मध्य प्रदेश: किसान राम लोटन का देसी म्यूजियम क्यों है खास?

Sachin Tulsa tripathi | Jun 11, 2021, 13:44 IST
मध्य प्रदेश के सतना जिले के किसान राम लोटन सब्जियों के देसी बीज और जड़ी-बूटी के संरक्षण में जुटे हैं उनकी बगिया में इस वक्त 250 से ज्यादा औषधीय पौधे हैं।
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सतना (मध्यप्रदेश)। पक्के मकान की एक दीवार पर लटकी कई आकार की सूखी लौकियां और सब्जियों की फलियां अक्सर यहां आने वालों को अपनी तरफ आकर्षित करती हैं। इस मकान और इसके आसपास ऐसा बहुत कुछ और भी है जो लोगों को अपनी तरफ खींच लाता है। दरअसल ये किसान राम लोटन कुशवाहा का देसी म्यूजियम है, जिसमें वो जैव विविधता को सहेज रहे हैं।

"देसी सब्जियों और जड़ी-बूटियों से मुझे इतना स्नेह है कि दिन-रात कब ढल जाते हैं, इसका पता नहीं लग पाता। आप ये मान लीजिए यही सब्जियां और जड़ी बूटियां मेरा सब कुछ हैं।" राम लोटन कुशवाहा, देसी सब्जियों और जड़ी बूटियों के संरक्षण के प्रति अपनी दीवानगी बताते हैं।

राम लोटन (64 वर्ष) दिल्ली से करीब 750 किलोमीटर दूर मध्य प्रदेश के सतना जिले उचेहरा ब्लॉक के गांव अतरवेदिया के निवासी हैं। उनका गांव जिला मुख्यालय सतना से 25 किलोमीटर दूर है। यहीं पर रामलोटन एक एकड़ कुछ कम खेत में औषधीय गुणों से भरी जड़ी बूटियों का संरक्षण और संवर्धन कर रहे हैं। साथ में हर साल कई तरह की सब्जियां उगाते हैं।

राम लोटन की बगिया में मौजूदा समय में 250 से भी अधिक औषधीय पौधों का अनुपम संग्रह है। यह यहां संवर्धित हो रहे हैं। इसके अलावा 12 प्रकार की लौकियां, गाय के मुंह के आकार के बैगन आदि हैं।

राम लोटन कुशवाहा गांव कनेक्शन को बताते हैं, "लौकियों को उनके आकार के आधार पर नाम दिए गए हैं। जैसे अजगर लौकी, बीन वाली लौकी, तंबूरा लौकी आदि इनमें से कुछ खाने के काम आती हैं बाकी की लौकियों का औषधीय उपयोग किया जा रहा है। इससे पीलिया, बुखार ठीक किया जाता है।"

कुशवाहा के मुताबिक उनकी बगिया में सिंदूर, अजवाइन, शक्कर पत्ती, जंगली पालक, जंगली धनिया, जंगली मिर्चा के अलावा गौमुख बैगन, सुई धागा, हाथी पंजा, अजूबी, बालम खीरा, पिपरमिंट, गरूड़, सोनचट्टा, सफेद और काली मूसली और पारस पीपल जैसी तमाम औषधीय गुण के पौधे रोपे गए हैं।

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रामलोटन के घर की दीवार पर टंगी विभिन्न प्रकार की सूखी लौकी। फोटो- सचिन तुलसा त्रिपाठी हिमालय से ले आये ब्राम्ही

जड़ी बूटियों को खोजने के लिए राम लोटन कहीं भी जा सकते हैं। ब्राम्ही के लिए हिमालय तक गए थे। वो बताते हैं, "लोग कहते रहे कि हिमालय के पौधे यहां कैसे हो सकेंगे? लेकिन मेरी बगिया में सब कुछ वैसा ही फल-फूल रहा है। इसके अलावा अमरकंटक सहित अन्य जंगलों में भी भटके हैं।

रामलोटन के मुताबिक उनके पास सुई धागा नामक की एक जड़ी बूटी है। इस जड़ी-बूटी के बारे में वो बताते हैं, " राजाओं के जमाने में तलवारें जब लड़ाइयों में चलती थी तो कट जाना सामान्य था। कहा जाता है यही सुई धागा घाव भरने का काम करती थी। बस इसे काट लें और दूध के साथ बांट लें। जहां कटा है वहां लगा लें, कुछ ही घंटों में इसका असर दिखाई देने लगता है।"

कुशवाहा इसी तरह कई अन्य जड़ी बूटियों का उपयोग भी बताते हैं। उनकी नर्सरी में सबसे खास सफेद पलाश है जो बहुत कम ही देखने को मिलता है। सफेद पलाश को बचाने के लिए वो उसकी नई पौध भी तैयार करे हैं। इसे देखने और पौध लेने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं।

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जड़ी बूटियों के पौधे। पढ़ाई में नहीं आयुर्वेद में रुचि

गांव कनेक्शन' को अपने परिवार और शिक्षा-दीक्षा के बारे में बताते हुए रामलोटन कहते हैं, "64 साल पहले गांव के किसान कताहुरा कुशवाहा (पिता का नाम) के घर मेरा जन्म हुआ था। मेरी पढ़ाई के प्रति कोई रुचि नहीं थी और पढ़ा भी नहीं। पिता का आयुर्वेद के प्रति अगाथ प्रेम मुझे इस ओर खींच लाया।" जड़ी बूटियों से सजी रहने अपने पिता की बगिया में राम लोटन एक बार जो कूद गए तब से आज भी वह वहीं रमे हैं।

हालांकि उनका और पिता का साथ बहुत दिनों तक नहीं रहा। पिता को याद करते हुए राम लोटन कहते हैं, "मेरी उम्र करीब 8-9 साल रही होगी तब पिता का साया सिर से उठ गया था।" रामलोटन के 3 पुत्र और एक पुत्री है। बेटी की शादी हो चुकी है। बड़े बेटा दयानंद, पिता के काम में रुचि नहीं लेकिन दोनों छोटे बेटे रामनंद और शिवानंद उनके काम को आगे बढ़ा रहे हैं।

"मेरी सात साल की नातिन है उसे भी जड़ी बूटियों से बहुत लगाव है, वो जड़ी बूटी पहचान भी लेती है और खोजने में मदद भी करती है।" मुस्कुराते हुए वो बताते हैं।

बैगाओं ने बताए जड़ी बूटियों के राज

बगिया पिता से मिल गई थी लेकिन बाकी जड़ी बूटियों का ज्ञान कहा से मिला? इस सवाल के जवाब में राम लोटन बताते हैं, "बैगाओं (जंगलों में रहने वाली जनजाति) से इसकी जानकारी ली है। वो जंगल में होने वाली आयुर्वेदिक औषधियों की जानकारी बखूबी रखते हैं। उनसे मिलने जाता रहता हूं। वह भी मेरे पास आते रहते हैं।"

अपनी बात को जारी रखते हुए वो कहते हैं, "मध्यप्रदेश के बालाघाट, उमरिया, शहडोल, निमाड़, भिंड आदि जिलों के अलावा और छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा, बस्तर के इलाकों में रहने वाले बैगाओं से जड़ी बूटियों की पहचान और गुण की जानकारी लेता रहता हूं। यहीं परसमनिया पठार में भी बैगा रहते हैं वह भी बताते रहते हैं।"

गांव के लोग 'वैद्य जी' कहने लगे

ग्राम पंचायत पिथौराबाद के सरपंच अशोक कुमार बताते हैं, "पंचायत में अतरवेदिया खुर्द के अलावा पिथौराबाद, पिथौराबाद चौराहा, पिथौराबाद नई बस्ती गांव भी आते हैं। पंचायत की कुल आबादी 5 हजार के ऊपर है। यहां 3251 वोटर हैं। रामलोटन कुशवाहा को इलाके में 'वैद्य जी' कहा जाने लगा है। पंचायत भी समय समय पर मदद करती है।"

एक कष्ट, जंगली जानवर कर देते हैं नष्ट

रामलोटन कुशवाहा पहले सिर्फ अपनी बागिया और गांव में काम करते थे। बाहर के लोगों से कोई परिचय नहीं था लेकिन कुछ साल पहले वो जैव विविधता के लिए पद्मश्री से सम्मानित बाबूलाल दहिया के संपर्क में आए और उन्होंने इन्हें भी जैव विविधता से जोड़ा। जिसके बाद बाहर से लोगों का आना शुरु हो गया।

वो बताते हैं, "मुझे पद्मश्री बाबूलाल दाहिया जी ने जैव विविधता से जोड़ा। प्रदेश के जैव विविधिता बोर्ड ने वर्ष 2018 में लौकियों को अपने वार्षिक कलेंडर में भी जगह दी थी और नौ साल पहले 50 हजार रूपए की ग्रांट दी थी तब से यहां कोई नहीं आया।"

जड़ी-बूटी और जैव विविधता से भरी बगिया को जंगली पशु काफी नुकसान पहुंचाते हैं। रामलोटन चाहते हैं सरकार बगिया में तारबंदी करा दे।

"बगिया में एक कुआं और तार की बाड़ की जरुरत है। अगर सरकार कुछ मदद कर दे तो बहुत कुछ संरक्षित-संवर्धित किया जा सकेगा। क्योंकि जंगली जानवरों के कारण बहुत कुछ खराब हो जाता है।"


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