पहाड़ों पर हो रही बर्फबारी आलू के लिए घातक, लाल की जगह सफेद आलू पर पाले का खतरा ज्यादा
वीरेंद्र शुक्ला, स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क
छेदा (बाराबंकी)। पिछले हफ्ते अचानक पड़े पाले से किसानों का नुकसान हो गया है। पाला पड़ने से सबसे ज्यादा नुकसान आलू किसानों का हुआ है। इसमें भी लाल कि जगह सफेद आलू की फसल ज्यादा प्रभावित हुई है। कृषि वैज्ञानिकों की माने तो पहाड़ों हो रही बर्फबारी आलू और सरसों जैसी फसलों के लिए घातक साबित हो सकती है।
जिस खेत में पानी लगाया था उस पर असर नहीं पड़ा लेकिन दूसरे खेत में पाला लग गया। एक खेत में सफेद और लाल आलू दोनों थे, लेेकिन पाला सिर्फ सफेद में लगा है। कुछ वैज्ञानिकों की सलाह पर दवा छिड़की है देखो क्या होता है। मेरी करीब 8 बीघे फसल में नुकसान दिख रहा है।नरेंद्र कुमार, आलू किसान, बाराबंकी
बाराबंकी जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में दोंदेपुरवा में रहने वाले प्रमोद वर्मा ने 50 बीघा आलू बोया था, जिसमें से करीब 30 बीघे में पाला पड़ गया है। इसी तरह टांडपुर गांव के अभयराज सिंह के 5 बीघा और नरेंद्र कुमार शुक्ला 10 बीघे में पाला लग गया। नरेंद्र ( 29 वर्ष) बताते हैं, “ मेरे पास 20 बीघा आलू है, तो दो खेतों यानी 10 बीघे में पानी लगा दिया था, लेकिन 10 में नहीं लग पाया। इसी बीच पाला पड़ गया तो देखते ही देखते पूर खेत के बिरवा (फसल) मुरझाकर पीले पड़ गए।” वो आगे बताते हैं, “पाले का असर लाल की जगह सफेद आलू में ज्यादा हुआ है। हालांकि मैंने वैज्ञानिकों से सलाह लेकर दवा का छिड़काव किया है देखो क्या होता है।”
इस बारे में बात करने पर बाराबंकी के जिला कृषि संरक्षण अधिकारी डॉ. लल्लन सिंह यादव बताते हैं, “पाला की कोई दवा तो है नहीं, खेत में नमी ही इसका एक मात्र उपाय है। कृषि विभाग ने लगातार किसानों को जागरुक किया था कि खेत में हल्की सिंचाई कर नमी बनाए रखें या फिर रात में धुआं करें।” सफेद और लाल आलू में पाले के असर के बारे में पूछने पर कृषि संरक्षण अधिकारी ने कहा, “कुछ किस्मों में रोग सहने की क्षमता ज्यादा होती है।”
पाला की कोई दवा तो है नहीं, खेत में नमी ही इसका एक मात्र उपाय है। कृषि विभाग ने लगातार किसानों को जागरुक किया था कि खेत में हल्की सिंचाई कर नमी बनाए रखें या फिर रात में धुआं करें।डॉ. लल्लन सिंह यादव, जिला कृषि संरक्षण अधिकारी, बाराबंकी
कृषि विज्ञान केंद्र, कटिया, सीतापुर के फसल सुरक्षा वैज्ञानिक डॉ. दया शंकर श्रीवास्तव किसानों को सलाह देते हुए कहते हैं, “अभी पहाड़ों पर बर्फबारी जिस तरह हो रही है तापमान गिरेगा। कम तापमान (ज्यादा सर्दी) से फसलों के लिए घातक होती है। इसलिए किसानों को चाहिए कि मैंकोजेब और फेनाडिमोन युक्त दवाएं 2 ग्राम प्रतिलीटर का छिड़काव हर 15 दिन में करते रहे।” यानि एक टंकी में पानी में 30 मिली लीटर दवा मिलकर कर छिड़काव करें। क्योंकि पाला लगने पर झुसला रोग लगने की भी आशंका बढ़ जाती है। कृषि वैज्ञानिक किसानों को पाले से बचने के लिए सुबह-शाम खेतों के आसपास धुआं और कंडे (उपले) की राख का भी छिड़काव कर सकते हैं।
पहाड़ों पर बर्फबारी से तापमान नीचे गिर रहा है, उससे फसलों में रोग लगने की आशंका बढ़ गई है। इसलिए किसानों को चाहिए कि मैंकोजेब और फेनाडिमोन युक्त दवाएं 2 ग्राम प्रतिलीटर का छिड़काव हर 15 दिन में करते रहे। पाला लगने पर झुसला रोग लगने की भी आशंका बढ़ जाती है।डॉ. दयाशंकर श्रीवास्तव, फसल सुरक्षा वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केंद्र, कटिया सीतापुर
किस फसल पर ज्यादा नुकसान के बारे में पूछने पर डॉ. श्रीवास्तव आगे बताते हैं, “आलू समेत सभी दूसरी फसलों में रोग भी किस्मों पर निर्भर करते हैं, परंपरागत फसलों में रोग कम लगते हैं, जबकि सफेद आलू जैसी मॉडिफाइड (जीन परिवर्तित) फसलों में रोग लगने की आशंका ज्यादा होती है। इसीलिए जलवायु के अनुकूल किस्मों का चयन जरुरी हो जाता है।”
सिंचाई और धुएं के अलावा अगर आप मेरी तरह जैविक खेती करते हैं तो उपले का हयूमिक या फिर जीवामृत का छिड़काव कर सकते हैं। कुछ नहीं होने की दशा में किसानों को चाहिए हल्के गर्म पानी का ही स्प्रे कर दें।नितिन काजला, किसान, भटीपुरा मेरठ, यूपी
आलू की ज्यादातर फसलें 60 दिन से ऊपर हैं, जिसमें अब पड़ चुके दाने की बढ़वार चालू है। ऐसे में रोग लगने पर उत्पादन पर असर पड़ता है। मेरठ के भटीपुरा में जैविक खेती करने वाले प्रगतिशील किसान और किसान संस्था साकेत के चेयरमैन नितिन काजला कहते हैं, “जब रात का तापमान 5 डिग्री से नीचे जाता है तो पाला पड़ता है। धुएं और सिंचाई के अलावा अगर आप मेरी तरह जैविक खेती करते हैं तो उपले का हयूमिक या फिर जीवामृत का छिड़काव कर सकते हैं। कुछ नहीं होने की दशा में किसानों को चाहिए हल्के गर्म पानी का ही स्प्रे कर दें।”
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