तुर्की में आईआईटी खड़गपुर के छात्रों ने जीता स्वर्ण पदक

Update: 2016-11-06 14:03 GMT
प्रतीकात्मक फोटो

कोलकाता (आईएएनएस)। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) खड़गपुर के दो छात्रों के एक दल ने तुर्की में आयोजित ‘ग्रीन ब्रेन ऑफ द ईयर’ प्रतियोगिता का स्वर्ण पदक जीता है। इसका आयोजन हाल में वहां के मिडिल-ईस्ट टेक्निकल यूनिवर्सिटी ने किया था। संस्थान की ओर से यह जानकारी दी गई।

जैवप्रौद्योगिकी विभाग के बी.टेक अंतिम वर्ष के छात्र श्रुति सरोडे और आशुतोष सिंह ने एक कोषकीय शैवाल (माइक्रोऐल्जी) की सहायता से अपशिष्ट जल प्रशोधन प्रक्रिया का प्रस्ताव पेश किया जिसमें एक साथ कार्बन डाईआक्साइड उर्त्सजन और ऊर्जा संकट दोनों ही समस्याओं का निदान करने की क्षमता है। आईआईटी ने मीडिया को जारी विज्ञप्ति में यह बात कही।

दोनों को पुरस्कार राशि के रूप में एक-एक हजार यूरो मिले। इस प्रतियोगिता में 24 देशों की 328 टीमों ने भाग लिया था। यह इस प्रतियोगिता का पांचवां संस्करण था। इसका मकसद तीन महत्वपूर्ण मुद्दों जैसे टिकाऊ पर्यावरण, अक्षय ऊर्जा और लंबे समय तक कायम रहने वाले जल संसाधनों के बारे में युवाओं के बीच अंतराष्ट्रीय स्तर पर जागरूकता फैलाना है।

ये दोनों छात्र अपने बी. टेक के प्रोजक्ट को लेकर उस विषय पर काम कर रहे है। हालांकि यह स्रोतों पर निर्भर करता है, लेकिन अपशिष्ट जल में सामान्य तौर पर नाइट्रोजन, फास्फोरस और कार्बन के रूप में पोषक तत्व रहते हैं। एक कोषीय शैवाल की कुछ प्रजातियों को जब अपशिष्ट जल यानी गंदे पानी में उगाया गया तो उनमें अपने विकास के लिए इन पोषक तत्वों को ले लेने की क्षमता पाई गई।

छात्रों ने किया कमाल

चूंकि एक कोषकीय शैवाल प्रकाश संश्लेषण करने वाली (फोटोसिंथेसिक) प्रजाति है, इसलिए ये एक साथ कार्बन डाईआक्साइड को अलग कर इन पोषक तत्वों को वसा और कार्बोहाइड्रेड में बदल सकते हैं। जिसे बायो डीजल और रंग जैसे उत्पाद हासिल करने के लिए परिष्कृत किया जा सकता है। इन छात्रों ने एक कोषीय शैवाल की इस क्षमता को जानने के बाद एक तकनीकी एवं आर्थिक रूप से संभव प्रक्रिया विकसित करने की कोशिश की जो परंपरागत जल परिशोधन प्रौद्योगिकियों का स्थान ले सकता है।

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