गुजरात को देश का चौथा दुग्ध उत्पादक राज्य बनाने में मक्का खल का अहम योगदान, बढ़ी मांग

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गुजरात को देश का चौथा दुग्ध उत्पादक राज्य बनाने में मक्का खल का अहम योगदान, बढ़ी मांगप्रतीकात्मक फोटो

नई दिल्ली (भाषा)। दुधारू पशुओं को मक्का खल के सेवन से होने वाले फायदे तथा इसकी अच्छी गुणवत्ता के कारण कई राज्यों में इसकी मांग लगातार बढ़ रही है।

राजस्थान के अलवर में स्थित प्रीमियर ऑयल मिल के संचालक अर्पित गुप्ता ने बताया, "मक्का खल में तेल की मात्रा 10-14 प्रतिशत होती है जबकि बिनौला, मूंगफली व सरसों जैसे अन्य खलों में यह महज 7-8 प्रतिशत होती है। इसके कारण मक्का खल के सेवन से दूध का उत्पादन बढ़ जाता है।"

उन्होंने कहा कि बिनौला खल की कीमत करीब दो हजार रुपये प्रति क्विंटल तथा मूंगफली खल की कीमत करीब 2100 रुपये प्रति क्विंटल है। मक्का खल का भाव 2500 से 2700 रपये प्रति क्विंटल है। अन्य खलों के अपेक्षाकृत मक्का खल का भाव अधिक होने का कारण इसके सेवन से पशुपालकों का दूध व घी का उत्पादन बढ़ जाना है।

दिल्ली के थोक खाद्य तेल कारोबारियों के संगठन दिल्ली वेज ऑयल ट्रेडर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष लक्ष्मी चंद्र अग्रवाल ने बताया, "देश के शीर्ष दूध उत्पादक राज्यों में एक गुजरात है और इसका कारण मक्का खल का पशुआहार के रूप में व्यापक इस्तेमाल किया जाना भी है।"

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मक्का खल

अर्पित गुप्ता के अनुसार, मक्का खल का पशुआहार के रूप में गुजरात के आनंद में 1986-87 में इस्तेमाल शुरू हुआ। तब इसकी खपत 800 से 900 टन प्रतिमाह थी जो अब बढ़कर 10 हजार टन प्रतिमाह पर पहुंच गयी है। उन्होंने कहा कि तब सिर्फ गुजरात में खपत होने के कारण पंजाब, हरियाणा, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र आदि राज्य के मक्का उत्पादक इसकी बिक्री करने गुजरात जाया करते थे। अब पशुआहार के रूप में इसका इस्तेमाल देशभर में बढ़ने के कारण गुजरात के मक्का खल मिल देश के अन्य हिस्सों में भी इसकी आपूर्ति कर रहे हैं।

लक्ष्मी चंद्र अग्रवाल ने बताया कि देश भर में बिनौला खल का प्रतिवर्ष 50-60 लाख टन उत्पादन होता है जबकि मक्का खल का सालाना उत्पादन अभी करीब तीन लाख टन ही है। उन्होंने बिनौला खल को माल एवं सेवा कर (जीएसटी) के दायरे से मिली छूट का हवाला देते हुए कहा कि मक्का खल को भी यह छूट दी जानी चाहिए क्योंकि इसका इस्तेमाल सिर्फ पशुआहार के रुप में ही होता है।

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