पहचान के लिए भटक रहे किन्नर

Update: 2017-01-28 11:30 GMT
हर तरह की सरकारी सुविधाओं से महरुम हैं किन्नर, वोट देने से भी वंचित रहते हैं किन्नर

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। ‘दूर से देख कर मुझे लोग हंस देते हैं। मगर सच तो यह है कि मेरी कोई पहचान नहीं है। हमारे मां-बाप ने हमें पैदा तो किया लेकिन अपना नाम नहीं दिया। मैं पिछले 16 साल से अपनी पहचान और अपने नाम के लिए प्रयास कर रही हूं, लेकिन वह सारे प्रयास असफल नजर होते रहते हैं क्योंकि मैं एक ट्रांसजेंडर (किन्नर) हूं।’ ये व्यथा है कि 30 साल के किन्नर रौनक सिंह की।

चुनाव आयोग ने इस बार 15 सितम्बर 2016 से 15 नवम्बर 2016 तक दो महीने चले वोटर लिस्ट के पुनरीक्षण अभियान के दौरान ट्रांसजेंडर को अलग से जगह दी। 14 करोड़ से अधिक वोटर में किन्नर वोटरों की संख्या केवल 7,272 है। यही वास्तविकता है। जबकि राजधानी में ही किन्नरों की संख्या करीब 25 हजार है। जबकि प्रदेश में लाखों की तादाद होने के बावजूद किन्नरों को वोटर बनने का मौका नहीं मिल पा रहा है। उनके पास उनकी पहचान का कोई अधिकृत कागज नहीं है।

बिजनौर जिला मुख्यालय 45 किलोमीटर से धामपूर तहसील के मवइया गाँव की रहने वाली फिजा (33 वर्ष) बताती हैं, “18 साल से लखनऊ में रह रहे हैं। दस साल से किराए के मकान जीवन काट रही हूं। किसी और का तो नहीं पता, लेकिन मैं अपनी बात कहती हूं कि मैं 15 साल से लगातार प्रयास कर रही हूं कि मेरा एक प्रमाण-पत्र बन जाए। कोई अपने कागज देने को तैयार नहीं, जिसके आधार पर प्रमाण पत्र बन सके। मां-बाप ने 14 साल की उम्र में घर से शर्म के मारे निकाल दिया क्योंकि मैं ऐसी पैदा हुई थी। अगर राशन कार्ड पर नाम लिखवा देते तो कोई न कोई पहचान पत्र तो बन जाता।” फिजा आगे बताती हैं, “जहां पर किराए पर रहती हूं, वो लोग बिजली के बिल का कागज तक नहीं देते, जिससे मैं अपनी कोई पहचान पत्र बनवा लूं।”

वहीं, कजरी (26 वर्ष) बताती हैं, जब कमरा किराए के लिए मांगते हैं, लोग तरह-तरह की बातें करते हैं। मजाक उठाने के साथ गन्दे सवाल भी पूछते हैं। हम लोग पूरे शहर की किसी भी अच्छी जगह रहने को नहीं मिलती है। इसमें सबसे बड़ी समस्या यह है कि हमारे पास अपनी कोई पहचान नहीं है। हम देश में रहते जरूर हैं पर कोई पहचान नहीं हैं।

कोई कागज नहीं, बीमा नहीं

जीवन बीमा कम्पनी में कार्य कर रहे कर्मचारी अवधेश बाजपेई से बात करने पर पता चला किन्नरों के बीमा न के बराबर होते हैं। किन्नरों का कोई हेल्थ बीमा नहीं है। क्योंकि उनके पास कोई कागज नहीं होते, न ही कोई जन्म प्रमाण पत्र, जिसके आधार पर उनका बीमा हो सके।

महाराष्ट्र में मिली पहचान

महाराष्ट्र में किन्नर मतदाताओं की संख्या पिछले एक साल में बढ़ी है। इसकी वजह यह है कि अब किन्नर खुद को वोटर लिस्ट में रजिस्टर्ड कराने के लिए आगे आ रहे हैं। उल्लेखनीय बात यह है कि ठाणे जिले में सबसे ज्यादा किन्नरों ने खुद को वोटर लिस्ट में रजिस्टर्ड कराया है। ताकि वे भी वोट डाल सकें।

हम लोगों के लिए कोई योजना नहीं

पायल फांउडेशन की अध्यक्ष पायल सिंह बताती हैं, सरकार ने रहने को घर देने को वादा किया, लेकिन पहचान नहीं तो घर भी नहीं मिला। इंदिरा गाँधी के समय किन्नरों को 200 रुपये पेंशन मिलती थी, लेकिन अब सरकार में सभी के लिए पेंशन योजना और हम लोगों के लिए कोई ऐसी योजना नहीं। आधे से ज्यादा किन्नरों को प्रमाण-पत्र और कोई पहचान-पत्र नहीं।

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