तेजी से लोगों में अपनी जड़े जमा रहा अवसाद

Update: 2017-04-01 16:09 GMT
सही समय पर इलाज करने पर आत्महत्या के मामले को बहुत हद तक कम किया जा सकता है।

स्वाती शुक्ला ,स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। आवसाद से ग्रसित आत्महत्या करने वाले लोगों का सही समय पर इलाज करने पर आत्महत्या के मामले को बहुत हद तक कम किया जा सकता है। भारत में 2015 में 7.88 लाख लोगों ने आत्महत्या की और इससे कई गुना ज्यादा ने आत्महत्या का प्रयास किया।

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जिला मुख्यालय से करीब 65 किमी दूर हरदोई जिले के भरावन गाँव के पप्पू अवस्थी (45 वर्ष) अवसाद रोग से पीडि़त हैं। पप्पू बताते हैं, ‘’मेरी माँ और मेरे बच्चे की मौत एक ही महीने में हो गयी थी, उसी के कारण हमको अवसाद हो गया। मैं उदास रहता था, चिड़चिड़ा हो गया था, नींद नही आती थी, एक-दो बार मैंने आत्महत्या करने की कोशिश की।”

वे 12 सालों से मेडिकल कॉलेज में अपना इलाज करा रहे हैं। इस बारे में वो आगे बताते हैं, ‘’ इलाज के बाद बहुत कुछ अच्छा हुआ है और आत्महत्या करने का भाव अब मन में नहीं आता है।” वहीं, फज्जुलागंज की रहने वाली गुड़िया शुक्ला (39 वर्ष) बताती हैं, पहले पता नहीं चला कि ये बीमारी है, बस चुपचाप बैठे रहते थे। मेरे पति ने डिप्रेशन में आकर आत्महत्या की, पहले से पता होता तो इलाज कराते, पति की मुत्यु के बाद घर की हालत बहुत बिगड़ गई।

क्या होता है अवसाद

राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय चिकित्सालय के एमडी डॉ. अखिलेश कुमार गर्ग बताते हैं, अवसाद के मरीजों का इलाज सही समय पर करवाना बहुत जरूरी है। अवसाद ग्रसित व्यक्ति आत्महत्या करने की कोशिश करता है और वो किसी को मार भी सकता है। अवसाद के मरीज को ये भी नहीं पता होता कि यह बीमारी है। वह अपने आप को स्वस्थ समझते हैं।

ऐसे मरीजों के सामने प्रेमपूर्वक व्यवहार करना चाहिए। इसलिए मरीज के सामने कोई भी ऐसी परिस्थिति न रखें जिससे समस्या बढ़ जाये। परामर्श लेते रहना चाहिए, इलाज पूरा करना चहिए। मेडिकल कॉलेज के मानसिक रोग विभाग की डॉ. अभिनव श्रीवास्तव बताते हैं, ओपीडी में रोजाना औसतन सौ से डेढ़ सौ मरीज इलाज के लिए आते हैं। इलाज तब कराते हैं, जब परिस्थिति बहुत ज्यादा गंभीर हो चुकी होती है।

क्या कहते हैं आंकड़े

वर्ष 2015 में 7.88 लाख लोगों ने आत्महत्या की और इससे कई गुना ज्यादा ने आत्महत्या का प्रयास किया। डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों की मानें तो देश में कुल 6-7 फीसदी लोगों को किसी ना किसी तरह की दिमागी समस्या है, जबकि 1-2 फीसदी रोगियों को गंभीर समस्या है। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 5 करोड़ से ज्यादा लोग डिप्रेशन यानी अवसाद के शिकार हैं। इसके अलावा 3 करोड़ से ज्यादा लोग एंग्जाइटी डिसऑर्डर से ग्रस्त हैं।

जानकारी के अभाव में लोग इसे समझ नहीं पाते है, कई बार वो बताते भी हैं, मुझे अब नहीं जीना है, मैं अत्महत्या करना चाहता हूं, बस लोग इसे समझते नहीं हैं। ऐसे लोगों से खुलकर बात करनी चाहिए जिससे कई हद तक आत्महत्या के मामले को टाला जा सकता है। 
सजिया सिद्दीकी, मनोचिकित्सक

कैसे होता है अवसाद

अवसाद होने के कई कारण हैं। मनोवैज्ञानिक कारण, सामाजिक कारण, अनुवांशिक कारण, विकास के कारण, जैविक कारण, एल्कोहल और कुछ समय तक इस्तेमाल होने वाली दवाओं के कारण अवसाद हो जाता है। जीवन में झकझोर देन वाली घटना या समस्या होती है, जो व्यक्ति को निराश कर देती है जिससे व्यक्ति अवसाद का शिकार हो जाता है।

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