढ़ जाती है और खेत किसी काम के नहीं रहते हैं। नींबू घास और पामारोजा, खस जैसी फसलें कुशा प्रजाति की फसलें आसानी से ऊसर जमीन में भी तैयार हो जाती हैं और ये फसलें चार-पांच साल तक खेत में लगी रहती हैं, जिससे मिट्टी का पीएच सामान्य हो जाता है। इससे अनुपजाऊ खेत भी उपजाऊ बन जाते हैं।”

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