मच्छरों के काटने से पशुओं में घटता है दूध उत्पादन 

Update: 2016-11-21 17:05 GMT
बनिगवां गाँव में पशुपालकों ने लगा रखी है अपने पशुओं के लिए मच्छरदानी।

बारिश के दौरान मच्छरों का प्रकोप बढ़ जाता है, ये मच्छर इंसानों की तरह पशुओं को भी परेशान करते हैं, गाय-भैंस तो दूध तक कम देने लगती हैं। शाहजहांपुर समेत कई इलाकों में लोग पशुओं को बाकायदा मच्छरदानियां लगाते हैं...

लखनऊ। अगर आप अपनी डेयरी के आस-पास जमा गंदगी और इकट्ठा पानी पर ध्यान नहीं देते हैं, तो ऐसा न हो कि आपका पशु दूध देना कम कर दे। मच्छर इंसानों का तो खून चूसते हैँ, साथ ही पशुओं को भी नुकसान पहुंचाते हैं। इनके काटने से पशुओं की दूध उत्पादन क्षमता भी घट जाती है।

पशुओं में यह होती हैं समस्याएं

उत्तर प्रदेश पशुधन विकास परिषद् के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. बीबीएस यादव ने बताया कि "पशु स्वस्थ है तो दूध भी ज्यादा मिलेगा। जब पशुओं को मच्छर काटते हैं तो वो सही ढंग से खा नहीं पाते हैं। साथ ही न ही जुगाली कर पाते हैं, जिससे 5 से 10 प्रतिशत दूध में कमी आ जाती है। कभी-कभी मच्छर पशुओं को इतना काटते हैं कि उनके पैरों से खून भी आ जाता है।"

पशुपालक इस तरह करें उपाय

पशुओं से मच्छरों को बचाने के लिए डॉ. यादव बताते हैं कि ज्यादातर पशुपालक ध्यान नहीं देते हैं, इससे उनको ही आर्थिक नुकसान होता है। पशुओं को पैरों में नीम का तेल लगा देना चाहिए। इसके साथ ही नीम और तुलसी के पत्ते को जला कर एक कोने में रख दें और बाद में बुझा दो। उससे उठने वाला धुआं मच्छरों को मार देता है। पशुपालकों को यह सुबह और शाम करना चाहिए।

सबसे पहले खाना छोड़ देते हैं पशु

अपनी बात को जारी रखते हुए डॉ. यादव बताते हैं कि इसके अलावा अजवायन का तेल, लौंग के तेल से भी मच्छर भगा सकते हैं। पशुपालक अपने पशुओं को गौशाला में रखते हैं वो जालीदार दरवाजा बनवाएं, जिससे मच्छर अंदर नहीं आऐंगे। जब मच्छर पशुओं को ज्यादा काटते हैं तो वह सबसे पहले खाना छोड़ देते हैं।

बनिगवां गाँव में ग्रामीण पशुओं के लिए लगाते हैं मच्छरदानी

जहां एक तरफ पशुपालक मच्छर काटने का उपाय नहीं करते, वहीं शाहजहांपुर जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर बनिगवां गाँव हैं, जहाँ पर लोग मच्छरदानी लगा कर खुद को तो मच्छरों से बचाते ही हैं, साथ ही अपने पशुओं को भी मच्छरदानी लगाते हैं। इस गाँव में ऐसे लगभग दस घर हैं, जहाँ के हर घर में चार-पांच पशु हैं और सब मच्छरदानी में ही रहते हैं। लखबीर सिंह (30) की तीन गाय और एक भैंस शाम होते ही गुलाबी मच्छरदानी में बाँध दी जाती हैं। लखबीर सिंह बताते हैं, पिछले दस बारह वर्षों से हम अगस्त के महीने से मच्छरदानी लगा देते हैं, हमारी तरह उन्हें भी तो मच्छर काटते हैं। यहाँ पर लोग जाली का पूरा थान लाते हैं और घर पर पशुओं के हिसाब से मच्छरदानी सिलते हैं। 30 बाई 20 की मच्छरदानी में लगभग 1500 से 1600 रूपए तक का खर्च आता है। एक बार मच्छरदानी बनने पर एक-दो साल तक चलती है।

Similar News