ग्रामीणों को नहीं मिल पाते पर्याप्त पोषक तत्व

Update: 2017-02-18 12:58 GMT
हर ग्रामीण व्यक्ति को लगभग 2400 कैलोरी का आहार लेना चाहिए, पर ज़मीनी हकीकत कुछ और ही है।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। संतुलित पोषण हर इंसान के लिए आवश्यक है। हर ग्रामीण व्यक्ति को लगभग 2400 कैलोरी का आहार लेना चाहिए, पर ज़मीनी हकीकत कुछ और ही है।

लखनऊ जिला मुख्यालय से लगभग 20 किमी दूर पल्हरी गाँव के 50 वर्षीय राधेश्याम अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ ही मुश्किलों से कर पाते हैं।

“मजदूरी से इतनी कमाई नहीं हो पाती कि अपने परिवार को अच्छा आहार दे पायें, दो वक़्त की रोटी का जुगाड़ ही हो जाता है, वही बहुत है।”
राधेश्याम, मजदूर

ग्रामीण क्षेत्रों के लोग अपने स्वास्थ्य और पोषण को लेकर जागरूक नहीं रहते हैं। देखा जाये तो शहरी लोगों की अपेक्षा ग्रामीण लोगों के पास शारीरिक श्रम अधिक रहता है। अधिक कार्य करने वाले ग्रामीण को 3800 कैलोरी प्रतिदिन के हिसाब से लेनी चाहिए। जो व्यक्ति ज्यादा काम नहीं करते हैं या जो सामान्य काम करते हैं, उन्हें पूरे दिन में 2875 कैलोरी लेनी चाहिए।
डॉ. अर्चना सिंह, डॉ भीमराव अम्बेडकर संयुक्त अस्पताल 

ग्रामीण भारत में ऐसे कई राधेश्याम हैं, जो अपने पोषण को लेकर सजग नहीं हैं। नैशनल सैंपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन (एनएसएसओ) की 66वें अध्ययन के अनुसार ग्रामीण भारत के दो तिहाई लोग पोषण के सामान्य मानक से कम खुराक ले रहे हैं। इस बारे में बाराबंकी के लोनार गाँव की सुनीला (26 वर्ष) की आहार तालिका भी कुछ यही बयां करती है। सुनीला सुबह आठ बजे के करीब नाश्ते में बस एक कप चाय मात्र ही लेतीं है। उसके बाद दोपहर के दो से तीन बजे के आस पास खाने में सब्जी रोटी लेती है। देखा जाये तो नाश्ते और दोपहर के खाने के बीच 6 से 7 घंटे का अंतर होता है जोकि सही नहीं माना गया है।

स्वस्थ शरीर के लिए कार्बोहाइड्रेट जरूरी है, जोकि अनाजों, चवाल, आलू आदि में पाया जाता है। प्रोटीन हासिल करने के लिए दालों, दूध, सूखे मेवों आदि नियमित सेवन करना चाहिए।  
डॉ. अर्चना सिंह बताती हैं

गाँव के लोगों के पास स्वस्थ और प्रदूषण मुक्त पोषित आहार मौजूद रहता है, बस कमी है तो उनकी जागरूकता और जानकारी में। गाँव का इंसान पौष्टिक आहार के महत्व से ही वंचित है। 
डॉ. अर्चना सिंह, डॉ़ भीमराव अम्बेडकर संयुक्त अस्पताल 

एनएनएसओ के अनुसार, 87 प्रतिशत ग्रामीण महिलाएं और 75 प्रतिशत किशोर अवस्था के बच्चे अनियमित व असंतुलित आहार के चलते अनीमिया व अल्सर जैसी बीमारियों का शिकार हो जाते हैं।

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