पहली पंचवर्षीय योजना में बनी पंप कैनाल सरकारी उदासीनता का शिकार, मऊ और बलिया के हजारों किसान परेशान

उत्तर प्रदेश के मऊ और बलिया जिले के बीच साल 1952 में 60 किलोमीटर लंबी पक्की कैनाल (छोटी नहर) बनी थी, मोटर के पंप से इस नहर में सरयू नदी से पानी डाला जाता था, हजारों किसानों को फायदा मिलता था, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में कैनाल की स्थिति दयनीय हो गई है। दीवारें टूट रही हैं, समय पर पानी नहीं आ रहा है। क्षेत्र के किसान परेशान हैं।

Tejaswita UpadhyayTejaswita Upadhyay   5 April 2021 5:45 AM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
पहली पंचवर्षीय योजना में बनी पंप कैनाल सरकारी उदासीनता का शिकार, मऊ और बलिया के हजारों किसान परेशान

इस नहर से हजारों किसानों के खेतों तक सिंचाई का पानी पहुंचता था, लेकिन सरकारी उपेक्षा के कारण नहर में अब पानी ही नहीं है। (सभी फोटो- तेजस्विता उपाध्याय) 

दोहरीघाट (मऊ, उत्तर प्रदेश)। पूर्वांचल में मऊ और बलिया जिले के हजारों किसानों के खेतों तक पानी पहुंचाने के लिए साल 1952 में 60 किलोमीटर लंबी सीमेंट की नहर बनाई गई थी। पहली पंचवर्षीय योजना में बनी इस नहर की बदौलत कई लाख किसानों के खेतों में फसलें लहलहा रही थीं, लेकिन पिछले कुछ वर्षों सरकारी उदासीनता के चलते नहर खंडहर बनती जा रही है। किसानों के सिंचाई के वक्त पर पानी नहीं मिल पा रहा।

मऊ जिले में 10 एकड़ जमीन के मालिक विजेंद्र राय के खेत इस नहर के पास ही हैं। नहर में पानी न आने से किसानों को रही मुश्किलों के बारे में वे बताते हैं, "जब किसानों को पानी की जरूरत होती है, तब पानी नहीं आता है। मई-जून में जब धान की नर्सरी डालने का समय आता है तो नहर में पानी नहीं आता। नवंबर से मार्च तक गेहूं की फसल होती है तब पानी नहीं आता। कभी साफ-सफाई कभी तो दूसरे कामों के चलते नहर बंद रहती है।"

मऊ से बलिया जिले तक लाखों हेक्टेयर जमीन को पानी देने वाली इस नहर से चार रजवाहे और 40 माइनर निकली हैं। पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के कार्यकाल में बनी इस ऐतिहासिक कैनाल को चौधरी चरण सिंह कैनाल के नाम से जाना जाता है।

खंडहर में तब्दील होती कैनाल

नहर में मऊ जिले के उत्तर छोर पर सरयू नदी से 12 मोटर पंप के जरिए पानी डाला जाता है। कई दशकों तक ये नहर दोनों जिलों के किसानों का सहारा बनी रही। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से देखरेख के अभाव और सरकारी उदासीनता के चलते नहर में मोटी सिल्ट (गाद) जमा हो गई है। जगह-जगह से दीवारें टूटने लगी हैं। किसानों का आरोप है कि कभी सफाई के नाम तो कभी दूसरे कारणों से पानी अक्सर बंद रहता है।

मऊ में सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता (एक्सईएन) बीरेन्द्र पासवान गांव कनेक्शन को बताते हैं, "हेड कैनाल के सिल्ट की सफाई अंतिम बार 2013 में हुई थी। तब से लेकर आज तक हेड कैनाल के सिल्ट की सफाई के लिए ऊपर से पैसा मुहैया नहीं कराया गया है। जिसके चलते काफी सिल्ट तलहटी और दीवारों से चिपक गई है।'

उत्तर प्रदेश सरकार का दावा है कि वो हर घर तक नल और हर खेत तक पानी पहुंचाने के लिए कार्य कर रही है। योगी आदित्यनाथ के चार साल पूरे होने पर प्रदेश के जल शक्ति मंत्री डॉ. महेंद्र सिंह ने कहा था कि हमारी सरकार में प्रदेश के 75 में से 74 जिलों (बदांयू को छोड़कर) में पानी पहुंच रहा है। हमारी सरकार ने 47 हजार किलोमीटर नहरों की सफाई कराई है, जिसके बाद हर नहर की टेल (आखिरी छोर तक) पानी पहुंच रहा है।'

सफाई न होने के कारण सिल्ट तलहटी और दीवारों से चिपक गई है

जलशक्ति मंत्री ने यह भी बताया कि प्रदेश सरकार ने 28 से 30 साल लंबित योजनाओं को पूरा कराया है, कुछ अगले एक दो वर्षों में पूरी हो जाएंगी। इस दौरान प्रदेश में 69,050 हेक्टेयर भूमि सिंचित भूमि का विस्तार हुआ है जिससे 67,600 किसानों को फायदा हुआ है।

उत्तर प्रदेश सरकार ने वित्तीय वर्ष 2021-2022 में सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग के लिए 13,565 करोड़ की धनराशि का प्रावधान किया है जबकि पिछले वित्तीय वर्ष 2020-21 में ये 10,873 करोड़ रुपए था। इस दौरान सरकार ने 2.25 करोड़ रुपए रजवाहों की पुनस्थापना के लिए भी दिए हैं।

तमाम सरकार योजनाओं के बाद भी आजादी की बाद की कैनाल की उपेक्षा से बलिया और मऊ के किसानों में मायूसी है। मऊ जिले में ठाकुर गांव के किसान सुधाकर चौरसिया कहते हैं, "जब समय से नहर में पानी ही नहीं देना तो नहर में पानी देने का क्या फायदा। अगर सिल्ट की सफाई और मरम्मत के नाम पर ही नहर बंद करनी होती है तो पहले क्यों नहीं कर देते। अगर समय से कैनाल चालू हो तो हमारी फसलें अच्छी होंगी।'


सुधाकर चौरसिया हों या विजेंद्र राय, किसानों की मुश्किल ये है कि इस महंगाई में डीजल पंपिंग सेट से सिंचाई करना उनका बजट बिगाड़ रहा है। विजेंद्र राय के मुताबिक किसान नहर के पानी के सहारे बैंठे तो भूखों मरने की नौबत आ जाएगी।

पानी न आने पर किसानों को हो रहे नुकसान पर 10 एकड़ जोत के मालिक विजेंद्र राय कहते हैं, "एक सीजन में डीजल पंप चलाने पर हमारे ऊपर 8000-1000 हजार खर्च आ रहा है। हमारे यहां किसान पहले ही खेती से मुश्किल से घर का खर्च चला पा रहे हैं। नहर का पानी न आने से और परेशान हो रहे हैं।

कई किसानों ने अनौपचारिक बातचीत में कहा कि नहर में रखरखाव के लिए आए बजट में लूटपाट मची है क्योंकि हमारे इलाके जनप्रतिनिधि भी इस तरफ ध्यान नहीं दे रहे हैं। अगर वो चाहें तो इस कैनाल का अस्तित्व बच सकता है।

वर्ष 2013 में मऊ जिला प्रशासन द्वारा पानी और कैनाल को लेकर जारी इस रिपोर्ट को भी पढ़ा जा सकता है।


water canal #story 

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.