सिलाई कर अपनी और अपने भाइयों की भरती है फीस

Update: 2016-10-05 20:45 GMT
बाराबंकी की रुखसार लड़कियों को निःशुल्क सिखाती है सिलाई

अरुण मिश्रा (कम्युनिटी जर्नलिस्ट)

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नाम-आमिना ख़ातून कक्षा-9 उम्र-14

स्कूल- न्यू जय हिन्द इंटर कालेज, विशुनपुर, बाराबंकी

विशुनपुर (बाराबंकी)। अगर सीखने की चाहत हो तो जिंदगी के ख़राब हालातों में भी अपने हुनर के ज़रिये से अपनी मंजिल को हासिल किया जा सकता है। ऐसा ही कुछ कर दिखाया है बसारा गाँव की रहने वाली रुकसार ने जो स्वयं सिलाई करके अपनी और अपने दो भाइयों की फीस भरती है और परिवार का खर्च भी चलाती है।

बाराबंकी मुख्यालय से 23 किमी दूर फतेहपुर ब्लॉक के बसारा गाँव की रहने वाली रुकसार परिवार की तंगहाली के चलते भी सिलाई करके अपनी पढ़ाई कर रही है। विशुनपुर के एक निजी स्कूल में बायो से इंटर की पढ़ाई करने वाली रुकसार आगे चलकर डॉक्टर बनाना चाहती है। लगभग छह साल पहले रुकसार के पिता सिराजुद्दीन को गुर्दे में पथरी हो गई और आत भी उतरने लगी जिससे वो काम करने में असमर्थ हो गए। दो भाइयों में सबसे बड़ी रुकसार के कंधो पर पूरे परिवार की ज़िम्मेदारी आ गई। परिवार का खर्च, अपनी और भाइयों की पढ़ाई के खर्च के लिए गाँव में ही सकीना से सिलाई का काम सीखा। अपने हुनर में माहिर रुकसार ने सात महीने में ही सिलाई का काम सीख लिया।

आज रुकसार क्राची, पटियाला, ब्लाउज, पेटीकोट ,फ्राक व अमरेला जैसे परिधान सिलने में माहिर हो गई है। अब आस-पास गाँवों की महिलायें रुकसार से सिलाई करवाने आती हैं। माँ हसीना बानो बताती हैं, "जब इनके अब्बू बीमार हुए तो परिवार का खर्च चलाना मुश्किल हो गया। बच्चों की पढ़ाई रुक गई फिर रुकसार बड़ी हुई और सिलाई सीखी। आज रुकसार अपनी व अपने भाइयों की फीस देती है। इसके साथ-साथ परिवार का खर्च भी चलाती है।

मैंने हाईस्कूल की परीक्षा 2015 में 85 प्रतिशत से पास किया। इसके बाद पैसे की कमी के कारण ग्यारहवीं में दाखिला न ले सकी। फिर सिलाई का काम बढ़िया चलने लगा। जिससे इस साल ग्यारहवीं में दाखिला लिया है और भाइयों के साथ पढ़ने जाते है। स्कूल से लौटने के बाद सिलाई का काम करते है। एक दिन में दो से तीन सूट तैयार हो जाते हैं, यानी रोज़ाना लगभग दो से ढाई सौ रुपये का काम हो जाता है। जिससे परिवार का खर्च किसी तरह चलाता है।
रुकसार,

रुकसार सिलाई के साथ ही गाँव की लगभग डेढ़ दर्जन लड़कियों को निःशुल्क सिलाई भी सिखाती है। लड़कियों को निःशुल्क प्रशिक्षण देने के सवाल पर रुकसार ने बताया, "हम भी सकीना से निःशुल्क सिलाई सीखी। अगर ये पैसा लेती तो हम सिलाई न सीख पाते। इसलिए अपनी तरह आत्मनिर्भर बनाने के लिए निःशुल्क सिलाई सिखाने का फैसला लिया। आज करीब सोलह लड़कियां सिलाई का काम सीख रही हैं। ये लड़कियां छह महीने बाद सिलाई का काम करने लगेंगी। हमारा मकसद ज़्यादा से ज़यादा लड़कियों को सिलाई में प्रशिक्षित करना ताकि ये आगे चलकर अपने पैरो पर खड़ी हो सके।"

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