दुनिया का पेट भरने वाली तीन अहम फसलों गेहूं, चावल, मक्का पर खतरा

अमेरिकी वैज्ञानिकों का कहना है कि बढ़ते तापमान से फसलों पर कीटों के हमले बढ़ेंगे। इनसे विश्व के गेहूं, चावल और मक्का उगाने वाले इलाके खासतौर से प्रभावित होंगे। दुनिया की आबादी जिन अनाजों से अपना पेट भरती है उसमें 89 प्रतिशत हिस्सा गेहूं, चावल और मक्का का है।

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दुनिया का पेट भरने वाली तीन अहम फसलों गेहूं, चावल, मक्का पर खतरा

जलवायु परिवर्तन: जैविक कीटनाशक और प्राकृतिक उपाय ही किसानों का 'ब्रह्मास्त्र'

एक अमेरिकी रिपोर्ट ने आगाह किया है कि बढ़ते तापमान की वजह से आने वाले समय में दुनिया भर की फसलों को कीट-पतंगों से सबसे ज्यादा खतरा होगा। अमेरिका की वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का कहना है कि हर एक डिग्री तापमान बढ़ने पर इन परजीवियों से फसलों को होने वाला नुकसान 10 से 25 प्रतिशत तक बढ़ जाएगा। इसका असर गेहूं, चावल और मक्का के उत्पादन पर सबसे ज्यादा पड़ेगा।

इस रिपोर्ट के सह लेखक कर्टिस ड्यूश्च ने बीबीसी न्यूज को बताया, "तापमान बढ़ने से कीटों की सक्रियता बढ़ती है, उन्हें अधिक ऊर्जा की जरूरत होती है इसलिए वे ज्यादा तेजी से फसलों पर हमले करते हैं। इससे दुनिया के प्रमुख खाद्यान्न प्रभावित होंगे।"

जोशुआ टेक्सबरी, कर्टिस ड्यूश्च और उनके सहयोगियों ने वैश्विक स्तर पर गेहूं, चावल और मक्का पर अपना अध्ययन केंद्रित किया। मुख्यत: यही तीनों अनाज दुनिया भर के अरबों लोगों का पेट भरते हैं। शोध के दौरान दुनिया भर से आंकड़े जुटाकर एक गणितीय मॉडल तैयार किया गया है। इसके जरिए अनुमान लगाया गया कि तापमान बढ़ने पर परजीवी कीटों की प्रतिक्रिया क्या होगी और वे फसलों का कितना नुकसान करेंगे।

इस टीम ने दुनिया भर की प्रयोगशालाओं से 38 कीटों की प्रजातियों के आंकड़े एकत्र किए थे। इनका मकसद यह देखना था कि तापमान बढ़ने पर इन कीटों के ऊर्जा उपभोग और वृद्धि पर क्या असर पड़ता है और फसलों को होने वाले नुकसान को यह किस तरह प्रभावित करेगा। अभी तक के शोध यह साबित कर चुके हैं कि हर एक डिग्री तापमान बढ़ने पर उपज में 5 प्रतिशत की कमी आएगी। लेकिन कीटों के हमलों के बाद यह नुकसान बढ़कर 50 प्रतिशत हो जाएगा।

यूरोप में कीटों के हमलों से लगभग 1.6 करोड़ टन गेहूं बर्बाद हो सकता है।

दुनिया के ये इलाके होंगे प्रभावित

तापमान के बढ़ने और कीटों के हमले तेज होने से पृथ्वी के शीतोष्ण इलाके में असर होगा। इनमें यूरोप और अमेरिका के मक्का उगाने वाले क्षेत्र शामिल हैं। अमेरिका की कोलाराडो यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ट्वेक्सबरी कहते हैं, "हमारा अनुमान है कि बहुत से यूरोपीय देशों में फसलों पर कीटों के हमले में 50 से 100 फीसदी की बढ़ोतरी होगी।" इसका मतलब है कि यूरोप में कीटों के हमले से लगभग 1.6 करोड़ टन गेहूं पूरी तरह बर्बाद हो सकता है।

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कटिबंधीय इलाके में अभी ये कीट अधिकतम बर्दाश्त करने योग्य तापमान में रह रहे हैं। इसलिए यहां तापमान बढ़ने पर इनकी सक्रियता पर कोई खास असर नहीं होगा। यह भी मुमकिन है कि इनकी तादाद इस इलाके में कम होने लगे। इसलिए उम्मीद है यहां कुछ ही कीट बचेंगे जो कुछ ही फसलों को प्रभावित करेंगे। इस इलाके में उत्तरी अमेरिका, मध्य अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, पूर्वी, पश्चिमी और मध्य अफ्रीका, व दक्षिणी पश्चिमी एशिया के देश आते हैं। भारत का मध्य और दक्षिणी हिस्सा भी इसी क्षेत्र में आता है।

फसलों पर असर

तापमान बढ़ने से सक्रिय हुए कीटों के संभावित क्षेत्र में अमेरिका, फ्रांस और चीन जैसे देश आते हैं जो दुनिया के सबसे ज्यादा खाद्यान्न उत्पादन करने वाले इलाके हैं। यहां उगने वाले मक्का, चावल और गेहूं के बुरी तरह से प्रभावित होने की आशंका है।

जलवायु मॉडलों के आधार पर वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि सन 2100 तक दुनिया के तापमान में 2 से 5 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हो सकती है। प्रोफेसर ड्यूश्च के मुताबिक, इस सदी के मध्य तक हमें तापमान में 2 डिग्री तक की बढ़ोतरी देखने को मिलेगी। हम कीटों के जिस तरह के प्रकोप का अनुमान लगा रहे हैं उसके संकेत मिलने शुरू हो जाएंगे।

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पर तापमान बढ़ने से महज कीटों के ही हमले नहीं बढ़ेंगे, जलवायु परिवर्तन के कई दूसरे दुष्परिणाम भी हैं जो हालात और बिगाड़ सकते हैं। इनमें शामिल हैं कीटों के जरिए फैलने वाले रोग, बारिश के ढर्रे में बदलाव और वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड में बढ़ोतरी।

क्या है समाधान

यूरोप में कीटनाशकों का बहुत ज्यादा इस्तेमाल होता है, खासकर ब्रिटेन में। जानकारों ने चेतावनी दी है कि तापमान बढ़ने पर मुमकिन है कि इन कीटों में कीटनाशकों के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाए। ब्रिटेन की साउथैंप्टन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर गाय पौपी कहते हैं, "इसका मतलब है कि हमें कीटों को नियंत्रित करने के लिए जैविक उपायों का इस्तेमाल बढ़ाना होगा।"

कीटों से बचने के दूसरे उपाय भी अपनाए जा सकते हैं मसलन, बुवाई का समय आगे-पीछे करना, चक्रीय फसल पद्धति का अधिक इस्तेमाल व ऐसी फसलें उगाना जो कीटों के हमलों के प्रति बेअसर हों।




        

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