नई सरकार से ग्रामीणों की हजारों आस, ग्रामीणों में उत्साह

Update: 2017-03-11 15:08 GMT
रिजल्ट आने से पहले ग्रामीण इलाकों में भी सरगर्मी रही।

स्वयं प्रोजेक्ट टीम

लखनऊ। सुबह से ग्रामीण क्षेत्रों में विधानसभा चुनाव को लेकर उत्साह देखने को मिल रहा है, गाँव कनेक्शन टीम ने ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों से नयी सरकार से उनकी उम्मीदें जानी।

लखनऊ जिले के बक्शी का तालाब ब्लॉक के सिवां गाँव की आशा कार्यकर्ती राजकुमार को नयी सरकार से कई उम्मीदें हैं, राजकुमारी कहती हैं, "हम गाँव में पोलियो पिलाते हैं, उसके 75 रुपए मिलते हैं, वो भी समय से नहीं मिल पाता है, हम चाहते हैं कि आशा बहुओं को समय से मानदेय मिल जाया करे।"

नए मुख्यमंत्री से मजदूर वर्ग की भी कई उम्मीदें हैं, लखनऊ में बन रही एचसीएल औद्योगिक इकाई के निर्माण स्थल पर काम करे मजदूर सरोज सिंह (30 वर्ष) ने बताश, अभी तक हम मजदूरों के लिए एक निश्चित दिहाड़ी की कोई योजना नहीं चलायी गयी है। कहीं दो सौ मिलते हैं तो कहीं सौ रुपए ही मिलते हैं, इतने से घर थोड़ी चलता है।"

वो आगे बताते हैं, नयी सरकार ऐसी होनी चाहिए जो हमें हमारे काम के हिसाब से पैसा देने की अच्छी योजना चलाए।"

इस बार प्रदेश भर में आलू की बंपर पैदावार हुई, लेकिन किसानों को आलू का सही दाम नहीं मिल रहा है। राजधानी लखनऊ के बीकेटी ब्लॉक के दिगुई गाँव आलू की खेत मे दर्जनों मजदूरों लगे हुए हैं। आलू के खेत में खड़े किसान शैलेन्द्र कहते हैं, " सुनने में आ रहा कि बीजेपी जीत रही है, हमने वोट दिया था कि जो सरकार बने उससे भ्रष्ट्राचार खत्म हो, गाँव में बिजली पानी की समस्या भी खत्म हो जाए।"

वो आगे कहते हैं, "इस बार आलू का रेट गिर गया है, न ही स्टोर में जमा हो रहा है, यहां खेत में पचास लेबर हर दिन काम करते हैं, उनकी मजदूरी भी देनी पड़ती है, आलू का रेट भी कोई नहीं बढ़ा रहा है। नयी सरकार आलू किसानों के लिए कुछ करें।"

सभी पार्टियों ने अपने घोषणा पत्र में शिक्षा के लिए कई नयी योजनाओं की बात की है। गोसाईगंज ब्लॉक के मोअज्जमनगर के पूर्व माध्यमिक विद्यालय की प्रधानाध्यपिका राजेश्वरी सरकार की मिड डे मिल योजना से खुश नहीं है। वो कहती हैं, "हमारे यहां ग्रामीण क्षेत्र से बच्चे आते हैं, मिड डे मिल की व्यवस्था पूर्व सरकार ने इसलिए कि थी कि इससे बच्चे ज्यादा स्कूल में आएंगे। आप ये बताइए कि जो माता-पिता अपने बच्चे को पैदा करते हैं तो उनके अंदर इतनी क्षमता होती है कि वो अपने बच्चों को खिला सकें।"

वो आगे बताती हैं, "इस व्यवस्था से प्रधानाध्यपिका के ऊपर जिम्मे मिड डे मिल की जिम्मेदारी रहती है, मैं चाहती कि मिड डे मिल की जिम्मेदारी प्रधानाध्यपिका से हटा दी जाए।"

प्रदेश भर में छात्र-छात्राओं को छात्रवृत्ति दी जाती थी, लेकिन अब नहीं मिलती है। इस बारे में वो कहती हैं, " पिछले तीन वर्षों बच्चों को छात्रवृत्ति नहीं मिली है, मेरा मानना है कि अगर बच्चों को जो आगे बढ़ाना है, इसलिए उन्हें छात्रवृत्ति दी जाए, जिससे वो आगे बढ़ सकें। केवल बस्ता बांट देने या फिर खाना दे देने से कुछ नहीं होने वाला है।"

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