समस्या: उत्तर भारत के खेतों से दूर हो रही दलहन की खेती

Update: 2017-02-21 13:43 GMT
देश में पिछले कुछ दशकों से मौसम के उतार-चढ़ाव व छुट्टा जानवरों के आतंक के कारण दलहनी फसलों की खेती उत्तरी भारत से खिसक कर दक्षिण राज्यों की तरफ अधिक हो रही है।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। देश में पिछले कुछ दशकों से मौसम के उतार-चढ़ाव व छुट्टा जानवरों के आतंक के कारण दलहनी फसलों की खेती उत्तरी भारत से खिसक कर दक्षिण राज्यों की तरफ अधिक हो रही है।

भारत में ठंड का प्रकोप सबसे अधिक उत्तर भारत में होता है। यहां ठंड फरवरी के अंत तक होती है, जो दाल की खेती के लिए विपरीत मौसम माना जाता है। उत्तर भारत की अपेक्षा दक्षिण प्रदेशों में ठंड कम होती है, इसलिए पिछले कुछ दशकों से यहां के किसान दाल की खेती करना अधिक पसंद कर रहे हैं।
डॉ. एस एन पांडे, वरिष्ठ कार्यक्रम अधिकारी, डेवलपमेंट अल्टरनेटिव्स (बुंदेलखंड)

खेती किसानी से जुड़ी सभी बड़ी खबरों के लिए यहां क्लिक करके इंस्टॉल करें गाँव कनेक्शन एप

उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड जिले में कृषि क्षेत्र में बड़े स्तर पर काम रही संस्था डेवलपमेंट अल्टरनेटिव्स द्वारा किए गए शोध में यह सामने आया है कि पिछले कुछ दशकों से बुंदेलखंड सहित उत्तर भारत के तराई इलाकों में बड़े स्तर पर पानी की कमी रही है। इससे कुछ वर्षों से तराई इलाकों में रहने वाले किसानों ने दाल की खेती करना बंद कर दिया है।

उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले का पखपोखरा गाँव खड़ी दाल की खेती के जाना जाता था, वहीं अब इस गाँव में मौजूदा समय में एक भी किसान ऐसा नहीं है, जो दाल की खेती करता हो।

पांच वर्ष पहले पखपोखरा, खगेसियामऊ और मेरी गाँवों में किसान 15 से 20 एकड़ में अरहर, मसूर और उर्द दालों की खेती करते थें। लेकिन नीलगाय व छुट्टा जानवरों के आतंक से अब यहां शायद ही कोई किसान दाल की खेती करता होगा।
अभिषेक वर्मा,किसान, पखपोखरा गाँव

कृषि मंत्रालय के अनुसार उत्तर भारत में पिछले तीन वर्षों से अरहर, चना, उड़द और मूंग जैसी प्रमुख दलहनी फसलों का रकबा लगातार घटता जा रहा है। इसका कारण नीलगाय, जंगली सुअर, बंदर व अन्ना पशुओं का बढ़ता आतंक है। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश को मिलाकर करीब 4.5 करोड़ हेक्टेयर कृषि योग्य ज़मीन है, जिसमें 2 करोड़ हेक्टेयर से अधिक ज़मीन पर छुट्टा पशुओं का प्रकोप है। विभाग के अनुसार प्रतिवर्ष फसलों के उत्पादन का 20 फीसदी हिस्सा आवारा पशुओं के भेंट चढ़ जाता है।

ठंड में देरी से दाल की फसल को नुकसान

कानपुर स्थित चन्द्रशेखर आज़ाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कानपुर के कृषि वैज्ञानिक (दलहन) डॉ. मनोज कटियार ने बताते हैं,” उत्तर भारत में पिछले कुछ वर्षों से जो ठंड नवंबर या दिसंबर के महीनों में होती थी वह अब जनवरी से होना शुरू होती है। इससे खेतों में खड़ी दाल की फसल को बहुत नुकसान होता है। इसमें दाल के दाने का छोटा होना, फसल के उत्पादन में देरी होना जैसी समस्याएं अधिक देखने को मिलती हैं।’’ डॉ. मनोज कटियार आगे बताते हैं कि ज़्यादा समय तक ठंड के मौसम दाल का दाना छोटा हो जाता है, जिससे मंडियों में दाल की मांग भी कम हो जाती है।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

Similar News