स्लो प्वाइजन की तरह काम कर रहा चूल्हे का धुंआ 

Update: 2016-10-09 15:30 GMT
चूल्हा फूंकने से हो रही सांस फूलने की दिक्कत।

मोबीन अहमद (कम्यूनिटी रिपोर्टर)

रायबरेली। कन्नावां गाँव की रहने वाली शीतला कुमारी (40 वर्ष) को कुछ दिनों पहले सांस फूलने की शिकायत थी। जब उन्होंने स्थानीय डॉक्टर को दिखाया तो डॉक्टर ने उन्हें कुछ दिनों तक चूल्हे पर खाना न बनाने की हिदायत दी। शीतला जैसी ही कई गृहिणियों को इस तरह की समस्या से दो-चार होना पड़ रहा है।

रायबरेली जिला मुख्यालय से 25 किमी उत्तर दिशा में कन्नावां गाँव में अधिकांश घरों में चूल्हे पर खाना बनता है। शीतला बताती हैं, "घर पर चूल्हे पर ही खाना बनता है। आजकल इतनी महंगाई है कि गैस पर खाना कौन बनाए।'' डब्ल्यूएचओ के अनुसार दक्षिण-पूर्व एशिया में हर साल करीब छेह लाख मौतें घरेलू वायु प्रदुषण की वजह से होती है, जिसमें भारत से ही 80 फीसदी मौत के केस शामिल हैं।

हरचंदपुर ब्लॉक के गझारी गाँव की रागनी देवी बताती हैं, " घर पर गैस चूल्हा है फिर भी ज़्यादातर खाना चूल्हे पर ही बनता है,जब भी जल्दी खाना बनाना होता है तो गैस का इस्तेमाल करने हैं नहीं तो चूल्हे पर ही खाना बनाया जाता है।"

डब्लूएचओ के मुताबिक गांवों में इस्तेमाल होने वाले एक साधारण मिटटी के चूल्हे में बाकी किसी भी चूल्हे की तुलना में 30 प्रतिशत ज़्यादा प्रदूषण होता है। जो किसी को भी गंभीर रूप से खासी या टीबी जैसी बीमारियों का शिकार बना सकता है।

खाना बनाने में चूल्हे के इस्तेमाल से होने वाली दिक्कतों के बारे में बछरावां क्षेत्र के सीएचसी के प्रमुख डॉक्टर प्रशांत बताते हैं," किसी आम चूल्हे पर खाना पकाने की अपेक्षा मिटटी के चूल्हे पर खाना पकाने वाली महिलाओं को फेफड़े की समस्या ज़्यादा होती है। चूल्हों से निकलने वाला धुवां सीधे महिलाओं के संपर्क में रहता है, इसलिए खांसी होने का खतरा ज़्यादा होता है और ध्यान न दिया जाए तो यह टीबी जैसी खतरनाक बीमारी की शक्ल भी ले सकता है।

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