तीसरी मंजि़ल का रहस्य

Update: 2015-11-15 05:30 GMT
भाकर त्रिपाठी, लखनऊ, कृषि भवन, तीसरी मंजिल का रहस्य

लखनऊ। देश के खाद्यान्न उत्पादन के लिए उत्तर प्रदेश कृषि निदेशालय की तीसरी मंजि़ल बहुत अहम है, लेकिन इस मंजि़ल के अधिकारियों का कामकाज एक रहस्य बना हुआ है। 

उत्तर प्रदेश सबसे बड़ा खाद्यान्न उत्पादक राज्य है, जिसका सबसे ज़्यादा उत्पादन रबी फसलों से आता है। निदेशालय की यह तीसरी मंजि़ल प्रदेश की रबी फसलों के कामकाज के लिए जिम्मेदार है। लेकिन इस तीसरी मंजि़ल पर बैठने वाले करीब 6-8 संयुक्त व अपर निदेशक स्तर के अधिकारी और सलाहकार के साथ 35-40 बाबू/कर्मचारियों में से ज्य़ादातर के पास बताने लायक कोई ठोस काम ही नहीं है। 

अधिकारियों के मुताबिक राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम) को छोड़कर अन्य किसी के पास कोई भी योजना संचालन के लिए नहीं है। हालांकि इनके वेतन पर लाखों रुपये खर्च किए जा रहे हैं।

''हम यहां बैठाए गए हैं, प्रदेश में दलहन फसल की स्थित सुधारने के लिए, लेकिन कोई योजना नहीं दी गई, एक्सेल शीट बनाते हैं बस। योजना एनएफएसएम वालों के पास है। करीब 7-10 लोगों का स्टाफ है, करीब 6-7 लाख रुपए सैलरी आती है।" दलहन-तिलहन अनुभाग के एक अधिकारी ने बताया, ''अकेले यही नहीं, इस मंजिल पर कुछ अनुभाग ऐसे हैं जो बस नाम के हैं।" 

प्रदेश के कुल खाद्यन्न उत्पादन का 60-70 फीसदी रबी फसलों से ही आता है। कृषि भवन की इस तीसरी मंजिल पर दलहन-तिलहन अनुभाग, चावल अनुभाग, धान्य फसलें, गेंहू व मोटा अनाज, शोध एवं मृदा सर्वेक्षण, प्रसार और एनएफएसएम अनुभाग हैं।

दलहन अनुभाग के पास दलहन की कोई भी योजना संचालित करने का काम नहीं, वो काम 'एनएफएसएफ' देखता है। चावल अनुभाग और धान्य फसलें अनुभाग के पास कोई जानकारी नहीं, क्योंकि उनकी भी सारी विस्तार योजनाएं एनएफएसएफ देखता है। चावल अनुभाग व धान्य फसलें अनुभाग अलग-अलग क्यों बने यह भी साफ नहीं। 

धान्य फसलें अनुभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के पास भी केवल ज़रूरी काम एक्सेल शीट बनाना है। ''हमारा काम है कि जैसे-गेहूँ की बुआई का लक्ष्य तय हो गया, उस लक्ष्य को जि़लावार-मण्डलवार बांटना, और उत्पादन व उत्पादकता का लक्ष्य तय करना।" धान्य फसल अनुभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ''फील्ड पर प्रदर्शन, बीजों पर सब्सिडी से यह सब एनएफएसएम देखता है, उनके पास केंद्र से वित्तीय लक्ष्य आता है।" 

फसलों के लक्ष्य तय करने की प्रक्रिया कई बार वर्तमान मौसमी व किसानों की वित्तीय परिस्थितियों पर ध्यान दिए बिना विभागीय बढ़त पाने के लिए बढ़ा-चढ़ाकर तय की जाती है। यह सारा काम केवल मौखिक दावों पर निर्भर होता जिसे मिलाकर, जोड़-गांठकर प्रदेश का लक्ष्य एक्सेल शीट पर तय कर दिया जाता है।

'गाँव कनेक्शन' जब चावल के बारे में प्राथमिक स्तरीय जानकारी मांगने चावल अनुभाग पहुंचा, तो वहां काम करने वाले एक कर्मचारी ने कहा ''नाम का चावल अनुभाग है, यहां से होता कुछ नहीं, आप गेहूँ एवं मोटा अनाज या एनएफएसएम जाइए, वहीं से कोई जानकारी मिलेगी।"

उधर, जब दलहन अनुभाग के कर्मचारियों की बैठक में जाकर संवाददाता ने दलहन की बुआई-लक्ष्य से संबधित जानकारी प्राप्त करनी चाही तो, एक कर्मचारी ने जवाब दिया, ''मोटा अनाज या धान्य फसलों में जाइए, वहां से मिलेगी जानकारी। यहां से होता है लक्ष्य का निर्धारण, कहो घंटों बैठकर लिस्ट बनाएं।"

'इन बेचारों की कलम भी हम खरीदते हैं'

बाबुओं/कर्मचारियों के पास काम न होना, पैसे की बर्बादी जैसे मुद्दों को लेकर जब 'गाँव कनेक्शन' रिपोर्टर ने इस पर निगरानी के लिए जि़म्मेदार अपर कृषि निदेशक (प्रशासन) से बात करने की अनुमति मांगी तो उनके वैयक्तिक सहायक सीपी सिंह तोमर ने अधिकारी से मुलाकात कराने से मना करते हुए दलील दी, ''देखिए आपके पास बात करने को बिंदु नहीं है, जिनकी आप बात कर रहे हैं उनकी नहीं, ऐसे बिंदु बनाइए कि एक वित्तीय वर्ष में फलाना फसल का इतना लक्ष्य तय था, इतना पैसा आया, लक्ष्य क्यों नहीं पूरा हुआ। इसका जवाब आप उस फसल के अधिकारी से मांगिए। यहां इनसे कोई मतलब नहीं, इनकी तो बेचारों की कलम भी हम खरीद कर लाते हैं।"

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