दिहाड़ी किचन: जहाँ हर दिन मजदूरों को मिलता है मुफ्त में खाना

भारत जैसे बड़े देश में भुखमरी को ख़त्म करना एक बहुत बड़ा काम है; लेकिन एक समाज के तौर पर हमारी पहल भुखमरी के खिलाफ़ एक बड़ा योगदान दे सकती है और ऐसी ही एक पहल दिहाड़ी किचन है जिसे चलाते हैं सोमनाथ कश्यप।

Update: 2024-04-24 07:41 GMT

हर दिन की तरह सुबह आठ बजे तक लखनऊ के नहरिया चौराहे के लेबर चौक पर मजदूरों की भीड़ इकट्ठा हो गई थी। हाथ में झोला लिए तो कोई सिर पर गमछा बाँधे काम के इंतज़ार में खड़ा था; जैसे-जैसे समय आगे बढ़ा कई लोगों को काम भी मिल गया और वो आगे बढ़ गए है। लेकिन कई ऐसे भी लोग थे; जिन्हें कोई काम नहीं मिला, लेकिन काम न मिल पाने के बाद भी उन्हें इस बात की फिक्र नहीं थी कि उन्हें खाली पेट रहना पड़ेगा।

राजधानी लखनऊ से 130 किमी दूर लखीमपुर के कन्हैया भी उन्हीं मजदूरों में से एक थे, जिन्हें पहले काम न मिलने पर कई बार भूखा रहना पड़ता, लेकिन अब उनकी फ़िक्र नहीं होती; क्योंकि उनके जैसे मजदूरों के लिए यहाँ चलता है दिहाड़ी किचन, जहाँ मुफ्त में खाना मिलता है।

37 वर्षीय कन्हैया गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "जो मजदूर लखनऊ के होते हैं उन्हें अगर काम नहीं मिला तो वो घर चले जाते हैं; लेकिन हम जैसे लोग जो घर से दूर हैं वो शाम तक इंतज़ार करते हैं कि शायद कोई काम मिल जाए। लेकिन इस बात की ख़ुशी होती है कि हमें भैया की वजह से एक वक़्त का खाना मिल जाता है; जिसके लिए हम उन्हें धन्यवाद देना चाहते हैं।"


कन्हैया पिछले 6 महीनों से दिहाड़ी किचन में आते जाते रहते हैं, अब आपके मन में सवाल आ रहा होगा कि आखिर ये दिहाड़ी किचन क्या है?

पिछले आठ साल से चल रहे दिहाड़ी किचन की शुरुआत की है 29 वर्षीय सोमनाथ कश्यप ने; जहाँ अब तक 13 लाख से भी अधिक मजदूरों को खाना खिला चुके हैं।

आखिर सोमनाथ कश्यप ने दिहाड़ी किचन की शुरुआत क्यों की के सवाल पर वो गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "जब मैं ग्रेजुएशन कर रहा था तब कुछ साथियों के साथ बस्ती के बच्चों को पढ़ाना शुरु किया। उसी समय हमारे एक मित्र सतीश गुप्ता जो कैटरिंग का काम करते हैं, उनसे बात करके जो भी शादियों में खाना बच जाता उसे बस्ती के साथ मजदूरों और रिक्शा चलाने वालों को खिलाने की शुरुआत की।"

"और धीरे-धीरे ये करवाँ आगे बढ़ता चला गया और 2018 के करीब इसका नाम हमने दिहाड़ी किचन रख दिया; क्योंकि ये सब हमारे मजदूर भाइयों के बीच और उनके लिए किया जाता था जो दिहाड़ी के माध्यम से कमाते हैं, "सोमनाथ ने आगे कहा।


2023 के ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 125 देशों में भारत का 111वाँ स्थान था। भारत में करीब 20 करोड़ लोग रोज़ रात को भूखें पेट सोने पर मजबूर हैं। भारत जैसे बड़े देश में भुखमरी को ख़त्म करना एक बहुत बड़ा काम है लेकिन एक समाज के तौर पर हमारी पहल भुखमरी के खिलाफ़ एक बड़ा योगदान दे सकती है और ऐसी ही एक पहल दिहाड़ी किचन है।

आपने अब तक कितने मजदूर भाइयों को खाना खिलाया है? इस सवाल पर दिहाड़ी किचन के संचालक सोमनाथ कश्यप हँसते हुए गाँव कनेक्शन से कहते हैं, "अब ये आप अनुमान लगा लीजिए, हमारा काम है जो परमेश्वर ने हमको दिया है और वो है सेवा करना। अब हर दिन 400 से 500 लोग खाना खाते हैं और करीब आठ से नौ साल से हम ये काम कर रहे हैं बाकि हम तो हिंदी साहित्य के आदमी हैं गणित इतनी अच्छी है नहीं। "

लेकिन सोमनाथ कश्यप को कई चुनौतियों का सामना भी करना पड़ा। इसमें कोरोना महामारी भी शामिल है; लेकिन उन्होंने किसी भी परिस्थिति में अपनी किचन को बंद नहीं होने दिया। हालाँकि दिहाड़ी किचन का स्वरुप बदलता रहा; लेकिन वो बंद कभी नहीं हुई। सोमनाथ बताते हैं, "कोविड का एक बड़ा दौर आया जहाँ हमने देखा कि पहली लहर में जितने हमारे मजदूर भाई लोग थे। वो पलायन कर रहे थे तो उन लोगों को हम लोगों ने खाना देना शुरू किया। उन लोगों को पका भोजन और जो उनके घर परिवार में लोग थे उन्हें कच्चा राशन दिया।"


पिछले कई सालों लखनऊ के आलमबाग के नहरिया चौराहे के पास से सड़क किनारे दूकान चलाने वाले राम सुंदर कहते हैं कि पिछले कई सालों से वो दिहाड़ी किचन को चलते हुए देख रहे हैं। गमछे से पसीना पोछते हुए वो गाँव कनेक्शन से कहते हैं, "यहाँ पर करीब 11 बजे या कभी-कभी 12 बजे दिहाड़ी किचन लग जाती है और यहाँ पर मजदूर भाइयों को खाना बाँटा जाता है और कभी-कभी तो मैंने भी यहाँ से खाना खाया है।"

UNEP (संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम) की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय घरों में प्रति वर्ष 68.7 मिलियन टन खाना बर्बाद होता है, साधारण शब्दों में यह प्रति व्यक्ति लगभग 50 किलोग्राम होता है। खाना बर्बाद करने के मामले में भारत दूसरे स्थान पर है। ये आकड़ें चौकाने वाले हैं लेकिन सच है। भारत जहाँ करोड़ों लोग भूखे पेट सोने पर मजबूर है, वहाँ अगर इस खाने को बर्बादी से अगर हम बचा पाए तो हम एक बहुत बड़ी समस्या का समाधान कर पाएँगे। इस काम को करना कैसे है इसका एक उदाहरण है सोमनाथ कश्यप की दिहाड़ी किचन।

सोमनाथ आगे कहते हैं, "परमेश्वर कि कृपा से आज लोग अपना जन्मदिन या अपने ख़ुशी के मौके दिहाड़ी किचन के साथ मनाते हैं और मजदूर भाइयों के लिए एक वक़्त के खाने का प्रबंध कर जाते हैं। कभी भीड़ में कोई शराबी भी आ जाते हैं लेकिन मैंने कभी उनको खाना देने से इंकार नहीं किया, क्योंकि भगवान ने मुझे पेट भरने का काम सौपा है फिर चाहे वो शराबी हो या किसी भी धर्म या जाति का हो।"

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