सूखे बुंदेलखंड में अचारी मिर्च की खेती के बढ़ रहे किसान

Update: 2016-10-22 17:24 GMT
कृषि विज्ञान केन्द्र की मदद से महिलाओं को दी जा रही खेती की जानकारी।

हरे श्याम मिश्रा (कम्युनिटी रिपोर्टर)

चित्रकूट। ज्वार, बाजारा, अरहर जैसी कम सिंचाई वाली फसलों के लिए जाने जाना वाले चित्रकूट जिले में अब अचारी मिर्च की खेती भी शुरू की गयी है।

कृषि विज्ञान केन्द्र गनीवां के वैज्ञानिकों के प्रयास से चित्रकूट में भी अचारी मिर्च की खेती की जा रही है। जिले के गनीवां, कुई और बनाड़ी गाँव की 29 महिला किसानों को मिर्च के उन्नत किस्म के पौधे दिए गए हैं, इससे महिला किसानों को अतिरिक्त आय होगी।

कुई गाँव की महिला किसान मुन्नी देवी कहती हैं, "अभी तक हम लोग केवल बाजारा, अरहर की ही खेती करते हैं, इस बार मिर्च की फसल लगायी है, इस मिर्च की खेती अभी तक हमारे यहां नहीं की जाती थी, लेकिन अब मेरी जैसी कई महिलाओं ने लगायी है।"

मिर्च बहुत ही उपयोगी फसल है इसको हरी खाने के रूप में मसाले तथा अचार के रूप में प्रयोग करते है, इसकी खेती जायद एवं खरीफ दोनों फसलों में की जाती है। चित्रकूट जैसे जिलों में अभी इसकी खेती बहुत कम मात्रा में की जाती है। अभी उसी क्षेत्र में की जाती है जहां पर पानी की ठीक व्यवस्था होती है। इसके पौधे के वृद्धि के लिए नम एवं गर्म मौसम में ठंडक होना चाहिए, भूमि अच्छे जल निकास वाली बलुई दोमट या दोमट भूमि उपयुक्त होती हैI

कृषि विज्ञान केन्द्र के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. नरेन्द्र सिंह कहते हैं, "कृषि विज्ञान की मदद से किसानों को नयी-नयी तकनीकि और खेती की जानकारी दी जाती है। इस बार 29 महिला किसानों को अचारी मिर्च की खेती की जानकारी दी गयी है। फसल भी अच्छी आयी है, शुरू में रोग लग रहे थे, लेकिन अब सही है।" वो आगे बताते हैं, "ये तीनों गाँव अभी खेती में बहुत अच्छे नहीं है, ऐसे केन्द्र की मदद से इन्हें बेहतर बनाया जा रहा है।"

बनाड़ी गाँव की राजकुमारी ने भी मिर्च के पौधे लगाए है। वो बताती हैं, "अभी मिर्च हरी है जब लाल होने लगेगी तब हम लोग इसे बाजार में ले जाएंगे। यही मिर्च हमारी तरफ 60 से 100 रुपए तक बिकती है।" कृषि विज्ञान केन्द्र खेती के साथ ही प्रसंस्करण का भी प्रशिक्षण देता है। यहां से महिलाओं को अचार बनाने का भी प्रशिक्षण दिया जाता है। अब खुद के खेत में मिर्च होने से महिलाओं को बाजार से मिर्च नहीं खरीदना पड़ेगा।

"This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org)."

Similar News