कंडक्टर बनकर गाँव का नाम रोशन कर रहीं लड़कियां 

Update: 2017-02-09 11:23 GMT
इटावा जिले की खुशबू यादव (24 वर्ष) पिछले दो वर्षों से कानपुर-इटावा रोडवेज बस में परिचालक के पद पर काम कर रही हैं।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

औरैया। इटावा जिले की खुशबू यादव (24 वर्ष) पिछले दो वर्षों से कानपुर-इटावा रोडवेज बस में परिचालक के पद पर काम कर रही हैं। खुशबू बताती हैं, “शुरुआती दिनों में कुछ मुश्किलें आयी, लेकिन अब तो यात्री भी बहुत सपोर्ट करते हैं। मगर कभी-कभी बच्चों का किराया देने में यात्री बहस करते हैं तो उनसे निपटना थोड़ा मुश्किल होता है।”

वर्ष 2015 में 1690 परिचालकों की भर्ती निकली थी, जिसमें प्रदेश की सैकड़ों महिलाओं की नियुक्ति हुई थी। इसमें खुशबू यादव जैसी तमाम ग्रामीण लड़कियों का चयन हुआ था। खुशबू जिला मुख्यालय से 12 किलोमीटर दूर जसवंत नगर ब्लॉक के महोला गाँव की रहने वाली हैं। खुशबू बताती हैं, “इस भर्ती में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण मिलने की वजह से लोगों ने खूब फॉर्म भरे। मेरे साथ कई लड़कियों का चयन हुआ था।

पहले मुझे लगा मैं ही अकेली हूं, मगर जब कई महिलाओं को देखा तो डर कम हुआ।” उत्तर प्रदेश के परिवहन निगम के क्षेत्रीय प्रबंधक एके सिंह बताते हैं, “पहले महिला परिचालक नहीं आया करती थीं। सिर्फ मृतक आश्रित ही आया करती थीं, लेकिन पिछले वर्ष से लड़कियों की संख्या बहुत बढ़ी है। सिर्फ लखनऊ में ही 233 भर्तियों में 118 महिला परिचालक हैं।”

एमकॉम तक पढ़ाई करने वाली खुशबू ने जब यह परीक्षा पास की तो खुशबू के घर वाले चिंतित थे। खुशबू उत्साहित होकर बताती हैं, “मैं गाँव में रहती जरूर थी, लेकिन कभी लड़कों से डर नहीं लगता था। जबसे परिचालक बनी हूँ तबसे और निर्भीक हो गयी हूं। जो यात्री नशा करके बस में चढ़ते हैं उन्हें तुरंत बस रुकवा कर उतार दिया जाता हैं।” खुशबू आगे बताती हैं, “जिस बस में भी हमारी ड्यूटी लगी होती है वो सभी बस चालक हमारा बहुत सहयोग करते हैं।

बस में कोई भी यात्री अगर हमसे तेज आवाज़ में बात करने लगता है तो चालक तुरंत बस रोककर उस यात्री को उतार देते हैं। सुबह से शाम तक की ड्यूटी रहती है और 300 किलोमीटर चलने पर एक दिन की छुट्टी भी मिलती है।” खुशबू बताती हैँ, “जबसे मेरा सलेक्शन हुआ है तब से गाँव की मेरी हमउम्र सहेलियाँ भी उत्साहित हैं परिचालक की नौकरी करने के लिए। अब गाँव की लड़कियाँ सिर्फ टीचर ही नहीं, बल्कि हर एक क्षेत्र में अपना कैरियर संवार रही हैं।”

तब बनी पहली महिला कंडक्टर

परिवहन निगम के इतिहास में पहली बार महिला कंडक्टर की भर्ती संविदा के पद पर गाजियाबाद बस डिपो में वर्ष 2014 में की गई थी। लखनऊ से दिल्ली के बीच मई 2014 में शुरू की गई महिला पिंक एक्सप्रेस बस सेवा में प्रथम महिला की ड्यूटी लगाई गई थी। इसके बाद कानपुर बस डिपो में संविदा पर दूसरी महिला कंडक्टर की तैनाती हुई थी।

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