इनके एक पुकार पर दौड़े आते हैं सैकड़ों बंदर

Update: 2016-12-30 20:14 GMT
पिछले छह सालों से नन्दराम यादव बंदरों को खिला रहे हैं पूड़ी।

रिपोर्ट: बसंत कुमार

लखनऊ। आज जहां इंसान इंसान को खाने के लिए नहीं पूछता, वहीं राजधानी लखनऊ के एक गाँव हासेमऊ के रहने वाले नन्दराम यादव रोजाना हजारों बंदरों को पूड़ी खिलाते हैं। बंदर उनकी आवाज़ पहचानते हैं और एक आवाज़ में दौड़े चले आते हैं।

छह वर्षों से लगातार जारी

36 वर्षीय नन्दराम यादव बंदरों को पूड़ी पिछले छह साल से खिला रहे हैं। नन्दराम रोजाना सुबह 9 से 10 बजे के बीच में इंदिरा नहर डैम के करीब स्थित जंगल में रहने वाले हजारों बंदरों के लिए दो बोरी पूड़ी भरकर ले जाते हैं। नन्दराम की आने की आहट पाकर ही बन्दर पेड़ से उतर जंगल के किनारे आ जाते हैं।

अचानक शुरू हो गया सिलसिला

नन्दराम यादव बताते हैं कि मेरे मन में जानवरों के प्रति बचपन से ही प्रेम रहा है। छह साल पहले एक दिन अचानक से मेरा मन हुआ और यह सिलसिला शुरू हो गया। मेरे इस काम से घर वाले और आस पड़ोस के लोग बेहद खुश रहते हैं।

कभी हिसाब नहीं लगाया

बंदरों को खिलाने में रोजाना कितना खर्च होता है, सवाल के जवाब में नन्दराम यादव बताते हैं कि मैंने कभी इस चीज़ का हिसाब नहीं लगाया है। रोजाना 25 से 30 किलो आटे का पूड़ी बनाकर ले जाता हूँ। मैं बंदरों को खिलाकर सोचता हूँ कि अपनी आमदनी से ईश्वर का हिस्सा निकाल रहा हूँ। मुझे बंदरों को खिलाकर ख़ुशी मिलती है।

ताकि भूखे न रह जाएं बंदर

नन्दराम बताते हैं कि बन्दर भूखे ना रह जाएं, इसके कारण मैं घर से बाहर नहीं जाता हूँ। अगर किसी कारण से मुझे घर से बाहर जाना होता है तो मेरे बदले मेरा चालक बंदरों को खिलाता है। पिछले छह साल में एक भी दिन बन्दर बिना खाए नहीं रहे हैं।

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