शेड पद्धति से करें डेयरी निर्माण, अपनी लागत बचाएं पशुपालक 

Update: 2016-11-14 15:03 GMT
पशुपालक भानु प्रताप ने अपने पशुओं के लिए अपनाई शेड पद्धति।

कम्यूनिटी जर्नलिस्ट: मोबिन अहमद

रायबरेली। जिले के इचौली गाँव में डेढ़ एकड़ क्षेत्र में कुशल पशुपालन कर रहे भानु प्रताप ने अपने पशुओं की खास देखरेख के लिए शेड पद्धति पर आधारित आधुनिक ढंग की डेयरी का निर्माण करवाया है। इस सुविधा से ना केवल वो कम क्षेत्र में अधिक पशुओं का पालन कर पा रहे हैं, बल्कि अपनी लागत भी कम कर रहे हैं।

इस तरह बचता है खर्चा

पशुपालक भानु प्रताप बताते हैं,'' इस सुविधा में डेयरी के सभी पशुओं को छायादार बाड़े में आराम से रखा जा सकता है। इस बाड़े के चारों ओर ढलान में बनी नालियों की मदद से जानवरों का मल भी आसानी से बाहर निकल जाता है, जिससे पशु के इर्द-गिर्द साफ-सफाई भी रहती है। इससे लेबर का खर्च भी बचता है।

250 लीटर दूध का उत्पादन

डेयरी में पशुओं को बेहतर ढंग से रखा जा सके, इसके लिए भानु प्रताप ने कानपुर और फैज़ाबाद विश्वविद्यालय में शेड पद्धति से बने बाड़ों के बारे में जाना। इसकी मदद से आज वो अपनी डेरी में 25 हरियाणवी किस्म की मुर्र्हा भैसों का सफल पालन कर रहे हैं, जिसकी मदद से वो प्रतिदिन 250 लीटर दूध उत्पादन कर पा रहे हैं।

पशुपालकों को भानु प्रताप की सलाह

प्रदेश में दुधारू पशुओं की अच्छी नस्लों की कमी के बारे में बताते हुए भानु प्रताप कहते हैं," प्रदेश सरकार पशुपालकों के लिए बहुत कुछ कर रही है, इसके बावजूद प्रदेश में मुर्र्हा भैसों की ब्रीडिंग के लिए नाम मात्र के गर्भाधान केंद्र हैं। ऐसे में जिन पशुपालकों के पास मुर्र्हा भैंसे हैं, वो कम जागरूक होने की वजह से उनका साधारण गर्भाधान करवा देते हैं, जिससे उनके पशु के दूध की गुणवत्ता तो कम होती ही है, साथ ही उनका विकास भी रुक जाता है।"

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

Similar News