साल 2024 में 37 लाख कुत्ते के काटने के मामले और 54 मौतें: अब कैसी है सरकार की तैयारी?

Gaon Connection | Jul 23, 2025, 13:34 IST
हर साल भारत में लाखों लोग कुत्तों के काटने का शिकार बनते हैं और दर्जनों की मौत रेबीज से होती है। सरकार अब नए एबीसी नियम 2023 और राष्ट्रीय रेबीज नियंत्रण कार्यक्रम के ज़रिए इस संकट से निपटने के प्रयास में जुटी है। जानिए क्या है इस योजना की रणनीति और ज़मीनी हकीकत।
STRAY DOG bite cases india government schemes
साल 2024 में देशभर में कुत्तों के काटने के 37 लाख से अधिक मामले दर्ज हुए। इन घटनाओं ने न केवल बच्चों और बुज़ुर्गों में डर पैदा किया, बल्कि जनस्वास्थ्य के एक पुराने संकट—रेबीज—को एक बार फिर सुर्खियों में ला दिया। राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (NCDC) के अनुसार, 2024 में ही 54 लोगों की संदिग्ध मौतें रेबीज के कारण हुईं।

बढ़ती घटनाएं इस बात का संकेत हैं कि देश में आवारा कुत्तों की बढ़ती आबादी और उनका स्वास्थ्य - एक गंभीर सार्वजनिक मुद्दा बनता जा रहा है। और इस संकट के समाधान के लिए सरकार अब पशु जन्म नियंत्रण (ABC) कार्यक्रम को बड़े स्तर पर लागू कर रही है। ये जानकारी केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के राज्य मंत्री प्रो. एसपी सिंह बघेल ने 22 जुलाई, 2025 को लोकसभा में एक लिखित उत्तर में दी।

स्थानीय निकायों को मिला जिम्मा, कानून में प्रावधान

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243(W) के तहत नगरपालिकाओं को यह अधिकार प्राप्त है कि वे अपने क्षेत्र में आवारा कुत्तों की आबादी पर नियंत्रण रखें। इसके लिए केंद्र सरकार ने 10 मार्च 2023 को पशु जन्म नियंत्रण (एबीसी) नियम 2023 अधिसूचित किए, जो 2001 के पुराने नियमों की जगह लेते हैं।

ये भी पढ़ें: देश में 20 से अधिक नस्ल के कुत्तों पर लगा बैन, जानिए अब आगे क्या होगा?

नए नियमों के तहत, नगरपालिकाओं और नगर निगमों को कुत्तों की नसबंदी, रेबीज टीकाकरण, और उनके पुनर्स्थापन (rehabilitation) की जिम्मेदारी दी गई है। यह प्रक्रिया न केवल जनसंख्या को नियंत्रित करती है, बल्कि कुत्तों को अधिक सामाजिक और सुरक्षित भी बनाती है।

जब कुत्तों को दोष देने से ज़्यादा ज़रूरी है उनका टीकाकरण

सड़क पर रहने वाले कुत्ते न तो अपराधी हैं और न ही रोग फैलाने वाले जानवर। दरअसल, जब तक उन्हें टीका नहीं लगाया जाता या नसबंदी नहीं की जाती, वे खुद भी बीमारियों के शिकार बनते हैं। एबीसी 2023 नियम इन्हीं दो कामों—जनसंख्या स्थिरीकरण और रेबीज नियंत्रण—पर केंद्रित है।

STRAY DOG bite cases india government schemes (3)
STRAY DOG bite cases india government schemes (3)
पशुपालन और डेयरी विभाग (DAHD) ने नवंबर 2024 में राज्यों के मुख्य सचिवों को पत्र लिखकर यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया था कि स्थानीय निकाय एबीसी कार्यक्रम को प्रभावी ढंग से लागू करें। इस अभियान का उद्देश्य था बच्चों, खासकर छोटे बच्चों को कुत्तों के हमलों से बचाना।

AWBI की भूमिका और दिशा-निर्देश

भारतीय पशु कल्याण बोर्ड (AWBI) ने इस दिशा में कई परामर्श और दिशा-निर्देश जारी किए हैं, जैसे:

  • स्ट्रीट डॉग्स के प्रबंधन और रेबीज उन्मूलन के लिए संशोधित ABC मॉड्यूल
  • सामुदायिक कुत्तों को गोद लेने के लिए मानक प्रोटोकॉल
  • RWA और AOA जैसे संगठनों को पशु कल्याण समितियाँ बनाने की सलाह
  • सामुदायिक कुत्तों को भोजन देने से जुड़ी शिकायतों पर कार्रवाई हेतु दिशा-निर्देश
  • वर्ष 2024-25 और जून 2025 तक, AWBI ने 166 पत्र ऐसे संगठनों को भेजे हैं जहां सामुदायिक कुत्तों के साथ व्यवहार को लेकर शिकायतें प्राप्त हुईं थीं।
रेबीज मुक्त भारत की ओर

स्वास्थ्य मंत्रालय भी इस अभियान में कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है। राष्ट्रीय रेबीज नियंत्रण कार्यक्रम (NRCP) के तहत कई महत्वपूर्ण पहल की गई हैं:

  • रेबीज उन्मूलन के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना
  • एंटी रेबीज वैक्सीन (ARV) और सीरम (ARS) की उपलब्धता
  • राज्यों में मॉडल एंटी रेबीज क्लिनिक की स्थापना
  • रेबीज मुक्त शहर अभियान, सामुदायिक जागरूकता, और प्रशिक्षण
  • विशेष हेल्पलाइन, NRCP वेबसाइट, और रेबीज निगरानी तंत्र का विकास
पिछले पाँच वर्षों में वैक्सीन पर कितना खर्च हुआ?

केंद्र सरकार राज्यों को रेबीज रोधी टीकों की खरीद के लिए ASCAD योजना के तहत वित्तीय सहायता देती है। 2020 से 2025 तक के आँकड़े इस प्रकार हैं:

वित्त वर्षखुराक (लाख)कुल राशि (लाख ₹)केंद्र हिस्सा
2020-2125.56275.28213.35
2021-2241.76281.60244.46
2022-2318.44475.00338.19
2023-2464.551080.57716.85
2024-2580.191423.41956.92
कुल230.53535.862469.77
स्थानीय आंकड़ों की जरूरत और गणना की प्रक्रिया

हालांकि देश में हर 5 साल में राष्ट्रीय पशुधन गणना होती है, जिसमें आवारा कुत्तों की संख्या भी दर्ज की जाती है, लेकिन एबीसी नियम 2023 नगरपालिकाओं को यह अधिकार भी देते हैं कि वे हर साल खुद से अपनी स्थानीय गणना कर सकें।

सिर्फ नियम नहीं, ज़रूरत है ज़मीनी क्रियान्वयन की

आवारा कुत्तों की समस्या केवल ‘म्युनिसिपल जिम्मेदारी’ तक सीमित नहीं है। यह जन स्वास्थ्य, पशु कल्याण, और सामुदायिक सहभागिता से जुड़ा विषय है। सरकार ने नियम बना दिए हैं, बजट दे दिया है, वैक्सीन भी उपलब्ध है—अब ज़रूरत है कि स्थानीय निकाय, नागरिक समाज, और निवासी संगठन मिलकर इन नियमों को धरातल पर लागू करें।

अगर हम सच में चाहते हैं कि कोई बच्चा कुत्ते के काटने से न मरे, तो हमें कुत्तों को मारना नहीं, बल्कि टीकाकरण और देखभाल की व्यवस्था सुनिश्चित करनी होगी।

Tags:
  • टीकाकरण
  • स्वास्थ्य
  • प्रावधान
  • रेबीज
  • घटनाएं

Follow us
Contact
  • Gomti Nagar, Lucknow, Uttar Pradesh 226010
  • neelesh@gaonconnection.com

© 2025 All Rights Reserved.