अगर आप अश्वपालक हैं तो आपको इन बीमारियों की जानकारी होनी चाहिए 

Diti BajpaiDiti Bajpai   24 April 2018 5:27 PM GMT

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अगर आप अश्वपालक हैं तो आपको इन बीमारियों की जानकारी होनी चाहिए वर्ष 2012 में जारी पशुगणना के मुताबिक देश में 11.30 लाख घोड़े, खच्चर व गधे हैं।

अश्व प्रजाति के जानवरों में गंभीर बीमारियां जैसे ग्लैंडर्स, सर्रा, टिटनेस, पेट का दर्द होने पर उनकी मौत हो जाती है, जिससे पशुपालक को काफी नुकसान होता है। ऐसे में पशुपालक शुरू में बीमारियों से बचाव करके अपने नुकसान को रोक सकता है।

वर्ष 2012 में जारी पशुगणना के मुताबिक देश में 11.30 लाख घोड़े, खच्चर व गधे हैं। देश के लाखों परिवारों की जीविका अश्व प्रजाति (घोड़ा, गधा, खच्चर) से जुड़ी हुई है। पशुपालक को अश्व प्रजाति में होने वाली बीमारियों की पूरी जानकारी होनी चाहिए। तभी वो अपने पशुओं को ठीक रख सकेंगा।

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इन बीमारियों का रखें ध्यान

पेट का दर्द

अश्व प्रजाति में पेट का दर्द खतरनाक हैं, क्योंकि यह गाय भैंस की तरह जुगाली नहीं करते।

कारण

  • सूखा भूसा खिलाना।
  • पैने और खराब दांत।
  • अचानक चारा बदलना।
  • अधिक बरसीम खिलाना।
  • पेट में कीड़े/जूं होना।
  • कम और गंदा पानी पिलाना।
  • समय-समय पर पानी न पिलाना।
  • प्लास्टिक की थैली या रस्सी खाना।
  • सड़ा हुआ दाना और चारा (फफूंद लगा हुआ) खिलाना।
  • जरूरत से ज्यादा दाना/कुट्टी एक ही समय पर देना।

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लक्षण

  • पेट फूलना।
  • बेचैन होना।
  • ज्यादा पसीना आना।
  • पैर से मिट्टी खोदना।
  • पेट में पैर मारना।
  • लोट-पोट करना।
  • बार-बार पेट की तरफ देखना।

बचाव

  • दाने चारे में अचानक परिवर्तन नहीं करना चाहिए। भूसा धोकर दें।
  • चारा साफ करके और घास झाड़कर दें।
  • थोड़ा-थोड़ा दाना-चारा कई बार में दें।
  • समय-समय पर साफ पानी पिलाएं।
  • हरा चारा भूसे के साथ मिलाकर दें।
  • जानवर को प्लास्टिक और मिट्टी खाने से बचाएं।
  • जानवर को कच्चे, रेतीले, खुले स्थान पर ले जाए।
  • जानवरों को लोट-पोट करने से रोके।

सर्रा रोग

अश्व प्रजाति की एक जानलेवा बीमारी है। इस बीमारी के लक्षण दिखते ही पशुचिकित्सक की सलाह लेना बहुत जरूरी है।

लक्षण

  • पशु का कमजोर होना।
  • बुखार का आना और जाना।
  • पशु का चक्कर काटना।
  • आंख की तीसरी पलक पर लाल चकत्ते/दाने होना। आंख की तीसरी पलक सफेद होना (खून की कमी)।
  • पशु के पेट के नीचे और पैरों में सूजन आना।
  • पशु का अंधा होना।

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कारण

पशु को खून में परजीवी होना ट्रेपेनोसोमा एवंसी। डांस मक्खी के काटने से सर्रा के परजीवी बीमार पशु के स्वस्थ पशु के शरीर में प्रवेश करते हैं।

बचाव

  • पशु को डांस मक्खी के काटने से बचाएं।
  • पशु के अस्तबल के पास धुआं करके मक्खी की रोकथाम करें।
  • पशु के शरीर पर नीम का तेल लगाएं।
  • पशु को रोज दो चम्मच सिरका पानी में मिलाकर पिलाएं।

रखरखाव

  • दल दल, तालाब, और नदी किनारे पशु को चुगने के लिए न छोड़ें।
  • सूर्योदय और सूर्यास्त के समय पशु को चुगने के लिए बाहर न छोड़ें।
  • बरसात और बरसात के पश्चात् मक्खी के संक्रमण की रोकथाम करें।
  • पशु को रोज मालिश खुरेरा करें।
  • नया पशु खरीदते समय पशु की आंखों की पलक का रंग अवश्य जांचे और साथ ही पशु चिकित्सक से जांच करा लें।
  • नया पशु खरीदने के बाद उसे 20 दिन तक अलग बांध कर निरीक्षण में रखें।

देश में इस समय बचे हैं केवल 3.1 करोड़ गधे। फोटो: विनय गुप्ता

टिटनेस

इस बीमारी का बचाव ही इसका इलाज है। यह बीमारी होने पर कुछ ही पशु बच पाते है। इस बीमारी में जीवाणु ज़ख्म में घुसकर शरीर में जहर फैलाते हैं।

पहचान

  • आंख की पुतली का चढ़ना।
  • काठ का घोड़ा जैसी हालत।
  • शरीर और जबड़े का जकड़ना।
  • दुम उठाकर रखना और कान का खड़ा होना।
  • खाने और घूमने में दिक्कत।

बचाव

  • कोई भी जख्म होने पर टिटनेस का टीका लगवाना।
  • ज़ख्मों को साफ रखना और गंदगी से बचाना। टिटनेस का टीका तीनब महीने से बड़े पशु को अवश्य लगवाएं।
  • ग्याभन पशुओं को आखिर के महीने में टीका अवश्य लगवाएं।
  • इसका इलाज काफी मंहगा होता है। इस बीमारी से 20 प्रतिशत पशु ही बच पाते है।

सुम की बीमारी

यह बीमारी घोड़ों के लंगड़ेपन का कारण बनती है।

कारण

  • सुम गंदगी से सना रहना।
  • सुम ज्यादा लंबा या छोटा होना।
  • ज्यादा घिसी हुई सुम की दीवार।
  • समय पर ठीक नालबंदी न कराना।
  • बिना नाल के पक्की सड़क पर पशु को चलाना।
  • पुतली को पूरा काट देना।

लक्षण

  • सुम में कीड़े पड़ना।
  • सुम का सड़ना, जिसके कारण गंदगी और बदबू होना।
  • सुम का बुखार होना।
  • सुम की दीवार पर दरार पड़ना।
  • कंकर, पत्थर, या कील का फंसकर चुभना।

बचाव

  • सुम की काम के पहले और बाद में सफाई और जांच बहुत जरूरी है।
  • सुम की सफाई और छटाई समय-समय पर सही तरीके से अवश्य करें।
  • राख और चूने (बुझा हुआ) की पोटली का इस्तेमाल करें।
  • ज्यादा घिसी हुई या टूटी हुई नाल वाले जानवर से काम न लें।
  • सुम पर कोई नुकीली कींल चुभने पर तुंरत टिटनेस का टीका लगवाएं।
  • सुम की किसी भी बीमारी का शुरूआत में ही इलाज कराएं।

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