हिंसा के बाद बिसाहड़ा का सबक: हम बर्बाद हो गए, खेत बिक गए, नाम खराब हुआ वो अलग

दादरी कांड : जानिए अखलाक के साथ हुई घटना के बाद उनके गांव पर क्‍या असर पड़ा।

Ranvijay SinghRanvijay Singh   8 Dec 2018 7:38 AM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
हिंसा के बाद बिसाहड़ा का सबक: हम बर्बाद हो गए, खेत बिक गए, नाम खराब हुआ वो अलग

बिसाहड़ा (दादरी)। ''हमारे गांव को उस घटना (मॉब लिंचिंग) से बस आफत मिली है। घर के घर तबाह हो गए, खेत बिक गए और नाम खराब हुआ वो अलग।'' बिसाहड़ा गांव के उपेंद्र सिंह कहते हैं। बिसाहड़ा वही गांव है जहां से मॉब लिंचिंग शब्‍द डिक्शनरी से निकलकर अखबारों की हेडलाइन में आ गया। 28 सितंबर 2015 को बिसाहड़ा गांव में गोहत्‍या और गाय का मांस खाने के आरोप में गुस्‍साई भीड़ ने 50 साल के अखलाक को घर से खींचकर बाहर निकाला था और पीट-पीटकर मार डाला था। इसे दादरी कांड के नाम से भी जाना जाता है।

बिसाहड़ा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा जिले में है, जो बुलंदशहर के स्याना के चिंगरावटी चौकी (जहां हिंसा हुई) से करीब ६० किलोमीटर दूर है। फ्रीज में गाय का मांस (बीफ) मिलने की खबर को लेकर अखलाक की हत्या हुई थी। उसके बाद इस गांव में क्या बदला? ये जानने की भी गांव कनेक्शन ने कोशिश की। बिसाहड़ा दादरी कस्‍बे से 4 किमी की दूरी पर स्‍थित है। बुलंदशहर हिंसा के बाद से ही बिसाहड़ा कांड फिर सुर्खियों में है। वजह ये है कि बिसाहड़ा हिंसा के जांच अध‍िकारी इंस्‍पेक्‍टर सुबोध कुमार सिंह थे, जिनकी स्‍याना में हुई हिंसा में मौत हो गई। ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि उनकी मौत का बिसाहड़ा कांड से भी कनेक्‍शन हो सकता है।

गांव में जिस जगह अखलाक का घर है उसे यहां के लोग अब अखलाक गली के तौर पर जानने लगे हैं। गांव वाले बताते हैं कि पुलिस इसे जीरो पॉइंट कहती है। सड़क से लगी गली में आगे जाने पर पहला मोड़ अखलाक के घर को ही जाता है। एक कोने पर अखलाक और उनके भाई का घर सूनसान पड़ा है। लोगों से पूछने पर पता चलता है कि अखलाक की मौत के बाद परिवार वाले यहां से चले गए और उसके बाद लौटे ही नहीं।

''हमारे गांव को उस घटना (मॉब लिंचिंग) से बस आफत मिली है। घर के घर तबाह हो गए, खेत बिक गए और नाम खराब हुआ वो अलग।' उपेंद्र सिंह, स्थानीय निवासी, बिसाहड़ा

बिसाहड़ा में अखलाक का घर।

अखलाक की हत्या के बाद दादरी जिले के बिसहाड़ा गाँव से अखलाक का परिवार भले ही जा चुका है लेकिन उसके बगल में रहने वाली सीमा रावल हर रोज सुबह अखलाक के घर के दरवाजे पर झाड़ू लगाती हैं।

जब अखलाक के घर के बाहर सफाई के बारे में बात की तो उन्होंने कहा, "क्यूं न करूं? फिर व बुदबुदाते हुए अपना काम करने लगती हैं। जैसे मीडिया से सीमा रावल को खास दिक्कत हो। वहीं, कुछ दूरी पर एक दूसरा मुस्लिम परिवार रहता है। इस घर की मुखिया वकीला 28 सितंबर, 2015 की घटना को याद करते हुए कहा, "उस रोज बहुत भीड़ थी, खूब शोर-शराबा था। लोग मारो-मारो चिल्‍ला रहे थे। भीड़ तो भीड़ ही होती है, उसके आगे किसका बस चला है।''

यह भी पढ़ें-बुलंदशहर से ग्राउंड रिपोर्ट: 'हम गाय के कंकाल को हाइवे पर लेकर जाएंगे, नारेबाजी और प्रदर्शन करेंगे, आप इसे प्रमुखता से कवर करें

अपने घर में बैठी वकीला। ये यहां का एकलौता मुस्‍लिम परिवार है।

वकीला आगे बताती हैं, ''हिंसा के बाद जब अखलाक के परिवार के लोग जाने लगे इस गली में अकेला मेरा मुस्‍लिम परिवार बचा। मैंने भी सामान बांध लिया, लेकिन मेरे सामने वाले संजय राणा ने मुझे रोक लिया। उन्‍होंने कहा-कोई भी तुम्‍हारे परिवार तक आने से पहले मुझसे होकर गुजरेगा। पहले मुझे मारे। इसके बाद हम रुक गए। हमारे साथ आज तक कुछ बुरा नहीं हुआ, उनके लड़के सम्‍मान भी करते हैं।''

यह पूछने पर कि आप को डर नहीं लगता? वकीला ने हंसते हुए जवाब दिया, ''डर कर नहीं जीना है। अगर मेरी मौत ऐसे ही होनी है तो मर जाएंगे।'' फिर कुछ सोच कर कहती हैं, ''लेकिन ऐसे नहीं होगी।'' वकीला आगे बताती हैं, "हमारे घर से राजपूतों मिलना ठीक है। मेरे लड़के इलियास और शौकील यहां के दूसरे लड़कों के साथ उठते बैठते हैं। हमें कभी कोई खतरा नहीं लगा।''

वकीला स्‍याना हिंसा पर कहती हैं, भीड़ का इस तरह से मारना सही नहीं है। लेकिन भीड़ कुछ समझती नहीं। सुबोध कुमार सिंह का याद करते हुए वकीला कहती हैं, ''अच्‍छा आदमी था। असली कहता था, इस लिए बुरा लग जाता था।''

बिसाहड़ा गाँव में रहने वाले उपेन्द्र कहते हैं, ''हमारे गाँव उस घटना (मॉब लिंचिंग) से बस आफत मिली है। घर के घर तबाह हो गए, खेत बिक गए और नाम खराब हुआ वो अलग।''

यह भी पढ़ें- सवालों के घेरे में पुलिस का इकबाल, भीड़ के हमले तोड़ रहे मनोबल

वकीला का घर।

इंस्‍पेक्‍टर सुबोध सिंह के बारे में बताते हुए सीमा रावल कहती हैं, ''वो अच्‍छे आदमी थे। ऐसा नहीं होना चाहिए था। यहीं आते थे तो हम दूध-छांछ सब देते थे। जब-जब आए हमने सत्‍कार किया। सरकारी आदमी थे वो अपना काम कर रहे थे।''

इस सवाल पर कि अखलाक कांड के बाद आपको क्‍या परेशानी हो रही है? सीमा पहले जवाब देने से कतराती हैं और बाद में बस इतना बोला, ''जी गाँव का नाम खराब हो गया।''

थोड़ा आगे बढ़ने पर अखलाक गली में ही शीशपाल से मुलाकात हुई।

इसी गली के पहले मोड़ के आखिर में अखलाक का घर है। इसे लोग अखलाक गली भी कहते हैं।

शीशपाल दिल्‍ली में रहते हैं, लेकिन कुछ दिनों पर अपने गाँव का चक्‍कर लगा लेते हैं। अखलाक के साथ हुई घटना पर उन्होंने कहा, ''मैं तो उस रोज था ही नहीं, मैं कुछ न जानूं।''

यह पूछने पर जो लड़के गिरफ्तार किए गए थे उनका घर कौन सा है? इस पर शीशपाल ने दबी आवाज में बताया, ''सभी छूट आए। यही गली (अखलाक गली) में सब रहे हैं।'' जितने भी आरोपी इस मामले में गिरफ्तार किए गए थे, उनमें से ज्‍यादातर इसी गली के रहने वाले हैं।

थोड़ा आगे बढ़ने पर दीपक सिंह से मुलाकात होती है। दिल्‍ली में रहकर पढ़ाई करने वाला दीपक कहता है, ''स्‍याना मामले को हमारे गाँव से जोड़ना सही नहीं है। मीडिया को बस मसाला चाहिए। हम अब नहीं चाहते कि हमारा गाँव किसी बवाल में आए। पहले ही बहुत बदनामी हो गई है।''

यह भी पढ़ें-बुलंदशहर हिंसा: भीष्म साहनी के कालजयी उपन्यास 'तमस' की याद दिलाती है…

इसी बीच वहां से बाइक से एक युवक गुजरा जिसने दीपक से दुआ सलाम की। इसके बाद दीपक ने कहा, ''आप लोग यूं ही माहौल खराब करते हैं, ये लड़का मुसलमान था, इसी गली में आगे घर है।'' वो लड़का वकीला का बेटा इलियास था।

खैर, तमाम बातचीत के बाद आगे बढ़ना हुआ। गली की शुरुआत में कुछ लोग बैठे थे। इन लोगों के बीच जाने पर ये पहले ही भांप गए कि मैं रिपोर्टर हूं। बोले, ''आईए-आईए...लाइट, कैमरा, एक्‍शन।'' मैं मुस्‍कुरा कर उनके बीच बैठ गया। इसके बाद बातचीत होने लगी। बातचीत में ये लोग मीडिया से खासे नाराज नजर आए। इसमें से एक उप्रेंद्र सिंह ने कहा, ''मीडिया क्‍यों हमारे गांव को स्‍याना से जोड़ रही है। हमारे यहां जो हुआ वो बीत गया है। अब ऐसा कुछ नहीं।'' अखलाक मामले में इंस्‍पेक्‍टर सुबोध सिंह की जांच को लेकर आश्‍वस्‍त उप्रेंदे सिंह कहते हैं, ''उन्‍होंने जांच की थी, सही की होगी। हमें उनपर भरोसा है। हमारे यहां कोई उनसे नाराज नहीं था, न अब है। उनकी मौत पर हम सबने दुख भी जाहिर किया था।'' बता दें, जिस वक्‍त बिसाहड़ा वाला मामला हुआ था उस वक्‍त सुबोध कुमार सिंह जारचा कोतवाली के इंचार्ज थे।

बिसाहड़ा कांड के बाद क्‍या बदला इस सवाल पर इनमें से बैठे एक शख्‍स जिनका नाम प्रेमपाल सिंह है कहते हैं, ''सबसे पहले तो पहचान बदल गई। कभी बिसाहड़ा को 'अफलातून का बिसाहड़ा' कहा जाता था। इस घटना के बाद ये अखलाक का बिसाहड़ा हो गया।'' प्रेमपाल कुछ सोचने के बाद कहते हैं, सारा कांड तो नेता कराते हैं, आम आदमी रोजी रोटी चलाए कि बवाल करे।''

इन लोगों में स्‍याना हिंसा में क्‍या हुआ इस बात को जानने की वैसी ही उत्‍सुक्‍ता दिखी जैसे किसी दूसरे में दिखती है। बहुत सारे सवाल करने और जवाब जानने के बाद इनमें से एक मुन्‍ना मास्‍टर जी कहते हैं, ''भीड़ तो खतरनाक होए है। पुलिस को भी समझणा चाइए। अब देख लो, योगेश फरार है। पुलिस पकड़ ना पा रही। वो जिला संयोजक ठहरा, संरक्षण में होगो, खास मौके पर वापस आएगा।''

इन बातों के बीच ही एक शख्‍स मुझसे पूछ बैठा आप हिंदू हो कि मुसलमान। हिंदू बताने पर ये सब मुझे एक वीडियो दिखाने लगे। इस वीडियो में उन्‍माद फैलाने का पूरा मसाला था। फिर यह सब एक सी बात कहते हैं, ''अब इनपर तो पुलिस कार्रवाई नहीं करती। अभी कोई कमजोर बोल दे तो उठा कर जेल में डाल देगी।'' इससे पता चलता है कि सोशल मीडिया और इस तरह के वीडियो भी इस इलाके में माहौल खराब करने का काम कर रहे हैं। ये लोग इन वीडियो से इतने प्रभावित दिखे कि इसे मेरा नंबर लेकर मुझे भेजा भी ताकि मैं इसपर खबर करूं।

ये श‍िव मंदिर है। बताया जाता है कि अखलाक के घर में गौ मांस होने की घोषणा यहीं से हुई थी।

इनसे बातचीत के बाद मैं गांव के उस मंदिर की तलाश में निकल गया जहां से अखलाक के घर में गौ मांस होने की बात कही गई थी। खोजते-खोजते मैं गांव के ही रहने वाले पुलिस से सेवानिर्वित एक बुजुर्ग से मिला। उनसे मंदिर का पता पूछने पर वो बोले- ''खूनी मंदिर जाना है? मैंने चौक कर कहा, खूनी मंदिर! वो बोले, ''मीडिया से हो न, वहां तो इसे यही बोला जाता है।'' मैंने उनसे पूछा, अब तो सब ठीक है यहां। इसपर वो बोले- ''जो बिगड़ा गया उसे ठीक थोड़े न किया जा सकता है, वो तो बीत गया।'' इसके बाद उन्‍होंने मुझे सामने गली से मंदिर की ओर जाने को कहा। बीच गांव में बना ये मंदिर शिव जी का है। इसके दरवाजे पर बड़े-बड़े लाउड स्‍पीकर लगे थे। शायद इन्‍हीं से उस रोज उद्घोष हुआ हो कि अखलाक ने गाय काटी है, उसके घर में गाय का मांस है और भीड़ पागल हो गई हो, ठीक स्‍याना की तरह।

फिलहाल इस गांव के लोगों के जीवन की गाड़ी फिर से पटरी पर लौटे नजर आती है। ऐसे कि एक मुसलमान महिला अपने बच्‍चों को लेकर राजपूतों के बीच भी सुरक्ष‍ित महसूस करे और ये कहने की हिम्‍मत कर सके कि, ''मुझे डर नहीं लगता।''

    

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.