कम समय में तैयार होगी तुलसी की नई किस्म ‘सिम स्निग्धा’

Update: 2017-07-22 19:44 GMT
सीमैप में प्रदर्शित तुलसी की नई किस्म सिम स्निग्धा। फोटो: गाँव कनेक्शन।

दिवेन्द्र सिंह, स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। औषधीय गुणों के लिए प्रयोग होने वाली तुलसी की मांग अब व्यवसायिक स्तर पर भी बढ़ रही है। ऐसे में किसान केन्द्रीय औषधीय एवं सगंध पौध संस्थान (सीमैप) की नयी किस्म ‘सिम स्निग्धा’ से कम लागत में ज्यादा मुनाफा पा रहे हैं। किसान इसकी खेती कर अच्छा फायदा उठा सकते हैं। तुलसी के तेल की बाजार में काफी मांग है।

सिम स्निग्धा प्रजाति के तेल में 78 प्रतिशत से अधिक मिथाइल सिनामेट पाया जाता है, जिसका उपयोग एरोमा, फार्मास्यिूटिकल और कास्मेटिक उद्योग में होता है। कम अवधि की फसल होने के कारण इसे जल्दी ही तैयार कर सकते हैं।
संजय कुमार, वैज्ञानिक, केन्द्रीय औषधीय एवं सगंध अनुसंधान संस्थान (सीमैप)

परम्परागत खेती में बढ़ती लागत और कम मुनाफा होने से किसानों के लिए तुलसी जैसी औषधीय फसलों की खेती काफी फायदेमंद साबित हो रही है। राष्ट्रीय औषधीय बोर्ड के मुताबिक उत्तर प्रदेश में औषधीय पौधों का व्यापार प्रतिवर्ष पांच हज़ार करोड़ रुपए होता है। भारत में 6,000 से ज्यादा किस्मों के औषधीय पौधे पाए जाते हैं।

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दूसरी किस्मों से बेहतर है सिम स्निग्धा

तुलसी की दूसरी किस्म को तैयार होने में 90 दिन लगता है, जबकि ‘सिम स्निग्धा’ 70-80 दिन में तैयार हो जाती है। दूसरी किस्मों में मिथाइल सिनामेट की मात्रा लगभग 65 प्रतिशत तक होती है, जबकि इसमें 78 प्रतिशत तक मिथाइल सिनामेट पाया जाता है।

किसानों के लिए फायदे का सौदा

इसकी खेती करते समय इस बात का ध्यान जरूर रखना होता है कि इसे ज्यादा पानी की जरूरत होती है। तुलसी की ये किस्म जल्दी तैयार हो जाती है। तुलसी के तेल की बढ़ती औद्योगिक मांग के कारण इसमें मुनाफा ज्यादा होता है। बाजार में यह तेल लगभग 600 रुपए प्रति लीटर के भाव से बिकता है। इस वजह से तुलसी की खेती किसानों के लिए फायदे का सौदा हो सकता है।

तुलसी से निकलने वाले मिथाइल सिनामेट का प्रयोग सौन्दर्य प्रसाधनों जैसे लोशन, शैम्पू, साबुन और इत्र में उपयोग किया जाता है। कुछ त्वचा के मरहम और मुंहासे के लिए बनने वाली दवाओं में भी इसका प्रयोग किया है। साथ ही मधुमेह, मोटापा और तंत्रिका विकार के इलाज में इसका उपयोग किया जाता है।

तुलसी की बुवाई बीज से की जाती है, इससे नर्सरी में पौध तैयार की जाती है। अप्रैल-मई माह में बीजों को क्यारियों नर्सरी डाली जाती है। इसके बाद हल्की सिंचाई की जाती है। बुवाई के 30 दिन के बाद रोपाई के लिए पौध तैयार हो जाती है।

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