नींबू वर्गीय फसलों को बचाएं हरितमा रोग से

Update: 2016-11-08 18:45 GMT
कृषि वैज्ञानिक डॉ राजीव कुमार सिंह।

हरितमा रोग से नींबू वर्गीय फसलों का बहुत नुकसान होता है। यह एक अविकल्पी जीवाणु जनित रोग है। यह रोग नींबू की सभी प्रजातियों एवं किस्मों को हानि पंहुचाता है। पत्तियों का छोटा रह जाना, कम घनी पत्तियों का आना, शाखाओं में मृत सिरा रोग हरे एवं मूल्यहीन फलों की बहुत कम उपज इस रोग के मुख्य लक्षण हैं।

यह पड़ता है असर

पत्तियों में विविध प्रकार की पर्ण हरिमाहीनता पायी जाती है। यह रोग ग्राफ्टिंग एवं सिट्रस सिल्ला (डायफोरिना सिट्राई) के द्वारा फैलता है। रोग ग्रसित पौधों में पत्तियां एवं फल अत्यधिक गिरने लगते हैं और पौधा बौना रह जाता है। रोगी पौधे की कुछ शाखाएं गम्भीर शाखा मृत सिरा रोग के लक्षण दर्शाती हैं। जबकि अन्य कुछ शाखायें सामान्य स्वस्थ दिखाई देती हैं। रोगी पौधों के फल अधिकांशतः पकने पर भी हरे रह जाते हैं और अगर ऐसे फलों को सूर्य के प्रकाश के विपरीत देखा जाता है तो उनके छिलकों पर स्पष्ट पीला धब्बा दिखाई देता है। रोगी पौधों के फल छोटे एवं विकृत आकार, कम जूस एवं अरोचक स्वाद के कारण मूल्यहीन हो जाते है।

रोग की रोकथाम

  • चूंकि यह रोग ग्राफ्टिंग से फैलता है इसलिये बडवुड़ को हरितमा रोग रहित पौधों से लेकर प्रयोग करना चाहिये। बीजू पौधों (न्यूसेलर सीड़लींग्स) को उगाने से भी यह रोग कम फैलता है।
  • रोग के वाहक कीट सिट्रस सिल्ला का नियन्त्रण करने के लिये फॉस्फोमिडान अथवा पैराथियान अथवा इमिडाक्लोप्रिड का छिड़काव करना चाहिए। ये कीटनाशक इस कीट की शिशु एवं प्रौढ़ दोनों अवस्थाओं का प्रभावी नियन्त्रण करते हैं।
  • दानेदार डाइमेथोयेट 10 प्रतिशत का पेड़ के थाले के चारों ओर भूमि मे प्रयोग करने पर सिट्रस सिल्ला का अच्छा नियन्त्रण होता है।
  • रोगी पौधों को प्रतिजैविक टेरासाइक्लिन 500 पीपीएम का इन्जेक्शन देने से रोग अस्थाई रूप से रूक जाता है।

ओपिनयन पीस: डॉ राजीव कुमार सिंह, वैज्ञानिक (बागवानी), कृषि विज्ञान केन्द्र, बलिया

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