गाँव की महिलाओं के लिए मिसाल हैं नमो ड्रोन दीदी

18 साल पहले पढ़ाई छोड़ चुकी सुनीता वर्मा अब विज्ञान और तकनीक की बात करती हैं; अब तो उनके गाँव की लड़कियाँ भी उनकी तरह बनना चाहती हैं, तभी तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उनकी तारीफ कर चुके हैं। मिलिए सीतापुर की नमो ड्रोन दीदी से

Update: 2024-03-08 09:57 GMT

बूढ़पुरवा (सीतापुर, उत्तर प्रदेश)

गाँव की खड़ंजे वाली सड़क, दोनों तरफ मिट्टी के घर और उसी रास्ते से होकर गुजर रहा था एक ऑटो; देखने में तो ये दूसरे ऑटो की तरह ही था, लेकिन गाँव के ज़्यादातर लोगों की नज़रें उसी पर टिकी थी।

जैसे ही एक घर के सामने ऑटो रुका, उसमें से गुलाबी रंग का सलवार कुर्ता पहने सुनीता वर्मा निकलीं, जिन्हें सभी ने घेर लिया। आप को लग रहा होगा कि आखिर सुनीता वर्मा से हर कोई क्यों मिलना चाहता है; चलिए हम बता देते हैं, पतली-दुबली सुनीता ड्रोन पायलट हैं, जिन्हें आजकल लोग नमो ड्रोन दीदी के नाम से जानते हैं।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से करीब 90 किलोमीटर दूर सीतापुर जिले के मछरेहटा ब्लॉक में अपने गाँव गोड़ा से मिश्रिख ब्लॉक बूढ़पुर में ड्रोन से दवा का छिड़काव करने वे पहुँची थीं। गाँव पहुँचते ही 35 साल की सुनीता अपने काम में लग जाती हैं, इतनी सावधानी से हर एक काम करती हैं कि ऐसे लगता है कई साल से यही काम कर रहीं हैं।


आखिर एक छोटे से गाँव की सुनीता वर्मा ड्रोन पायलट कैसे बन गईं, के सवाल पर गाँव कनेक्शन से कहती हैं, "मुझे कृषि विज्ञान केंद्र कटिया से इसकी जानकारी मिली; वहाँ के प्रभारी डॉ दया सर ने बताया कि अगर ड्रोन पायलट बनना चाहती हो तो अप्लाई कर दो; फिर उन्होंने ही मेरा फार्म भरा और मेरा सिलेक्शन भी हो गया।"

सुनीता का चयन ड्रोन दीदी योजना में हो गया, इसके बाद उन्हें प्रयागराज के फूलपुर में स्थित इफको सेंटर पर प्रशिक्षण के लिए बुलाया गया। लगभग 18-19 साल पहले समाजशास्त्र से ग्रेजुएशन करने वाली सुनीता देवी के लिए सब कुछ नया था।

सुनीता अपनी ट्रेनिंग के बारे में बताती हैं, "10 अक्टूबर को ट‍्रेनिंग लेने गए; वहाँ समस्याएँ तो बहुत थीं, इंग्लिश नहीं आती थी; लेकिन मेरे साथ दो और भी लड़कियाँ थीं, उन्होंने हमारी बहुत मदद की, दिन में जो इंग्लिश में बताया जाता वो रात में मुझे हिंदी में समझाती थी।"

अंग्रेजी में उनकी सहेलियों ने मदद कर दी, लेकिन अभी आगे और भी चुनौतियाँ थीं, जब उन्हें कंप्यूटर पर बैठाया गया तो उस दिन को याद करके सुनीता कहती हैं, "चौथे दिन में हमें कंप्यूटर पर बैठाया गया, 18-19 साल पढ़ाई छोड़े हो गए हैं, कभी कम्प्यूटर नहीं छुए थे तो लगा कैसे करुँगी; सर ने बहुत डांटा कि आप नहीं कर पाएँगी, मैंने भी ठान लिया था कि मुझे करना है; मैंने कहा कि कर लूंगी, उन्होंने कहा कि चैलेंज कर रही हो; मैंने कहा कि हाँ मैं कर रही हूँ।"


"लंच के बाद जब कंप्यूटर पर बैठाए गए तो तो मैंने 10 मिनट में सर्किल बनाना और दूसरी चीजें सीख ली, तो उन्होंने कहा कि मान गए सुनीता जी आपको सलाम है, "सुनीता ने गर्व से कहा।

10 से 24 अक्टूबर तक वहाँ पर ट्रेनिंग लेने के बाद सुनीता अपने गाँव लौट आईं, 21 दिसंबर को उन्हें ड्रोन दिया गया। उन्हें बैटरी ई-रिक्शा दिया गया है, जिसमें ड्रोन और ज़रूरी सामान रखे होते हैं।

अब सुनीता के पास इफको सेंटर से फोन आते हैं कि उन्हें किस किसान के खेत में छिड़काव करने जाना है। इफको सेंटर से सुनीता का मोबाइल नंबर भी किसानों को दे दिए जाते हैं, जिससे किसान सीधे उनके पास फोन करते हैं।

28 नवंबर 2023 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ड्रोन दीदी योजना की शुरुआत की थी, इस योजना के तहत स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाओं को ड्रोन की ट्रेनिंग दी जा रही है। योजना के तहत सरकार महिला स्वयं सहायता समूह को ड्रोन उपलब्ध कराएगी, जिसका उपयोग उर्वरकों के छिड़काव के साथ दूसरे कृषि कामों में किए जाएँगे। सरकार 2024-25 से 2025-2026 में 15,000 चयनित महिलाओं को ड्रोन उपलब्ध कराएगी।

ग्रामीण विकास मंत्रालय के अनुसार देश के 742 जिलों में कुल 84,92,827 स्वयं सहायता समूह गठित हैं, जिनमें ज्यादातर समूहों की सदस्य महिलाएँ ही हैं। इन समूहों में आमतौर पर 20-25 सदस्य होते हैं, जिनमें अधिकतर गाँवों के रहने वाले हैं।


सुनीता जहाँ भी जाती हैं, वहाँ लोगों की भीड़ लग जाती है। वो कहती हैं, "जिस भी गाँव में जाओ बहुत लोग देखने आ जाते हैं कि एक महिला पायलट कैसे ड्रोन चला रही है; कई बार तो लोग यह भी कहते हैं कि इतनी दुबली पतली हो कैसे ड्रोन उड़ा लेती हो, तब मैं कहती हूँ देखते रहिए अभी खुद पता चल जाएगा कि हम कैसे ड्रोन उड़ा लेते हैं।"

"जब पहली बार गाँव में ड्रोन लेकर पहुँची तो लोगों के तरह-तरह के सवाल थे, कि ये क्या है, कैसे चलता है, क्या हवाई जहाज की तरह चलता है, "सुनीता ने आगे कहा।

25 फरवरी को एक छोटे से गाँव की सुनीता वर्मा की पहचान पूरे देश में हो गई, उस दिन मन की बात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी न सिर्फ उनकी तारीफ की बल्कि उनसे फोन पर बात भी की।

उस दिन को याद करके वो बताती हैं, "तीन-चार दिन पहले बताया गया कि मोदी जी मुझसे बात करेंगे; उन्होंने सबसे पहले मेरा नाम पूछा, घर परिवार और पढ़ाई के बारे में पूछा, फिर उन्होंने पूछा कि पहले क्या करती थी, समूह से जुड़कर क्या करती थी और ड्रोन की ट्रेनिंग कहाँ से ली, ऐसी ही कई चीजें पूछी।"

"आखिर में उन्होंने कहा कि आप महिलाओं को क्या संदेश देना चाहती हो, मैंने कहा कि अगर मैं ड्रोन पायलट बन सकती हूँ; तो दूसरी महिलाएँ क्यों नहीं बन सकती हैं। " नमो ड्रोन दीदी ने आगे कहा।

सुनीता कहती हैं कि आज हमारी पहचान नमो ड्रोन दीदी के रूप में बनी हुई है, पहले कौन सुनीता को जानता था, अब हर कोई नमो ड्रोन दीदी के नाम से जानता है।


सुनीता के इस सफर में कृषि विज्ञान केंद्र और उनके पति संतोष कुमार वर्मा हमेशा साथ खड़े रहे। साल 2013 में कृषि विज्ञान केंद्र की मदद से सुनीता समूह से जुड़ीं , वहाँ पर उन्होंने दीवाली में गोबर से दिए और होली में फूलों से हर्बल गुलाल बनाने जैसे कई काम सीखे।

समाजशास्त्र से स्नातक सुनीता आज विज्ञान की और तकनीकी की बात करती हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में अभी लड़कियाँ गणित और विज्ञान जैसे विषयों को नहीं चुनती हैं। हाल ही में जारी असर की रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण भारत की 8.2 प्रतिशत लड़कियाँ और 16.7 फीसदी लड़के डॉक्टर या इंजीनियर बनना चाहते हैं, जबकि 36.3 प्रतिशत लड़कों ने गणित-विज्ञान जैसे विषयों को चुना, जबकि 28 प्रतिशत लड़कियाँ ऐसा करने में सफल रहीं।

सुनीता की भाँजी भी ड्रोन चलाना चाहती है, वो कहती हैं, "मेरी ननद की बेटी मुझसे कहती रहती है कि मामी हमें भी ड्रोन चलाना सिखा दीजिए।"

अभी उनके पति ई-रिक्शा चलाते हैं, लेकिन सुनीता जल्द ही ई-रिक्शा चलाना सीखने वाली हैं। "ई-रिक्शा हमारे पति चलाते हैं, अभी पायलट तो बन गए हैं आगे ड्राइवर भी बन जाएँगे, अगर किसी दिन मेरे हस्बैंड नहीं हैं तो अकेले जा सकते हैं, "सुनीता ने आगे कहा।

अभी सुनीता को एक एकड़ छिड़काव के लिए 300 रुपए मिलते हैं, एक एकड़ छिड़काव में उन्हें आठ-दस मिनट लगते हैं।

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